झारखंड हाईकोर्ट ने परिवार के सदस्यों द्वारा गैंग-रेप की शिकार 'अंधी नाबालिग लड़की' को ₹10 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया

Shahadat

15 Sep 2022 6:07 AM GMT

  • झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने भाई और चाचा सहित अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा गैंग रेप की शिकार 'अंधी नाबालिग लड़की' को 10 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को इस तरह के जघन्य और क्रूर अपराधों के पीड़ितों की जरूरतों को पूरा करने के लिए राजधानी रांची में पुनर्वास केंद्र स्थापित करने का भी निर्देश दिया।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने पीड़िता के पुनर्वास के लिए कई निर्देश जारी करते हुए कहा,

    "ए" द्वारा पीड़ित शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक आघात दुर्जेय है। बलात्कार न केवल महिला के खिलाफ बल्कि व्यापक रूप से मानवता के खिलाफ अपराध है, क्योंकि यह मानव प्रकृति के सबसे क्रूर, भ्रष्ट और घृणित पहलुओं को सामने लाता है। यह पीड़िता के मानस पर न भूलाए जा सकने वाले निशान और समाज पर प्रतिकूल प्रभाव छोड़ देता है। मामले में "ए" द्वारा अनुभव की गई पीड़ा ने अधिक स्पष्ट प्रभाव छोड़ा, क्योंकि वह "ए" 100% अंधी है। इस प्रकार, यह न्यायालय महसूस करता है कि उसका कल्याण इस न्यायालय के लिए सर्वोपरि है।"

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि:

    शामिल अपराधों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अदालत ने पीड़ित को "ए" के रूप में संबोधित करने का फैसला किया, जो पूरी तरह से अंधी है। "ए" वर्ष 2018 में सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई थी। इसके बाद भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354/376D और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) की धारा 4/8 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। उक्त मामले में अपने ही भाई और चाचा के खिलाफ आईपीसी की धारा 376(2)(f)/376(2)(i)/376(3) और पॉक्सो एक्ट की धारा 4/6 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।

    पीड़िता की अंधी प्रकृति को देखते हुए अदालत ने निदेशक, राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ('रिम्स') को "ए" की जांच करने और यह पता लगाने के लिए कि क्या गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया गया। इसके अनुसरण में रिम्स ने मेडिकल बोर्ड का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दी।

    न्यायालय के अवलोकन और निर्देश:

    कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार किया, जिसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि गर्भावस्था को समाप्त करना जोखिम भरा है। इसलिए न्यायालय ने गर्भावस्था के मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति देकर "ए" के जीवन को खतरे में नहीं डालने का निर्णय लिया।

    कोर्ट ने कहा,

    "मामले में यह पता चलता है कि रिम्स में मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन करना "ए" के जीवन के लिए जोखिम भरा हो सकता है, जिसका गठन 08.09.2022 को इस न्यायालय के निर्देश के अनुसार किया गया था। इस स्थिति से बचा जा सकता है, यदि घटना के उचित समय पर निर्णय लिया गया होता।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि मामला जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, रांची सहित सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन दाखिल करके लाया गया। हालांकि पीड़िता को कोई मुआवजा नहीं दिया गया। बेंच ने यह भी कहा कि ऐसे पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए सरकार की योजनाएं हैं।

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन रे: असेसमेंट ऑफ क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम इन रिस्पॉन्स टू सेक्शुअल ऑफेंस में दिए गए निर्णय का संदर्भ में दिया गया, जिसमें कोर्ट ने कहा,

    "सीआरपीसी की धारा 357ए (2) पीड़ितों को मुआवजे का प्रावधान करती है। जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण या राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण न्यायालय की सिफारिश पर पीड़ित को मुआवजे की मात्रा के बारे में निर्णय लेने के लिए बाध्य है। डब्लू.पी. (सी) 565/2012 में निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ मामले में इस न्यायालय के आदेश, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली ने यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों की महिला पीड़ितों/उत्तरजीवियों के लिए एक मुआवजा योजना तैयार की थी। यह योजना को सभी राज्यों के बीच आवश्यक कार्रवाई के लिए परिचालित किया गया। योजना व्यापक रूप से बलात्कार पीड़ितों के पुनर्वास और मुआवजे का प्रावधान करती है।"

    मामले की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों और उससे संबंधित कानूनी स्थिति को देखते हुए अदालत ने पीड़ित और अजन्मे बच्चे के हितों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित निर्देश जारी किए-

    1. उपायुक्त, रांची यह सुनिश्चित करेंगे कि पीड़िता को गर्भावस्था के दौरान उचित आहार, मेडिकल जांच और दवाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए। जब प्रसव का समय आता है तो बच्चे के सुरक्षित प्रसव के लिए उचित मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए।

    2. "ए" को झारखंड सरकार के किसी भी उचित पुनर्वास केंद्र में रखा जाएगा।

    3. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि राज्य सरकार पीड़ित को मुआवजे के रूप में 10,00,000/- रुपये (दस लाख रुपये मात्र) की राशि का भुगतान करेगी। यह राशि मुआवजे की राशि से अधिक होगी, निचली अदालत पीड़िता और/या उसके बच्चे को अंतर्निहित कार्यवाही में मुकदमे की समाप्ति पर भुगतान करने का निर्देश दे सकती है।

    4. उक्त राशि "ए" के नाम से किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा की जाएगी।

    5. उपायुक्त, रांची पीड़िता के नाम से उसके पिता द्वारा चुने गए किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में खाता खोलना सुनिश्चित करेंगे।

    6. जैसे ही नवजात शिशु अपना मानसिक संतुलन हासिल कर लेगा ततो उसे उचित स्कूल में उचित कक्षा में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी।

    यह विचार करते हुए कि रांची में ऐसे पीड़ित के लिए कोई पुनर्वास केंद्र नहीं है, यह न्यायालय झारखंड सरकार के मुख्य सचिव, सचिव, समाज कल्याण विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, झारखंड सरकार और उपायुक्त, रांची से अनुरोध करता है कि वे इस पर विचार करें। रांची में ऐसा पुनर्वास केंद्र बनाने का मुद्दा ताकि राजधानी में पुनर्वास केंद्र भविष्य में ऐसे पीड़ित की मदद कर सके। इस न्यायालय को आशा और विश्वास है कि राज्य के उक्त अधिकारी इस न्यायालय के अनुरोध पर अपने सही परिप्रेक्ष्य में विचार करेंगे।

    जहां तक ​​"ए" का संबंध है, संबंधित प्राधिकारी निःशक्तता पेंशन पर भी विचार करेगा, जो शत-प्रतिशत नेत्रहीन है।

    केस टाइटल: "ए" बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

    केस नंबर: डब्ल्यूपी (Cr.) नंबर 421/2022

    निर्णय दिनांक: 14 सितंबर, 2022

    कोरम: जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी

    याचिकाकर्ता के वकील: शैलेश पोद्दार

    प्रतिवादियों के लिए वकील: किशोर कुमार सिंह, एस.सी.-वी और विष्णु प्रभाकर पाठक एसी से एससी-वी (राज्य के लिए); डॉ. अशोक कुमार सिंह, शिवम सिंह और मधु प्रिया, एडवोकेट (रिम्स के लिए)

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