क्या हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की अर्ज़ी दाखिल करने के लिए एक साल की प्रतीक्षा अवधि से छूट देने के लिए 'सेक्स से इनकार करना' पर्याप्त कारण है? दिल्ली हाईकोर्ट करेगा मामले पर विचार
LiveLaw News Network
26 Nov 2021 12:08 PM GMT
दिल्ली हाईकोर्ट इस मुद्दे पर विचार करेगा कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14 के तहत विवाहित पक्षों द्वारा एक-दूसरे के साथ सेक्स करने से इनकार करना 'अपवादात्मक या असाधारण कठिनाई' पैदा करने के लिए पर्याप्त है, ताकि एक तलाक की अर्ज़ी दायर करने के लिए एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि से छूट दी जा सके या उस अवधि को वेव किया जा सके?
यह देखते हुए कि इस मुद्दे पर विचार करने की आवश्यकता है, न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने मामले में एमिकस क्यूरी के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रीतेश कपूर को नियुक्त किया है।
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 11 जनवरी 2022 को तय करते हुए आदेश दिया है कि ''अगली तारीख के लिए लिए एमिकस क्यूरी को नोटिस जारी किया जाए।''
हाईकोर्ट फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत दायर एक अपील पर विचार कर रही है, जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई है। फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 बी के तहत आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए दायर अर्ज़ी के साथ-साथ धारा 14 के तहत दायर एक आवेदन को भी खारिज कर दिया था।
फैमिली कोर्ट ने यह कहते हुए इस मामले को खारिज कर दिया था कि पक्षकारों ने 4 अप्रैल, 2021 को शादी की थी,इसलिए वह एक वर्ष की समाप्ति से पहले तलाक की अर्ज़ी दायर नहीं कर सकते हैं (जैसा कि एचएमए की धारा 14 के तहत निर्धारित है)।
गौरतलब है कि इस प्रावधान में यह परंतुक है कि अदालत याचिकाकर्ता के लिए 'असाधारण कठिनाई' होने या प्रतिवादी की ओर से 'असाधारण अनैतिकता' होने के आधार पर शादी की तारीख से एक साल पूरा होने से पहले ही एक अर्ज़ी पेश करने की अनुमति दे सकती है।
अपीलकर्ताओं ने अलग रहने का दावा करते हुए (14 अप्रैल, 2021 से एक ही घर में, और उसके बाद जुलाई, 2021 से अलग-अलग स्थानों पर रह रहे हैं) तर्क दिया है कि अधिनियम की धारा 14 के परंतुक में बनाए गए अपवाद उनके मामले में लागू होते हैं।
हालांकि फैमिली कोर्ट ने माना था कि दोनों पक्ष असाधारण कठिनाई या असाधारण अनैतिकता का मामला बनाने में असमर्थ रहे हैं और इस तरह उनकी अर्ज़ी और आवेदन को खारिज कर दिया गया।
मामले की सुनवाई के दौरान, अपीलकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता राजेश अग्रवाल ने केरल हाईकोर्ट के 2013 के एक फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि शादी के तुरंत बाद तलाक दिया जा सकता है अगर पति और पत्नी के बीच सेक्स का पूर्ण अभाव है।
अपनी दलीलों के समर्थन में उन्होंने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के भी एक फैसले का हवाला दिया,जिसमें कहा गया है कि एक-दूसरे को सेक्स से इनकार करना, पक्षकारों के लिए असाधारण कठिनाई या असाधारण अनैतिकता होने के लिए पर्याप्त है।
अग्रवाल ने यह भी कहा कि पारिवारिक मामलों में अदालतों का रुख उदार रहता है। इसे सुनकर, न्यायमूर्ति सांघी ने मौखिक रूप से कहा किः
''उदार दृष्टिकोण का मतलब यह नहीं है कि हम अधिनियम की धारा 14 के तहत निर्धारित एक वर्ष को इतनी आसानी से माफ कर देंगे या उससे छूट दे देंगे।''
कोर्ट ने यह भी कहा,
''आप यह नहीं कह सकते है कि क्रूरता असाधारण कठिनाई है। संसद ने जानबूझकर असाधारण कठिनाई शब्द का प्रयोग किया है न कि क्रूरता का। हम दो निर्णयों से सहमत नहीं हो सकते हैं। हम एक एमिकस क्यूरी नियुक्त करेंगे और इस पर आगे विचार करेंगे।''
अब मामले को 11 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
केस का शीर्षक- रिशु अग्रवाल बनाम मोहित गोयल
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