20 वर्ष से न्यायिक रिकार्ड गायब- झारखंड हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को फटकार लगाई और मामले की छानबीन के लिए एक समिति का गठन किया
Sparsh Upadhyay
23 Jan 2021 9:40 PM IST
न्यायिक अधिकारियों और राज्य प्रशासन को फटकार लगाते हुए झारखंड उच्च न्यायालय ने हाल ही में इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि एक मामले का न्यायिक रिकॉर्ड गायब हो जाने और उसके 20 साल बीत जाने के बाद भी संबंधित अधिकारियों द्वारा रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति आनंद सेन की पीठ, एक कथित कुख्यात अपराधी सुरेंद्र बंगाली की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसके खिलाफ वर्ष 1987 में डोरंडा पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, मामले में एक चार्जशीट भी दायर की गई थी, लेकिन इस मामले में मुकदमा शुरू होना बाकी था।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, बंगाली के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। वह कई आपराधिक मामलों में वांछित है और उसे कई मामलों में दोषी भी ठहराया गया है।
प्रधान न्यायिक आयुक्त, रांची (हाईकोर्ट के नवंबर 2020 के आदेश के अनुसार) द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि डोरंडा P.S. Case No 77 of 1987 (बंगाली के खिलाफ दर्ज एक और आपराधिक मामला) का न्यायिक रिकार्ड निचली अदालत से गायब हो गया था।
बंगाली के वकील ने कोर्ट के सामने कहा कि रिकॉर्ड वर्ष 1999 से गायब हैं और याचिकाकर्ता को रिमांड पर लेने के बाद उसका केस सेशन कोर्ट को भेज गया था और उसके बाद केस रिकॉर्ड ट्रेस नहीं हो पाया। याचिकाकर्ता जमानत पर है, जिसे सत्र न्यायालय ने मंजूर किया था।
वर्ष 2014 में, बंगाली ने कोर्ट के समक्ष त्वरित आपराधिक रिट अर्जी दायर की थी, जिसमें यह प्रार्थना की गई कि डोरंडा पी एस 1987 का केस नंबर 77 मामले में अदालत आगे नहीं बढ़ सकी, क्योंकि उसका केस रिकॉर्ड ट्रेस नहीं किया जा सका।
इस पृष्ठभूमि में, उच्च न्यायालय ने न्यायिक आयुक्त, रांची से एक रिपोर्ट मांगी, हालांकि, कई रिमाइंडर के बावजूद, रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई।
अंततः वर्ष 2016 में रांची के प्रधान न्यायिक आयुक्त द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी और उक्त रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया था कि 21 अगस्त 1999 से उपरोक्त मामले का रिकॉर्ड गायब था।
कई प्रयासों के बावजूद, केस रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण नहीं किया जा सका और आखिरकार नवंबर 2020 में, उच्च न्यायालय ने प्रधान न्यायिक आयुक्त, रांची को मामले के रिकॉर्ड की वर्तमान स्थिति के बारे में बताते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
रिपोर्ट में कहा गया था कि वे रिकॉर्ड को फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक ऐसा किया नहीं जा सका है।
कोर्ट का अवलोकन
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"यह इस गंभीर मुद्दे के संबंध में संबंधित अधिकारियों द्वारा दिखाई गई गंभीरता है। एक अभियुक्त का न्यायिक रिकॉर्ड, जिसके खिलाफ कई मामले दर्ज हैं और उसे कई मामलों में दोषी ठहराया गया है और इस विशेष मामले में जमानत पर है, गायब हो जाता है। और पिछले 20 वर्षों के लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है ताकि रिकॉर्ड का निर्माण किया जा सके या उन व्यक्तियों/अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके जिनके चलते रिकॉर्ड खो गया था।"
कोर्ट ने आगे कहा,
"इस तरह का रवैया पूरी तरह से गलत है और इसकी परिकल्पना नहीं की जा सकती है। रिपोर्ट में प्रधान न्यायिक आयुक्त, रांची द्वारा एफआईआर दर्ज करने या कार्यवाही शुरू करने के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है, यह अदालत यह मानने के लिए बाध्य है कि कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और न ही रिकॉर्ड्स के संरक्षक के खिलाफ कोई कार्यवाही शुरू की गई है। "
महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने टिप्पणी की,
"न्यायिक रिकॉर्ड का गुम होना एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है जो अत्यधिक ध्यान और कार्रवाई की मांग करता है। यहाँ पर सभी संबंधितों द्वारा बहुत हल्के ढंग से इस मामले को लिया गया है ..."
गुमशुदगी दर्ज करने की समिति के बारे में कोर्ट ने कहा,
"वह समिति क्या कर रही थी। क्या यह समिति केवल कलम और कागज पर कार्यशील है? यदि कोई समिति कार्य नहीं कर रही है और प्रदर्शन नहीं कर रही है, तो समिति को हटा दिया जाना चाहिए"।
अंत में, कोर्ट ने श्री जी के रॉय, सेवानिवृत्त प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज की अध्यक्षता में एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी का गठन किया और इस मामले के गुमशुदा केस रिकॉर्ड के संबंध में सभी संबंधितों के बयान लेने के बाद मामले की जांच करने के लिए कहा।
उन्हें अपने रिपोर्ट में निम्नलिखित पहलुओं पर प्रकाश डालने के लिए आगे निर्देशित किया गया है: -
- कैसे मामले का रिकार्ड गायब हो गया और 20 साल बीत जाने के बाद भी अब तक रिकॉर्ड को खंगाला क्यों नहीं गया।
- समिति इस पहलू पर भी रिपोर्ट करेगी कि किसकी गलती से और क्यों इसे इतना लंबा समय लगा।
- सभी व्यक्ति, जो प्रक्रिया में शामिल हैं और जिनकी गलती हैं, उनका नाम फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में उजागर किया जाएगा।
- समिति यह भी बताएगी कि इस न्यायालय के आदेश के बावजूद, केस डायरी की कार्बन कॉपी निचली अदालत को क्यों नहीं सौंपी गई और इसके लिए कौन व्यक्ति जिम्मेदार हैं।
- समिति यह भी बताएगी कि जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई।
समिति को 45 दिनों के भीतर सीलबंद कवर में रिपोर्ट देने को कहा गया है और मामले को 2 महीने के लिए स्थगित कर दिया गया। इसके साथ ही प्रधान न्यायिक आयुक्त, रांची को निर्देश दिया गया है कि वे तुरंत इस मामले में एक प्राथमिकी दर्ज करें और अदालत को रिपोर्ट करें।
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