जौनपुर में हिरासत में मौत का मामलाः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई की जांच में दोष पाया, आरोपी पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार न कर पाने पर फटकार लगाई

LiveLaw News Network

15 Nov 2021 12:46 PM GMT

  • जौनपुर में हिरासत में मौत का मामलाः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई की जांच में दोष पाया, आरोपी पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार न कर पाने पर फटकार लगाई

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह जौनुपर में 24 वर्षीय युवक की हिरासत में हुई कथित मौत के मामले की उचित तरीके से जांच नहीं करने पर सीबीआई को कड़ी फटकार लगाई। सीबीआई मामले में आरोपी पुलिस वालों को गिरफ्तार करने में ‌भी विफल रही।

    जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि सीबीआई द्वारा दायर हलफनामा पूरी तरह से असंतोषजनक है और यह संकेत देता है कि आरोपी व्यक्तियों, जो पुलिसकर्मी हैं, उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया था।

    सीबीआई का हलफनामा

    हलफनामे में सीबीआई ने पुलिस अधिकारियों/संदिग्धों/आरोपी व्यक्तियों का विवरण दिया और यह भी कहा कि उनकी सीडीआर/आईपीडीआर की जांच की गई है, उनके ज्ञात पतों पर छापेमारी की गई है/खोजबीन की गई है और एनबीडब्‍ल्यू के निष्पादन के लिए उनके वर्तमान ठिकानों को जानने के लिए सोर्स तैनात किए गए हैं।

    यह भी कहा गया कि स्थानीय पुलिस द्वारा सीजेएम, जौनपुर की अदालत से 06.09.2021 को गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था, हालांकि अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों को दो महीने से अधिक समय के बाद भी गिरफ्तार नहीं किया गया है।

    इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने कहा,

    "प्रतिवादी संख्या 5 (सीबीआई) द्वारा दिया गया यह कथन कि प्रयास किए जा रहे हैं, सुनवाई की अंतिम तिथि 27.10.2021 के आदेश में दर्ज किए गए स्टैंड के मद्देनजर केवल एक दिखावा प्रतीत होता है...।"

    हालांकि, अदालत ने सीबीआई को मामले की ठीक से जांच करने और बिना किसी और देरी के गिरफ्तारी वारंट को निष्पादित करने और धारा 82 और 83 सीआरपीसी के प्रावधानों सहित आपराधिक प्रक्रिया संहिता में ‌प्रदान की गई सभी परिणामी कार्रवाइयों को करने का एक और मौका दिया।

    अदालत ने अगली तारीख (29 नवंबर) पर सीबीआई से हलफनामा मांगा। सीबीआई से कहा गया है कि वह पूर्व में दिए गए अपने बयान पर अपना रुख स्पष्ट करे कि सीबीआई जांच पूरी होने के बाद ही आरोपियों को गिरफ्तार करती है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह मामला 24 वर्ष के एक युवक की हिरासत में क‌थ‌ित मौत से संबंधित है, जिसे पुलिस पार्टी जबरन उसके घर से उठाकर पुलिस थाने ले गई थी। इस मामले में जब मुखबिर (मृतक का भाई) अपने भाई से मिलने थाने गया तो उसे अपने भाई (मृतक) से मिलने नहीं दिया गया और अगली सुबह सूचना मिली कि उसके भाई की मौत हो गई है।

    इसके बाद आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 394, 452 और 504 के तहत मामला दर्ज किया गया। जबकि पुलिस का दावा था कि मृतक को उस समय पकड़ा गया, जब वह मोटरसाइकिल चला रहा था और गिर गया। जिससे वह घायल हो गया और लोगों ने उसकी पिटाई कर दी।

    पुलिस ने आगे कहा कि जब उसे एक सब इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबल के साथ प्राथमिक उपचार के लिए भेजा गया तो सीएचसी के डॉक्टर ने उसे जिला अस्पताल, जौनपुर में इलाज के लिए रेफर कर दिया और जब तक वे जिला अस्पताल पहुंचता, उसकी मौत हो चुकी थी।

    उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, जिसमें 24 वर्षीय युवक की हिरासत में कथित मौत की जांच सीबीआई को स्थानांतरित की गई थी।

    जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के 8 सितंबर के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश के अधिकारियों की याचिका को खारिज कर दिया था , जिसमें हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया था कि आईपीएस रैंक के अधिकारियों की हत्या/मृत्यु में संलिप्तता है।

    केस शीर्षक - अजय कुमार यादव बनाम यूपी राज्य और अन्य

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