"ऐसा नहीं है कि इस अदालत ने व्यभिचार को मंजूरी दी है": सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करने वाले 'जोसेफ शाइन' के फैसले को स्पष्ट किया

Avanish Pathak

17 Feb 2023 5:23 PM GMT

  • ऐसा नहीं है कि इस अदालत ने व्यभिचार को मंजूरी दी है: सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करने वाले जोसेफ शाइन के फैसले को स्पष्ट किया

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्‍ट किया कि 2018 के एक फैसले के जर‌िए उसने आईपीसी की धारा 497 [जोसेफ शाइन बनाम यू‌नियन ऑफ इंडिया (2019) 3 एससीसी 39] को रद्द कर दिया था, हालांकि फैसले का तात्पर्य यह नहीं था कि कोर्ट ने व्यभिचार को मंजूरी दी है। यह फैसला व्यभिचार के लिए सशस्त्र बल कर्मियों के खिलाफ शुरु की गई कोर्ट मार्शल की कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगा।

    जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की पांच जजों की बेंच केंद्र सरकार की ओर से दायर विविध आवेदन का निस्तारण कर रही थी।

    केंद्र ने तर्क दिया था कि जोसेफ शाइन फैसले का हवाला देकर सशस्त्र बल न्यायाधिकरण ने कर्मियों के खिलाफ व्यभिचार के मामलों में की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द कर दिया था, जिसके मद्देनजर मौजूदा आवेदन दायर किया गया था।

    एएसजी ने बताया कि जोसेफ शाइन का फैसला आईपीसी की धारा 497 के पितृसत्तात्मक अर्थों पर आधारित था; हालांकि, सेना में की गई कार्रवाई जेंडर न्यूट्रल है और महिला अधिकारी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी हैं।

    सेना अधिनियम की धारा 45, जिसके तहत 'अशोभनीय आचरण' के लिए दंड का प्रावधान है, के अनुसार-

    कोई भी अधिकारी, जूनियर कमीशंड ऑफिसर या वारंट ऑफिसर, जो ऐसा व्यवहार करता है, जो उसकी स्थिति और उसके लिए अपेक्षित चरित्र के अनुरूप नहीं है, कोर्ट-मार्शल के तहत दोषी ठहराए जाने पर, यदि वह एक अधिकारी है, ‌डिसमिस होने या ऐसी कम सजा भुगतने के लिए उत्तरदायी होगा, जैसा कि इस अधिनियम में वर्णित है; और, यदि वह एक जूनियर कमीशंड ऑफिसर या एक वारंट ऑफिसर है तो उसे बर्खास्त किया जा सकता है या इस तरह के कम दंड का सामना करना पड़ सकता है जैसा कि इस अधिनियम में वर्णित है।

    केंद्र ने स्पष्टीकरण मांगा था कि ऐसे मामले में जहां अधिकारी पर अशोभनीय आचरण का आरोप लगाया जाता है, और इसमें व्यभिचार का कृत्य शामिल है, अधिकारियों को कार्रवाई करने से रोका नहीं जा सकता है।

    संवैधानिक बेंच ने कहा,

    "ऐसा नहीं है कि यह न्यायालय व्यभिचार को मंजूरी दे रहा है। इस न्यायालय ने पाया है कि व्यभिचार एक नैतिक दोष हो सकती है (माननीय सुश्री जस्टिस इंदु मल्होत्रा के अनुसार)। इस न्यायालय ने यह भी माना है कि यह विवाह के विघटन को सुनिश्चित करने के लिए एक आधार बना रहेगा। इसे एक नागरिक दोष के रूप में भी वर्णित किया गया है।"

    अदालत ने इस प्रकार स्पष्ट किया कि जोसेफ शाइन के फैसले का उन अधिनियमों में प्रासंगिक प्रावधानों के प्रभाव और संचालन से बिल्कुल भी संबंध नहीं था, जो आवेदक द्वारा हमारे सामने रखे गए हैं।

    केस ‌डिटेलः जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया | 2023 लाइवलॉ (SC) 117 | MA 2204 OF 2020 | 31 Jan 2023 |

    आदेश पढ़ने या डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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