'पूछताछ आवश्यक नहीं' : केरल हाईकोर्ट ने धार्मिक द्वेष को बढ़ावा देने के आरोपी ईसाई धर्म प्रचारक को दी अग्रिम ज़मानत

LiveLaw News Network

24 Sep 2020 6:18 AM GMT

  • पूछताछ आवश्यक नहीं :  केरल हाईकोर्ट ने धार्मिक द्वेष को बढ़ावा देने के आरोपी ईसाई  धर्म प्रचारक को दी अग्रिम ज़मानत

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने 22 सितंबर (मंगलवार) को धार्मिक द्वेष को बढ़ावा देने के आरोपी ईसाई उपदेशक को अग्रिम जमानत दे दी।

    न्यायमूर्ति अशोक मेनन की एकल पीठ इस मामले में आवेदक की तरफ से दायर अग्रिम जमानत आवेदन पर सुनवाई कर रही थी। आवेदक को एर्नाकुलम सेंट्रल पुलिस स्टेशन में दर्ज अपराध संख्या 582/2020 में आरोपी बनाया गया था। उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए के तहत दंडनीय अपराध का मामला दर्ज किया गया है।

    अभियोजन पक्ष का मामला

    अभियोजन का मामला, संक्षेप में यह था कि आवेदक यूट्यूब चैनल के माध्यम से अपने धार्मिक विचारों का प्रचार कर रहा था और ईसाई धर्म के पक्ष में बोलते हुए, वह धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दे रहा था।

    यह भी आरोप लगाया गया था कि वह इस्लाम के प्रचारकों की इस तरह से आलोचना करता रहा है कि वह इस्लाम और ईसाई धर्म से जुड़े लोगों के बीच वैमनस्य या घृणा की भावना फैला रहा है और इस तरह से उसने आईपीसी की धारा 153ए के तहत एक दंडनीय अपराध किया है।

    आवेदक की दलीलें

    आवेदक ने न्यायालय के समक्ष कहा कि उसके मन में कोई दुर्भावना नहीं है और अन्य धार्मिक नेताओं के संबंध में उसके सभी तर्क विचारधाराओं पर आधारित हैं। वह सिर्फ संविधान के तहत गारंटीकृत अपने अधिकारों और बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग कर रहा है।

    इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि यूट्यूब चैनल में की जाने वाली उनकी बहस जनता के समक्ष उपलब्ध है। ऐसे में ईसाई या इस्लाम से संबंधित व्यक्तियों के बीच नफरत पैदा करने के लिए उनकी ओर से कोई प्रयास नहीं किया गया है।

    इसलिए, उन्होंने कहा कि उनको हिरासत में लेकर पूछताछ करने की आवश्यकता नहीं है और उन्हें अग्रिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

    कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

    आवेदक द्वारा पेश की गई विभिन्न सामग्रियों और लिंक आदि को देखने के बाद न्यायालय का मत था कि आवेदक ईसाई धर्म का प्रचार कर रहा है।

    न्यायालय ने कहा कि यह सच है कि उसने इस्लाम के साथ धर्म की तुलना में कई बहस की हैं और इस्लामिक धर्म के प्रचारकों का खंडन भी किया है।

    हालाँकि, अदालत ने आवेदक पर लगाई गई आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध की जटिलता का विवरण नहीं दिया।

    कोर्ट ने कहा कि-

    ''यह कहना पर्याप्त होगा कि आवेदक की कस्टोडियल पूछताछ आवश्यक नहीं है। उसकी सभी बहस और बयान यूट्यूब अपलोड के रूप में अच्छी तरह से संरक्षित हैं, और इसके अलावा ऐसा कुछ नहीं है,जिसके बारे में जांच अधिकारियों द्वारा पता लगाया जाना है।''

    इसलिए, अदालत ने कहा कि आवेदक,विशेष रूप से वर्तमान महामारी की स्थिति को देखते हुए पूर्व-गिरफ्तारी अर्थात अग्रिम जमानत का हकदार है।

    इस प्रकार जमानत आवेदन को स्वीकार कर लिया गया और आवेदक को तीन सप्ताह के भीतर जांच अधिकारी के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है।

    अदालत ने निर्देश दिया है कि पूछताछ के बाद आवेदक को गिरफ्तार किए जाने की स्थिति में,उसे 50,000 रूपये - (केवल पचास हजार रुपए) के मुचलके व दो जमानती पेश करने पर जमानत पर रिहा कर दिया जाए।

    वहीं उसे निम्नलिखित शर्तों का भी पालन करना होगा-

    1- जब भी जांच अधिकारी जांच के लिए बुलाए,उसे जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना होगा और जांच में सहयोग करना होगा।

    2- वह सबूतों से छेड़छाड़ न करें या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगा।

    3- वह जमानत की अवधि के दौरान इस तरह के किसी भी तरह के अपराध में शामिल नहीं होगा। उपरोक्त जमानत शर्तों में से किसी का भी उल्लंघन किए जाने पर, अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करवाने के लिए न्यायिक अदालत से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र है।

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें।



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