असंबंधित मेल पते पर नोटिस जारी करना देय प्रेषण नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

29 Sept 2022 10:47 AM IST

  • असंबंधित मेल पते पर नोटिस जारी करना देय प्रेषण नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि असंबंधित ई-मेल पते पर ई-मेल-संलग्न इलेक्ट्रॉनिक नोटिस जारी करना ड्यू डिस्पेच नहीं है, इसलिए उक्त मामले में नोटिस 31 मार्च, 2021 को जारी हुआ, नहीं माना जा सकता।

    जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि चूंकि नोटिस की प्रमाणित प्रति ई-फाइलिंग पोर्टल पर निर्धारिती के रजिस्टर्ड खाते में रखी गई, इसलिए याचिकाकर्ताओं को नोटिस के बारे में पता चला। नोटिसों को उस तारीख को जारी किया गया माना जाएगा, जिस दिन निर्धारिती द्वारा अपने ई-फाइलिंग पोर्टल पर नोटिस पहली बार देखे गए है।

    कोर्ट ने याचिकाओं के बैच पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी करने की परिस्थितियों के हिसाब से निर्देश जारी किए।

    अदालत ने कहा कि जिन नोटिसों पर 1 अप्रैल, 2021 को या उसके बाद डिजिटल रूप से हस्ताक्षर किए गए हैं, उन्हें उस तारीख के लिए आयोजित किया जाता है, जिस पर उन्हें डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित किया गया, न कि 31 मार्च, 2021 को। याचिकाओं का निपटारा इस निर्देश के साथ किया गया कि नोटिस आयकर अधिनियम की धारा 148ए (बी) के तहत कारण बताओ नोटिस के रूप में माना जाएगा।

    अदालत ने पाया कि संबंधित जेएओ के पंजीकृत ई-मेल आईडी के माध्यम से भेजे गए नोटिस, हालांकि डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित नहीं हैं, उन्हें वैध माना जाता है। याचिकाओं का निपटारा जेएओ को आईटीबीए पोर्टल में दर्ज उनके प्रेषण की तारीख और समय को सत्यापित करने और निर्धारित करने के निर्देश के साथ किया गया। अगर प्रेषण की तारीख और समय 1 अप्रैल, 2021 को या उसके बाद दर्ज किया गया है तो नोटिस को धारा 148ए (बी) के तहत कारण बताओ नोटिस माना जाएगा।

    अदालत ने नोटिस को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा किया, जिन पर जेएओ को निर्देश दिया गया कि वे आईटीबीए पोर्टल में दर्ज किए गए प्रेषण की तारीख और समय को सत्यापित करने और निर्धारित करने के निर्देश के साथ इस फैसले में जारी होने की तारीख के रूप में निर्धारित करें। यदि प्रेषण की तारीख और समय 1 अप्रैल, 2021 को या उसके बाद दर्ज किया गया है तो नोटिस को धारा 148ए (बी) के तहत कारण बताओ नोटिस माना जाएगा।

    अदालत ने कहा कि नोटिस के मामले में जो बिना किसी रीयल-टाइम अलर्ट के केवल निर्धारिती के ई-फाइलिंग पोर्टल पर अपलोड किए गए, जेएओ को उस तारीख और समय को निर्धारित करने का निर्देश दिया गया, जब निर्धारिती ने ई-फाइलिंग पोर्टल में नोटिस देखे, जैसा कि आईटीबीए पोर्टल में दर्ज है।

    अदालत ने कहा कि जो नोटिस असंबंधित ई-मेल पतों पर भेजे गए, उन्हें जेएओ के निर्देश के साथ निपटाया जाता है, जिस तारीख को निर्धारिती द्वारा ई-फाइलिंग पोर्टल पर नोटिस को पहली बार देखा गया और जारी करने की तारीख पर विचार किया गया।

    आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 148 के तहत जारी नोटिस की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का बैच दायर किया गया, क्योंकि यह वित्त अधिनियम, 2021 द्वारा 1 अप्रैल, 2021 को इसके संशोधन से पहले है।

    1961 के अधिनियम की असंशोधित धारा 149(1) के अनुसार, प्रासंगिक निर्धारण वर्षों की समाप्ति से 4 वर्षों के भीतर पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही शुरू की जा सकती है। पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही प्रासंगिक निर्धारण वर्ष की समाप्ति से 6 वर्षों के भीतर शुरू की जा सकती है यदि कर के लिए प्रभार्य आय जो निर्धारण से बच गई है, उस वर्ष के लिए एक लाख रुपये या उससे अधिक है। पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही प्रासंगिक निर्धारण वर्ष की समाप्ति से 16 वर्षों के भीतर शुरू की जा सकती है, यदि कर के लिए प्रभार्य किसी विदेशी संपत्ति के संबंध में आय निर्धारण से बच गई है।

    आयकर अधिनियम, 1961 की संशोधित धारा 149(1)(a) के तहत 1 अप्रैल 2021 से प्रासंगिक निर्धारण वर्ष की समाप्ति से 3 वर्षों के भीतर पुनर्मूल्यांकन शुरू किया जा सकता है। इस प्रकार, 1961 के आयकर अधिनियम की संशोधित धारा 149(1)(a) के अनुसार संशोधित धारा 149(1)(a) के तहत संबंधित AY के अंत से 3 वर्षों के भीतर पुनर्मूल्यांकन शुरू किया जा सकता है। इस प्रकार, 1 अप्रैल, 2021 को संशोधित धारा 149(1)(ए) के तहत पुनर्मूल्यांकन केवल निर्धारण वर्ष 2018-19 तक फिर से खोला जा सकता है और सभी पूर्व निर्धारण वर्षों को रोक दिया गया है।

    उठाया गया मुद्दा यह है कि क्या नोटिस 31 मार्च, 2021 को या उससे पहले या उसके बाद जारी किए गए। यदि न्यायालय यह मानता है कि नोटिस वैध रूप से 31 मार्च, 2021 को या उससे पहले असंशोधित धारा 149 के तहत जारी किए गए तो पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही धारा 147, 148, 149 और 151 के असंशोधित प्रावधानों द्वारा शासित होगी, क्योंकि वे एक अप्रैल, 2021 से पहले है।

    अदालत ने माना कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 148 के तहत नोटिस को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार सही पते पर भेजा जाना चाहिए, अन्यथा, पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही कानून में अमान्य होगी।

    केस टाइटल: सुमन जीत अग्रवाल बनाम आईटीओ

    साइटेशन: डब्ल्यू.पी.(सी) 10/2022, सीएम एपीपीएल.16/2022

    दिनांक: 27.09.2022

    याचिकाकर्ता के वकील: एएसजी अनुज अग्रवाल

    प्रतिवादी के लिए वकील: सीनियर सरकारी वकील संजय कुमार

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