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ज़िला जजों का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सीमित प्रतिस्पर्धी परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों के बीच वरिष्ठता का आधार एलसीई में मेरिट होना चाहिए न कि पूर्व वरिष्ठता

LiveLaw News Network
1 May 2020 4:30 AM GMT
ज़िला जजों का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सीमित प्रतिस्पर्धी परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों के बीच वरिष्ठता का आधार एलसीई में मेरिट होना चाहिए न कि पूर्व वरिष्ठता
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज़िला जजों के बीच वरिष्ठता का निर्धारण सीमित प्रतिस्पर्धी परीक्षा में उनके मेरिट के आधार पर होना चाहिए न कि उनके पूर्व कैडर में वरिष्ठता के आधार पर।

दिनेश कुमार गुप्ता बनाम राजस्थान हाईकोर्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट की 15 मई 2019 को बनाई ज़िला जजों की वरिष्ठता की सूची में हस्तक्षेप किया ताकि इसमें एलसीई उम्मीदवारों को उचित जगह दी जा सके।

ज़िला जजों को प्रोमोशन में एलसीई के स्ट्रीम को ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2002 के फ़ैसले बाद शुरू किया गया। 25% पद एलसीई स्ट्रीम के लिए रखे गए ताकि सिविल जज के कैडर में प्रतिभावान उम्मीदवारों को मौक़ा दिया जा सके और ज़िला जजों के रूप में उनकी नियुक्ति हो सके।

राजस्थान हाईकोर्ट ने जो सूची बनाई थी उसमें एलसीई उम्मीदवारों को पूर्व कैडर में उनकी वरिष्ठता के आधार पर उनको जगह दी गई थी और परीक्षा में उनके मेरिट का कोई ख़याल नहीं रखा गया था। कई उम्मीदवारों ने सुप्रीम कोर्ट में इस बात को चुनौती दी।

न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट ने जो सूची बनाई है उससे एलसीई का उद्देश्य पराजित हो जाता है। अदालत ने कहा कि ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन के मामले में जो फ़ैसला आया था उसमें साफ़ कहा गया था कि एलसीई का आधार आवश्यक रूप से मेरिट होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट एलसीई के सही चरित्र और इस श्रेणी में कुछ कोटा के आरक्षण को महत्व देने में चूक की है।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि 15 मार्च 2019 को जो वरिष्ठता सूची जारी की गई उसको सिर्फ़ तभी संशोधित माना जाए जब इसमें एलसीई के माध्यम से चुने गए उम्मीदवारों को मेरिट के आधार पर उचित जगह दी जाती है न कि पूर्व कैडर में उनकी वरिष्ठता के आधार पर।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संशोधन फ़ैसले के चार सप्ताह के भीतर किया जाए। इस सूची को अन्य आधार पर जो चुनौती दी गई थी उसे शीर्ष अदालत ने ख़ारिज कर दिया।

इसी मामले में एक अन्य मुद्दे पर अपने फ़ैसले में पीठ ने कहा कि अतिरिक्त जज के रूप में तदर्थ प्रोन्नति को ज़िला जज में वरिष्ठता के रूप में नहीं गिना जाएगा

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