झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को झूठे हत्या और बलात्कार के आरोप में 4 महीने जेल में बिताने वाले व्यक्ति को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया

Shahadat

27 Jun 2023 5:36 AM GMT

  • झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को झूठे हत्या और बलात्कार के आरोप में 4 महीने जेल में बिताने वाले व्यक्ति को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया

    झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को उस व्यक्ति को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिसने 2014 में हत्या और बलात्कार के झूठे मामले में चार महीने जेल में बिताए थे। हालांकि, बाद में पीड़िता को जीवित पाया गया।

    याचिकाकर्ता अजीत कुमार को भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 376 (डी), 302, 201 और 34 के तहत हत्या और बलात्कार के झूठे मामले में 2021 में फरवरी से जुलाई तक चार महीने के लिए हिरासत में लिया गया था। मामले में महिला के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी और फिर उसके शव को जला देने का आरोप था।

    याचिकाकर्ता के वकील सुमित प्रकाश के अनुसार, कुमार को मामले में झूठा फंसाया गया और उसे अन्य सह-अभियुक्त के साथ हिरासत के दौरान गंभीर यातना दी गई। अदालत को बताया गया कि पुलिस अधिकारियों ने कथित तौर पर उसे और उसके सह-अभियुक्तों को बलात्कार और हत्या के अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया। हालांकि, बाद में पता चला कि वह महिला जीवित है।

    पुलिस डायरेक्टर जनरल, झारखंड, रांची ने स्वयं मामले पर पुनर्विचार किया और इसमें शामिल तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की। मामले के जांच पदाधिकारी, बुंडू थाना के तत्कालीन प्रभारी और चुटिया थाना के तत्कालीन प्रभारी को निलंबित कर दिया गया और उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई।

    अदालत के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि क्या मामले की परिस्थितियों को देखते हुए याचिकाकर्ता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मुआवजा दिया जा सकता है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा कि यह स्पष्ट है कि कुमार स्टूडेंट छात्र है और उस पर झूठा आरोप लगाया गया और चार महीने की अवधि के लिए जेल में रखा गया।

    अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पुलिस द्वारा शुरू किया गया पूरा अभियोजन दुर्भावनापूर्ण है, जिससे अत्यधिक उत्पीड़न और अत्यधिक पीड़ा हुई। यह ऐसा मामला नहीं है, जहां आरोपी को हिरासत में रखा गया और अंततः मुकदमे के बाद उसे दोषी नहीं पाया गया, बल्कि राज्य पुलिस ने स्वयं ही तथ्य की गलती के रूप में अंतिम प्रपत्र प्रस्तुत किया और मामला झूठा पाया गया।

    अदालत ने कहा,

    "याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता और गरिमा, जो उसके मानवाधिकारों के लिए बुनियादी है, खतरे में पड़ गई, क्योंकि उसे हिरासत में ले लिया गया और अंततः, अतीत की सारी महिमा के बावजूद, उसे निंदनीय घृणा का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह स्थिति जीवन की कमान, आत्म-सम्मान और गरिमा को बचाने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित मौलिक अधिकार के उल्लंघन के लिए मुआवजा देने का कानून उपाय को आमंत्रित करती है।“

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि राज्य पुलिस के ढुलमुल रवैये के कारण मनमानी गिरफ्तारी और अनुचित हिरासत के कारण याचिकाकर्ता को अपमानित होना पड़ा।

    अदालत ने इस संबंध में कहा,

    "यदि पुलिस अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में थोड़ा अधिक सावधान रहे होते तो याचिकाकर्ता को उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया गया होता। पुलिस राज्य के प्रशासन का मुख्य आधार है। कानून के अनुसार, यह सुनिश्चित करना उसका कर्तव्य है कि अपराधियों से सख्ती से निपटा जाए। लेकिन इसे अपने कार्यों में कानून के नियमों और भारत के संविधान के आदेश की पुष्टि करनी होगी और यदि यह प्रशासन के नाम पर कुछ भी करने के लिए कानून से परे जाएगा तो यह संवैधानिक लोकतंत्र की नींव हिला देगा। इस प्रकार, याचिकाकर्ता का मामला भारत के संविधान के अनुच्छेद- 226 के तहत सार्वजनिक कानून उपचार के तहत चलने योग्य है।"

    याचिका की अनुमति देते हुए अदालत ने राज्य को दोषी पुलिस अधिकारियों के वेतन से मुआवजा वसूलने की अनुमति दी, जिनके कार्यों के कारण याचिकाकर्ता को गलती से सजा हुई। यह स्वीकार करते हुए कि मुआवजे की कोई भी राशि याचिकाकर्ता द्वारा झेले गए आघात और अपमान को पूरी तरह से बहाल नहीं कर सकती है, अदालत ने उम्मीद जताई कि मुआवजा सांत्वना के रूप में काम करेगा, जिससे वह अपने जीवन में आगे बढ़ सकेगा।

    अदालत ने कहा,

    "याचिकाकर्ता को पहले से ही आघात और समाज में अपमान का सामना करना पड़ा है, जिसे उक्त मुआवजे के माध्यम से बहाल नहीं किया जा सकता। हालांकि, वह मुआवजा याचिकाकर्ता को अतीत को भूलने और भविष्य में जीवन आगे बढ़ाने के लिए सांत्वना देगा।"

    केस टाइटल: अजीत कुमार बनाम झारखंड राज्य डब्ल्यू.पी. (सीआर) नंबर 226, 2014

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