आईटी नियम 2021: मद्रास हाईकोर्ट ने आईबीडीएफ के तहत डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाई
LiveLaw News Network
8 Dec 2021 5:15 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आईटी नियम 2021 के तहत सन टीवी नेटवर्क सहित भारतीय प्रसारण और डिजिटल फाउंडेशन के सदस्य डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ किसी भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया है।
फाउंडेशन की ओर से दायर एक रिट याचिका में, जिसमें 2021 के नियमों के भाग III के तहत डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के संबंध में जारी आचार संहिता को चुनौती दी गई है, की सुनवाई पर उक्त फैसला आया है।
कार्यवाहक चीफ जस्टिस मुनिश्वरनाथ भंडारी और जस्टिस पीडी ऑडिकेसवालु की पीट ने मामले में जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का समय दिया है।
कोर्ट ने आदेश में कहा है,
"इस बीच प्रतिवादियों को अदालत की अनुमति के बिना याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया जाता है।"
याचिका के तहत सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के भाग- III [डिजिटल मीडिया के संबंध में नैतिकता और प्रक्रिया और सुरक्षा की संहिता] के तहत नियम 8-19 के दायरे को चुनौती दी गई है।
मामले की सुनवाई के दरमियान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पीएस रमन ने अदालत का ध्यान बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा आईटी नियमों के नियम 9 के उप-नियम (1) और (3) पर दिए गए अंतरिम स्थगन और हाल ही में केरल हाईकोर्ट द्वारा कोई कठोर कार्रवाई न करने का निर्देश देने वाले निर्णयों की ओर आकर्षित किया।
हालांकि, डिवीजन बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बारे में अपनी आपत्ति व्यक्त की। यह देखा गया कि संवैधानिक वैधता की जांच किए बिना नियमों को रद्द नहीं किया जा सकता है क्योंकि जब किसी कानून के अधिकार को चुनौती दी जाती है तो संवैधानिकता का अनुमान होता है।
वरिष्ठ वकील ने तब कोर्ट का ध्यान तत्कालीन सीजे की अगुवाई वाली बेंच के हालिया आदेश की ओर आकर्षित किया , जिसमें कहा गया था कि बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दी गई रोक का अखिल भारतीय प्रभाव होना चाहिए।
मामले की अगली सुनवाई 25 जनवरी, 2022 को होगी।
पृष्ठभूमि
आईबीडीएफ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय टेलीविजन चैनलों का शीर्ष निकाय है और इसके सदस्य के रूप में ऑनलाइन/डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म/ओटीटी प्लेटफॉर्म भी हैं।
याचिका में कहा गया है कि आईबीडीएफ ने अपने सदस्यों के डिजिटल ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराई गई किसी भी सामग्री के लिए शिकायतों को दूर करने के लिए डिजिटल मीडिया कंटेंट रेगुलेटरी काउंसिल (डीएमसीआरसी) नामक एक स्वतंत्र स्व-नियामक निकाय की स्थापना की है।
याचिका में कहा गया है,
"आक्षेपित नियम अनुच्छेद 19 (2) में उल्लिखित आधारों के प्रतिबंधात्मक दायरे से परे हैं और विशेष रूप से, आईटी अधिनियम, 2000 के उद्देश्यों और कारणों का विवरण, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पूरे अधिनियम का फोकस और विषय- "इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स" ("ई-कॉमर्स") पर है और किसी भी कार्यक्रम की सामग्री से निपटने के लिए नहीं है।"
याचिकाकर्ता की प्राथमिक दलीलों में से एक यह है कि डिजिटल ओटीटी प्लेटफॉर्म की निगरानी के लिए त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन करेगा। इसके अलावा, टियर III मैकेनिजम में अंतर-विभागीय समिति और केवल कार्यकारी सदस्यों से गठित निरीक्षण समिति शक्तियों के पृथक्करण नियम के खिलाफ हैं और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्र सरकार के पास ओटीटी प्लेटफार्मों को विनियमित करने की शक्ति नहीं है, और आईटी अधिनियम में कोई प्रावधान सरकार को इंटरनेट पर सामग्री के प्रसार को विनियमित करने का अधिकार नहीं देता है।
याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए आधारों के अनुसार, मूल अधिनियम की धारा 87 (2) (जेडजी) केवल बिचौलियों पर लागू होती है और ओटीटी प्लेटफॉर्म के संबंध में नियम बनाने की शक्तियों को सशक्त नहीं करती है।
यह भी कहा गया है कि आईटी अधिनियम की धारा 87(2)(जेड) सहपठित धारा 69ए(2) क्यूरेटेड सामग्री प्रदाताओं के नियम बनाने वाले प्रकाशकों को सशक्त नहीं बनाता है। धारा 87(2)(जेड) केवल सरकार को आईटी अधिनियम की धारा 69ए(2) के संदर्भ में सार्वजनिक पहुंच को अवरुद्ध करने के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों को निर्धारित करने के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है। धारा 69ए(2) सरकार को प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों को निर्धारित करने का अधिकार देती है जिसके अधीन जनता द्वारा 'पहुंच के लिए इस तरह के अवरोध' को अंजाम दिया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि धारा 69ए सरकार को निर्देश के रूप में सख्ती या दंड लगाने का अधिकार नहीं देती है।
याचिका में कहा गया है, "ऐसे" शब्द का स्पष्ट रूप से अर्थ और तात्पर्य है कि प्रक्रिया और सुरक्षा जो नियम बनाने के माध्यम से निर्धारित की जा सकती है, धारा 69 ए (1) के तहत अवरुद्ध करने का आदेश और निर्देश देते समय प्रक्रिया और सुरक्षा से संबंधित है।"
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि नियम 15, 16 और 17 के तहत सामग्री को अवरुद्ध करने से पहले सुनवाई के अवसर से वंचित किया जाता है। इसलिए, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि आक्षेपित नियम अनुचित, असंगत, स्पष्ट रूप से मनमाना हैं और संविधान के अनुच्छेद 19(2), 19(6) और 14 का उल्लंघन करते हैं।
केस शीर्षक: इंडियन ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल फाउंडेशन बनाम इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और अन्य
केस नंबर: WP/25619/2021 (सामान्य विविध)
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