अब एक पक्ष पर श‌िकायत वापस लेने के लिए दबाव बनाने या डराने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराना ट्रेंड बनता जा रहा हैः दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

12 March 2021 5:13 AM GMT

  • अब एक पक्ष पर श‌िकायत वापस लेने के लिए दबाव बनाने या डराने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराना ट्रेंड बनता जा रहा हैः दिल्ली हाईकोर्ट

    यह कहते हुए कि उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का समय आ गया है, जो धारा 354, 354A, 354B, 354C, 354D IPC आदि के तहत भ्रामक शिकायत दर्ज करते हैं, दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में याचिकाकर्ताओं पर 30,000 रूपए का जुर्माना लगाया, साथ ही उन्हें झूठे और ओछे मामलों को दर्ज न कराने की चेतावनी दी है।

    जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की खंडपीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अब धारा 354, 354A, 354B, 354C, 354D IPC के तहत अपराध दर्ज कराने के लिए एफआईआर दर्ज कराने का चलन बन गया है या यह या तो किसी पक्ष को उनके खिलाफ शुरू की गई शिकायत को वापस लेने के लिए मजबूर करने या पक्ष को डराने के लिए‌ किया जा रहा है।

    उल्लेखनीय है कि धारा 354 आईपीसी, किसी महिला के साथ अभद्रता करने के इरादे से उस पर किए गए हमले या बलपूर्वक किए अपराध से संबंधित है। धारा 354-ए यौन उत्पीड़न के अपराध और दंड से संबंधित है। धारा 354 बी, नग्न करने के इरादे से महिला पर हमला या बल का इस्‍तेमाल कर अपराध करने से संबंधित है। धारा 354 सी वॉयेरिज्म और धारा 354 डी स्टॉकिंग से संबंध‌ित है।

    मामला

    CRL.M.C. 533/2021 और 534/2021 को एफआईआर नंबर 239/2017 और 238/2017 को रद्द करने के लिए दायर किया गया था (दोनों के खिलाफ क्रमशः 509, 506, 326, 343, 341, 354, 354 ए और 34 आईपीसी के तहत अपराध दर्ज किया गया था) और एफआईआर संख्या 238/2017 में में शिकायतकर्ता एफआईआर संख्या 239/2017 में आरोपी था।

    यह दलील दी गई कि कुछ सामान्य मित्रों, रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों के हस्तक्षेप से, पार्टियों ने अपना विवाद सुलझा लिया है और पार्टियों के बीच एक मौखिक समझौता हो गया है।

    यह भी कहा गया कि दोनों पार्टियां, CRL.M.C. 533/2021 और CRL.M.C. 534/2021 में याचिकाकर्ता और उत्तरदाता को अपनी गलती का एहसास हुआ है और उन्होंने मामले में समझौता करने का फैसला किया है।

    उक्त मौखिक न‌िस्तारण के अनुसार, पार्टियों ने सहमति व्यक्त की कि वे उपरोक्त एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएंगी और इस तरह, यह अनुरोध किया गया कि एफआईआर को रद्द कर दिया जाए क्योंकि विवाद को सौहार्द्रपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है।

    अवलोकन

    शुरुआत में, अदालत ने कहा कि धारा 354, 354A, 354B, 354C, 354D IPC के तहत अपराध गंभीर अपराध हैं और इस तरह के आरोपों से उस व्यक्ति की छवि धूमिल होती है, जिस पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं।

    कोर्ट ने आगे कहा कि इन अपराधों के में आरोप लगाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। मौजूदा मामले में कोर्ट ने उल्लेख किया कि यह इस बात का एक क्लासिक उदाहरण है कि धारा 354 और 354A के तहत कितने ओछे आरोप एक दूसरे के खिलाफ पार्टियों द्वारा लगाए गए हैं।

    कोर्ट ने कहा कि पार्किंग की एक मामली लड़ाई को महिलाओं को अपमानित करने के आरोपों तक बढ़ा दिया गया।

    "अदालत इस तथ्य की न्यायिक सूचना ले सकती है कि पुलिस बल बहुत सीमित है। पुलिस कर्मियों को तुच्छ मामलों की जांच में समय बिताना पड़ता है। उन्हें अदालती कार्यवाही में शामिल होना पड़ता है, स्थिति रिपोर्ट तैयार करना पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि गंभीर अपराधों में जांच प्रभावित होती है और अभियुक्त कमजोर जांच के कारण बचने में सफल रहते हैं।"

    हालांकि, पक्षों के बीच आपसी समझौता होने के मद्देनजर, न्यायालय को इस बात पर संतोष जाहिर किया कि वर्तमान कार्यवाही के साथ मुकदमा चलाने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

    नतीजतन, एफआईआर संख्या No.238/2017, FIR No.239/2017 और उसके बाद होने वाली कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।

    कोर्ट ने यह कहते हुए कि पुलिस को अपराध की जांच करने में मूल्यवान समय बिताना पड़ा और अदालत का पार्टियों की ओर से शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही में काफी समय गया, अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाना उचित समझा।

    इस प्रकार, CRL.M.C. 533/2021 और CRL.M.C.534 / 2021 में याचिकाकर्ताओं को 'डीएचसीबीए वकील सामाजिक सुरक्षा और कल्याण कोष' में तीन सप्ताह के भीतर 30,000 रुपए जमा करने का निर्देश दिया गया।

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