जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी बरकरार रखी, कहा- धोखाधड़ी वाली नियुक्तियां अनुच्छेद 311 के तहत सुरक्षा की हकदार नहीं
Shahadat
21 July 2023 9:46 AM GMT
![Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2021/01/03/750x450_386705-378808-jammu-and-kashmir-high-court.jpg)
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने बुधवार को न्यायिक अधिकारी की बर्खास्तगी को इस आधार पर बरकरार रखा कि उसने चयन प्रक्रिया के दौरान धोखाधड़ी से "पिछड़े क्षेत्र के निवासी" सर्टिफिकेट का लाभ प्राप्त किया था।
जम्मू-कश्मीर में आरबीए सर्टिफिकेट अन्यत्र कास्ट सर्टिफिकेट के समान है, जिसके आधार पर सरकारी सेवा में आरक्षण का लाभ लिया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि जो व्यक्ति फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति हासिल करता है, वह संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत समानता और सुरक्षा का दावा करने का हकदार नहीं है।
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस मोहन लाल ने कहा,
"...याचिकाकर्ता की सेवा में प्रवेश फर्जी तरीकों से हुआ, इसलिए उसे विभागीय जांच के अवसर से वंचित करना अनुच्छेद 311 का उल्लंघन नहीं है।"
याचिकाकर्ता को वर्ष 2000 में मुंसिफ, न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में चुना गया। हालांकि, उसके चयन को दो अलग-अलग रिट याचिकाओं में चुनौती दी गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता आरबीए नहीं है।
कार्यवाही के दौरान, एकल न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता के आरबीए सर्टिफिकेट की प्रामाणिकता की हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार विजिलेंस द्वारा अंतरिम जांच का आदेश दिया। जांच में पता चला कि सर्टिफिकेट फर्जी है।
अपील में खंडपीठ ने उपायुक्त को मामले की नये सिरे से जांच करने का निर्देश दिया। इस प्रकार जनवरी 2018 में रिपोर्ट दायर की गई, जिसमें आरबीए सर्टिफिकेट की वास्तविकता पर संदेह जताया गया। याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि उन्हें इसकी प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई। इसके बाद डिप्टी कमिश्नर की ओर से दूसरी रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें आरबीए सर्टिफिकेट को फर्जी करार दिया गया।
याचिकाकर्ता ने संभागीय आयुक्त के समक्ष एसआरओ 164 के नियम 32 के तहत पुनर्विचार की मांग की, जिन्होंने दिनांकित रिपोर्ट पर पुनर्विचार करने के लिए मामले को उपायुक्त को स्थानांतरित कर दिया। तदनुसार, तीसरी रिपोर्ट तैयार की गई, जिसमें कहा गया कि आरबीए सर्टिफिकेट वैध है। हालांकि, याचिकाकर्ता हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति के आदेश के कारण निलंबित रहा और अंततः फुल कोर्ट के फैसले के आधार पर सितंबर 2021 में राज्य सरकार द्वारा उसे समाप्त कर दिया गया। इसलिए वर्तमान रिट याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता ने समाप्ति आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि फुल कोर्ट ने केवल पहली दो रिपोर्टों पर विचार किया, जो याचिकाकर्ता के खिलाफ थीं, लेकिन तीसरी रिपोर्ट को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया, जिसने याचिकाकर्ता को बरी कर दिया और आरबीए को वैध माना। दूसरे, यह तर्क दिया गया कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों, विशेष रूप से ऑडी-अल्टरम-पार्टम का उल्लंघन किया गया, क्योंकि याचिकाकर्ता को कभी भी विभागीय जांच के अधीन नहीं किया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 311 (2) का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट की ओर से पेश वकील ने कहा कि तीसरी रिपोर्ट गैर-स्थायी है, क्योंकि यह एसआरओ 126 के नियम 32 का उल्लंघन है। इसलिए पिछली दो रिपोर्टें मान्य होंगी।
मामले पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि तीसरी रिपोर्ट शुरू से ही अमान्य है, क्योंकि इसने एसआरओ 126 के नियम 32 का उल्लंघन किया, जो पुनर्विचार और संशोधन से संबंधित है। पुनर्विचार की शक्ति अंतर्निहित शक्ति नहीं बल्कि वैधानिक शक्ति है। इस मामले में यह संभागीय आयुक्त में निहित है। इसमें कहा गया कि चूंकि प्रतिनिधिमंडल के लिए कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए उपायुक्त द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट अमान्य है।
नियम 32 में यह स्पष्ट है कि अपीलीय प्राधिकारी जो संभागीय आयुक्त (नियम 31)(ii) है, नियम 32 के अनुसार अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश के पुनर्विचार या संशोधन के उद्देश्य के लिए भी प्राधिकारी होगा। नियम 32 पुनर्विचार की शक्ति को उपायुक्त को सौंपने की किसी भी शक्ति का प्रावधान नहीं करता है। संभागीय आयुक्त से ही दिनांक 30.01.2018 की रिपोर्ट की समीक्षा करने की अपेक्षा की गई और उक्त समीक्षा को उपायुक्त को हस्तांतरित करना नियम 32 द्वारा प्रदान की गई प्रक्रिया नहीं है।
कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति स्वयं फर्जी तरीकों पर आधारित ह, जिससे वह संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत सुरक्षा के लिए अयोग्य हो गया। इसमें आर. विश्वनाथ पिल्लई बनाम केरल राज्य 2004 की मिसाल का हवाला दिया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो व्यक्ति फर्जी दस्तावेजों के जरिए नियुक्ति हासिल करता है, वह संवैधानिक गारंटी का दावा नहीं कर सकता।
इन निष्कर्षों के आलोक में न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता की सेवाओं की समाप्ति बरकरार रखी।
केस टाइटल: मोहम्मद यूसुफ अली बनाम जेके हाईकोर्ट, इसके रजिस्ट्रार जनरल एवं अन्य।
साइटेशन: लाइव लॉ (जेकेएल) 187/2023
याचिकाकर्ता के वकील: एम. सी. ढींगरा और एम.के. पंडिता।
उत्तरदाताओं के लिए वकील: एम. आई. कादिरी, सीनियर वकील, नवीद गुल, वकील के साथ आर-1 के लिए, आर-2 के लिए फहीम शाह, जीए
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