'सुरक्षा-कवर कोई आनंद की वस्तु नहीं, इसमें करदाताओं का पैसा लगता है', राजनेताओं और अन्य व्यक्तियों को बेवजह मिले सुरक्षा कवर पर J&K हाईकोर्ट सख्त

SPARSH UPADHYAY

21 Aug 2020 10:08 AM GMT

  • सुरक्षा-कवर कोई आनंद की वस्तु नहीं, इसमें करदाताओं का पैसा लगता है, राजनेताओं और अन्य व्यक्तियों को बेवजह मिले सुरक्षा कवर पर J&K हाईकोर्ट सख्त

    J&K&L High Court

    जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने, राजनेताओं और अन्य व्यक्तियों को "कमजोर आधार" (Flimsy Ground) पर प्रदान की जाने वाली सुरक्षा (जोकि करदाताओं द्वारा वित्त पोषित होती है) ताकि वे सुरक्षा गार्ड का उपयोग "स्टेटस सिम्बल" के रूप में कर सकें, उसके प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त की है।

    न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ द्वारा यह अस्वीकृति दर्ज करते हुए, कई साल पहले प्रदान की गई सुरक्षा को जारी रखने की याचिकाओं पर जम्मू-कश्मीर के गृह सचिव और पुलिस प्रमुख को यह निर्देश दिए कि वे निजी या राजनीतिक व्यक्तियों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को प्रदान किए गए सुरक्षा कवर, और उनको खतरे की सम्भावना का आकलन करें और फिर अदालत के समक्ष इससे सम्बंधित सूचना प्रस्तुत करें।

    क्या था मामला?

    दरअसल मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता (सुमित नय्यर) ने, माननीय सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और न्यायालय परिसरों की सुरक्षा से संबंधित न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी। उस आधार पर, उसने अपनी जान पर खतरे को भी रेखांकित किया था।

    उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (CID) की विशेष शाखा (SB) द्वारा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, CID, जम्मू-कश्मीर, को भेजी गयी रिपोर्ट पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया था कि उनके जीवन के लिए खतरा हो सकता है। उस आधार पर, आदेश दिनांक 08.04.2017 के जरिये याचिकाकर्ता को एक पीएसओ, एक महीने की अवधि के लिए प्रदान किया गया था।

    इसके बाद, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपाधीक्षक, डीएआर डीपीएल, जम्मू के अनुरोध पर 15.05.2017 को फिर से याचिकाकर्ता को एक महीने की अवधि के लिए अंतरिम रूप से सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा गया था।

    इसके बाद, याचिकाकर्ता ने सक्षम प्राधिकारी को खतरे की सम्भावना की समीक्षा करने की अनुमति नहीं दी, हालाँकि वे स्वयं को पहले से ही प्रदान की गई सुरक्षा को जारी रखने की मांग के साथ उच्च न्यायालय में पहुंच गए।

    इसपर अदालत ने नाराजगी जताते हुए टिप्पणी की कि, "जैसे कि किसी व्यक्ति को सुरक्षा कवर प्रदान करने या खतरे की सम्भावना का आकलन करने की विशेषज्ञता न्यायालय के पास उपलब्ध है।"

    अदालत का अवलोकन

    अदालत ने मुख्य रूप से देखा कि

    "किसी भी व्यक्ति को सुरक्षा कवर राज्य के खर्च पर प्रदान किया जाता है, जिसके लिए करदाताओं द्वारा योगदान दिया जाता है। यह कोई आनंद की वास्तु नहीं की किसी भी व्यक्ति को स्टेटस सिंबल के रूप में इसे प्रदान किया जाए।"

    मौजूदा मामले में, अदालत ने यह देखा कि दिनांक 22.06.2017 को, उत्तरदाताओं को नोटिस जारी करते हुए, पहले से ही दिए गए आदेश, (आदेश दिनांक 08.04.2017 और 15.05.2017) को जारी रखने का निर्देश दिया गया था।

    तत्पश्चात, सामान्य अभ्यास के रूप में, न तो याचिकाकर्ता, और न ही उत्तरदाताओं को वर्तमान मामले को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी थी, क्योंकि याचिकाकर्ता को अंतरिम आदेश के माध्यम से अंतिम राहत मिली और उत्तरदाताओं ने उसपर ध्यान नहीं दिया। यह इस तथ्य से स्थापित होता है कि उत्तरदाताओं ने आज तक आपत्तियां दर्ज करने पर भी ध्यान नहीं दिया है।

    आगे अदालत ने यह देखा कि, हालांकि COVID19 महामारी के कारण लॉकडाउन लागू होने से पहले और उसके बाद भी मौजूदा वकील/याचिकाकर्ता अलग-अलग मामलों में कोर्ट में नियमित रूप से उपस्थित होते रहे थे, लेकिन वर्तमान मामले को सूचीबद्ध करने के बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा क्योंकि वे अंतरिम आदेश पारित होने से खुश थे।

    अदालत ने मुख्य रूप से यह रेखांकित किया कि,

    "यह एकमात्र मामला नहीं है, जहां अंतरिम आदेश पारित होने के बाद मामला सूचीबद्ध नहीं किया गए हैं। इससे पहले भी कई मामलों को न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जहां याचिकाकर्ताओं ने कमजोर आधार पर सुरक्षा कवर मांगा था और अंतरिम आदेश पारित किए जाने के बाद, कभी भी उसपर ध्यान नहीं दिया गया।"

    आगे, अदालत ने आदेश देते हुए कहा,

    "उन मामलों में और मौजूदा मामले के तथ्य को देखते हुए यह न्यायालय, निजी या राजनीतिक व्यक्तियों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को प्रदान किए गए सुरक्षा कवर और उनके लिए खतरे की धारणा का आकलन करने के बारे में गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक से जानकारी लेने के लिए मजबूर है। न्यायालय को इस संबंध में नीति से अवगत कराया जाना चाहिए और उसकी समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।"

    जानकारी के लिए इस आदेश की एक प्रति मुख्य सचिव, जम्मू-कश्मीर सरकार को भेजे जाने का निर्देश दिया गया। इसके अलावा, इस आदेश की एक प्रति को गृह सचिव, जम्मू-कश्मीर सरकार और पुलिस महानिदेशक, जम्मू-कश्मीर को अनुपालन के लिए भेजे जाने का आदेश भी अदालत ने दिया।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करेंं



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