"लॉकडाउन के कारण वे वास्तव में विदेश (भारत) में फंसे हुए थे", झारखंड हाईकोर्ट ने तब्लीगी जमात के 17 विदेशी सदस्यों को जमानत दी

SPARSH UPADHYAY

18 July 2020 7:57 AM GMT

  • लॉकडाउन के कारण वे वास्तव में विदेश (भारत) में फंसे हुए थे, झारखंड हाईकोर्ट ने तब्लीगी जमात के 17 विदेशी सदस्यों को जमानत दी

    झारखंंड हाईकोर्ट ने तब्लीगी जमात के 17 विदेशी सदस्यों को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की कि लॉकडाउन के कारण सभी याचिकाकर्ता वास्तव में विदेशी देश (भारत) में फंसे हुए थे।

    न्यायमूर्ति रोंजोन मुखोपाध्याय की एकल पीठ ने मामले में मुख्य रूप से यह भी देखा कि,

    "याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप है कि वे नई दिल्ली में 'मरकज मस्जिद', निजामुद्दीन में एक सम्मेलन में भाग लेने आए थे और उसके बाद स्थानीय प्रशासन को सूचित किए बिना और मेडिकल परीक्षण कराए बिना वे हिंदपीरी (झारखण्ड) में रुके थे। उन पर यह भी आरोप लगाया गया था कि वे मस्जिद के अंदर विभिन्न सभाओं में धार्मिक प्रवचन देते थे। कुछ गवाह भी इस तरह के संस्करण का समर्थन करते हैं, लेकिन यह ध्यान में रखना है कि COVID -19 महामारी के कारण पूरी तरह से लॉकडाउन था और अभियोजन पक्ष के अनुसार ज्यादातर याचिकाकर्ता मस्जिद के अंदर रह रहे थे। इसलिए, यह आरोप अस्पष्ट और अनिर्णायक प्रतीत होते हैं।"

    याचिकाकर्ताओं पर हिंदपीरी पी. एस. केस संख्या 34/2020 में भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 269, 270, 271, महामारी रोग अधिनियम की धारा 3, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 और द फॉरेनर्स एक्ट की धरा 13 और 14 (बी) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    क्या था यह मामला?

    हिंदपीरी (झारखंंड में रांची का एक इलाका) स्थित बड़ी मस्जिद और मदीना मस्जिद के संबंध में 05-अप्रैल-2020 को जांच शुरू की गई थी। यह पता चला कि कुछ विदेशी नागरिक दोनों मस्जिदों में और साथ ही हाजी मेराज नामक व्यक्ति के घर में रह रहे थे।

    यह आरोप लगाया गया कि वे स्थानीय अधिकारियों को सूचित किए बिना और बिना किसी मेडिकल चेकअप के वहां रह रहे थे। देश में कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी बंद था और 24-मार्च-2020 को स्थानीय प्रशासन ने धारा 144 Cr.P.C लगाई थी।

    याचिकाकर्ताओं पर आगे यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने भारत सरकार के आदेश का उल्लंघन किया था और धर्म का प्रचार भी किया था जो वीजा देने के नियमों और शर्तों का उल्लंघन था। 30-मार्च-2020 को इन विदेशी नागरिकों के साथ ही एक भारतीय व्यक्ति को RIMS में मेडिकल चेकअप के लिए भेजा गया। याचिकाकर्ता नं. 16, COVID-19 पॉजिटिव पाया गया और उसे रिम्स, आइसोलेशन केंद्र में रखा गया, जबकि बाकी को खलगांव, रांची क्वारंंटीन सेंंटर में रखा गया।

    याचिकाकर्ताओं की दलील

    मामले में याचिकाकर्ताओं के लिए पेश वकील ने यह दलील दी कि लॉकडाउन के दौरान याचिकाकर्ता कहीं भी नहीं जा सकते थे और वे मस्जिद के अंदर और साथ ही साथ हाजी मेराज के घर में कैद होने के लिए मजबूर थे।

    उनके द्वारा यह कहा गया कि याचिकाकर्ताओं में से किसी ने भी टूरिस्ट वीज़ा का उल्लंघन नहीं किया था और देश के विभिन्न हिस्सों में इसी स्थिति में कई अन्य व्यक्तियों को भी जमानत दे दी गई है। आगे यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता 07-अप्रैल-2020 के बाद से हिरासत में हैं और मौजूदा चार याचिकाकर्ता महिलाओं में से तीन गर्भवती हैं।

    राज्य की दलील

    वरिष्ठ ए.पी.पी. ने याचिकाकर्ताओं को जमानत दिए जाने का विरोध किया और कहा कि एक राष्ट्रव्यापी बंद (लॉकडाउन) के बावजूद याचिकाकर्ताओं ने सरकार के निर्देशों का घोर उल्लंघन किया था और वे धार्मिक उपदेश का प्रचार कर रहे थे जो कि वीजा नियमों का उल्लंघन है।

    अदालत का मत

    याचिकाकर्ताओं के लिए पेश वकील ने अदालत के समक्ष, विदेशियों के पंजीकरण नियम 1992 (Registration of Foreigners Rules) के नियम 6 का उल्लेख भी किया और कहा कि याचिकाकर्ताओं के लिए स्थानीय अधिकारियों को यह सूचित करना आवश्यक नहीं था, क्योंकि उनका वीज़ा 180 दिनों से अधिक के लिए नहीं था।

    उनके द्वारा आगे यह कहा गया है कि सम्मेलन में भाग लेने के लिए याचिकाकर्ता 17-मार्च-2020 और 20-मार्च-2020 के बीच भारत में इकट्ठे हुए थे, और सभी को जून, 2020 तक अपने-अपने देशों में वापस जाना था।

    अदालत ने कहा कि,

    "उपरोक्त प्रस्तुतिकरण के मद्देनजर, ऐसा प्रतीत होता है कि विदेशियों के पंजीकरण नियम 1992 (Registration of Foreigners Rules) के नियम 6 के संदर्भ में याचिकाकर्ताओं को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। यह स्पष्ट है कि लॉकडाउन के कारण सभी याचिकाकर्ता वस्तुतः एक विदेशी देश (भारत) में फंसे हुए थे और मुख्य आरोप यह है कि स्थानीय प्रशासन को उनके (याचिकाकर्ताओं) रहने (भारत में) के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, जो याचिकाकर्ताओं के लिए पेश वकील के अनुसार बिल्कुल भी आवश्यक नहीं था।"

    अंत में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोपों को देखते हुए, और इस तथ्य के मद्देनजर कि याचिकाकर्ता 07-अप्रैल-2020 के बाद से हिरासत में हैं, उपरोक्त सभी याचिकाकर्ताओं को 10,000/- (रुपए दस हजार केवल) प्रत्येक के बेल बांड (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, रांची की संतुष्टि के साथ) पर रिहा करने का हाईकोर्ट द्वारा आदेश दिया गया।

    केस विवरण

    केस नंबर: B.A. No. 3929 of 2020

    केस शीर्षक: महासिन अहमद एवं 16 अन्य बनाम झारखण्ड राज्य

    कोरम: न्यायमूर्ति रोंजोन मुखोपाध्याय

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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