अंतर-जातीय विवाह का मामला- लड़की कोई मवेशी नहीं बल्कि एक जीवित स्वतंत्र आत्मा है;जिसके अपने अधिकार हैं और अपनी इच्छाओं के अनुसार स्वंय के विवेक का उपयोग कर सकती हैः हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 Feb 2021 1:30 PM GMT

  • अंतर-जातीय विवाह का मामला- लड़की कोई मवेशी नहीं बल्कि एक जीवित स्वतंत्र आत्मा है;जिसके अपने अधिकार हैं और अपनी इच्छाओं के अनुसार स्वंय के विवेक का उपयोग कर सकती हैः हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    अंतर जाति के कारण किसी विवाह का विरोध आध्यात्मिक और साथ ही धार्मिक अज्ञानता का नतीजा है, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार (22 फरवरी) को एक फैसला सुनाते हुए कहा कि एक लड़की कोई मवेशी या निर्जीव वस्तु नहीं है बल्कि एक जीवित स्वतंत्र आत्मा है,जिसके पास दूसरों की तरह अधिकार हैं और विवेक की उम्र प्राप्त करने पर वह अपनी इच्छा के अनुसार अपने विवेक का उपयोग कर सकती है।

    न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर की खंडपीठ एक उच्च जाति की महिला (राजपूत) की निचली जाति के व्यक्ति के साथ विवाह से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    कोर्ट के समक्ष मामला

    याचिकाकर्ता (संजीव कुमार) ने एक याचिका दायर करते हुए दावा किया था कि कोमल परमार/महिला को प्रतिवादी नंबर 3, उसके परिवार के सदस्यों और दोस्तों ने उसकी इच्छाओं के खिलाफ बंधक बना लिया है, ताकि उसके साथ याचिकाकर्ता के विवाह को रोका जा सके।

    इसके अलावा, यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता उस जाति से संबंध रखता है, जिसे कोमल परमार के परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों द्वारा नीची जाति माना जाता है और यही कारण है कि सुश्री कोमल परमार को जबरन बंधक बना लिया गया है।

    इस प्रकार याचिकाकर्ता ने सुश्री कोमल परमार को पेश करने और प्रतिवादी-राज्य को याचिकाकर्ता व उसके परिवार के सदस्यों को उचित सुरक्षा प्रदान करने के लिए निर्देश देने की मांग की क्योंकि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है।

    न्यायालय के आदेश के बाद कोमल परमार को न्यायालय के समक्ष पेश किया गया और न्यायालय ने उसकी इच्छाओं का पता लगाया, जिसमें उसने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और ग्रामीणों द्वारा उसका अपहरण करने और उसके साथ किए गए व्यवहार की घटना का समर्थन किया।

    कोमल परमार ने भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि शादी का मुख्य विरोध जाति में अंतर होना है और उसके पिता द्वारा दी गई उन दलीलों का कोई मतलब नहीं है,जिसमें याचिकाकर्ता के आथिक रूप से स्थिर न होने और लड़की के मानसिक रूप से कमजोर होने की बात कही गई हैं। उसने बताया कि इन दलीलों के जरिए उनकी शादी को टालने का प्रयास किया जा रहा है।

    कोर्ट का अवलोकन

    किसी व्यक्ति को मिली विचार की स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति की एक मूलभूत विशेषता है। यह रेखांकित करते हुए न्यायालय ने प्रारंभ में ही कहा कि,

    ''हम संविधान द्वारा शासित राज्य में रह रहे हैं और जाति के आधार पर जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करके भेदभाव करना भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।''

    श्रीमद् भागवत गीता का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा कि जाति के आधार पर भेदभाव कभी-कभी कुछ स्मृतियों और पुराणों के आधार पर स्थापित किया जाता है, परंतु ऐसा करते समय इस मूल सिद्धांत को भूल जाते हैं कि धार्मिक मानदंडों का सर्वोच्च स्रोत वेद हैं और स्मृतियों व पुराणों सहित किसी भी अन्य धार्मिक ग्रंथों में लिखी कोई भी बात, जो वेदों में प्रतिपादित सिद्धांतों के विपरीत है, उसे वेदों के लिए अल्ट्रा वायर्स माना जाता है और इस प्रकार वह धर्म के विपरीत भी है,जिसका त्याग करना है।

    न्यायालय ने आगे कहा कि जाति के आधार पर भेदभाव न केवल संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन है, बल्कि वास्तविक धर्म के विरोध में भी है।

    ''भारतीय समाज में विवाह के अधिकार को मान्यता प्राप्त''

    इसके अलावा, विवाह के अधिकार या वैध कारणों से, विवाह न करने का अधिकार, साथ ही जीवनसाथी चुनने का अधिकार, प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में एक मान्यता प्राप्त अधिकार है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने यह भी कहा कि प्राचीन भारतीय समाज में अंतरजातीय विवाह भी स्वीकार्य था और मध्ययुगीन काल की गलत धारणाओं ने हमारी संस्कृति और सभ्यता के समृद्ध मूल्यों और सिद्धांतों को धूमिल किया है।

    इस संबंध में न्यायालय ने शांतनु व सत्यवती और दुष्यंत व शकुंतला के विवाह के उदाहरणों का हवाला दिया,जिन्हें अंतरजातीय विवाह कहा जाता है।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने सती व भगवान शिव, रुक्मणी व भगवान कृष्ण और सुभद्रा व अर्जुन के विवाह का भी उल्लेख किया,

    ''पसंद के व्यक्ति से शादी करने का सबसे पुराना उदाहरण भगवान शिव के साथ सती का विवाह है, जो सती ने अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति की अवज्ञा और इच्छा के विरुद्ध जाकर किया था। लड़की की पसंद के अनुसार जीवनसाथी चुनने का 5000 साल से अधिक पुराना उदाहरण रुक्मणी और भगवान कृष्ण का है। रुक्मणी भगवान कृष्ण से शादी करना करना चाहती थी, जबकि उसका भाई उसका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाह रहा था। जिस कारण रुक्मणी ने भगवान कृष्ण को एक पत्र लिखा कि वह उसे ले जाए और अपनी जीवनसाथी बना लें और भगवान कृष्ण आकर उसे मंडप से ले गए। इसी तरह का उदाहरण सुभद्रा और अर्जुन का विवाह है, जहाँ परिवार के सदस्य सुभद्रा का विवाह कहीं और करने का इरादा कर रहे थे, जबकि सुभद्रा ने अर्जुन को अपना जीवनसाथी चुना था।''

    कोर्ट ने यह भी कहा कि,

    ''प्राचीन पश्चिमी विचार के विपरीत, जिसमें माना जाता था कि एक महिला को भगवान ने पुरुष के भोग के लिए बनाया है, भारत में, एक महिला को हमेशा वैदिक युग से ही पुरुष के समान ही नहीं बल्कि पुरूष से उच्च पद पर माना जाता था,सिवाय मध्ययुगीन काल की बुराइयों को छोड़कर, जिन्हें वर्तमान युग में मिटाना आवश्यक है।''

    कोर्ट का आदेश

    न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि कोमल ने साफ कहा है कि वह याचिकाकर्ता से शादी करना चाहती है और उसने इस संबंध में अच्छे से निर्णय ले लिया है। कोर्ट ने कहा कि,

    ''कोमल बालिग है, अपने फैसले लेने में सक्षम हैं और संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अधिकार की हकदार हैं ताकि वह ठीक वैसे ही अपना जीवन व्यतीत कर सकें जैसा वह चाहती है।''

    उसने अदालत के समक्ष यह भी कहा कि वह माता-पिता के साथ रहने का विकल्प चुनकर फिर से पुराने आघात का सामना नहीं करना चाहती है, परंतु साथ ही उसने यह भी व्यक्त किया कि उसके मन में परिवार के प्रति गहरा प्रेम है और दूसरों के प्रति सम्मानभाव भी। इसलिए वह उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई शुरू नहीं चाहती है।

    इस प्रकार, तत्काल याचिका का निटपाते हुए कोर्ट ने कोमल परमार को स्वतंत्रता दी है कि वह अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकती है और निवास कर सकती है। प्रतिवादी नंबर 1 व 2 को निर्देश जारी किया गया है कि वह याचिकाकर्ता और उसके परिवार की जान और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करें। वहीं कोमल परमार को भी सुरक्षा दी जाए और जब भी आवश्यक हो, उनको जल्दी से सहायता प्रदान की जाए।

    हालाँकि, कोर्ट के समक्ष कोमल ने अपने माता-पिता या रिश्तेदारों या परिवार के दोस्तों के साथ नहीं बल्कि अपनी दोस्त पूजा देवी के घर में स्वतंत्र रूप से जाने की इच्छा व्यक्त की, जो याचिकाकर्ता (संजीव कुमार) की बहन भी है और उसके बाद जलारी गांव (हिमाचल प्रदेश में) जाने की बात कही।

    इसके बाद अदालत ने पुलिस अधीक्षक शिमला और हमीरपुर, एसएचओ सदर (शिमला), जिला शिमला और नादौन, जिला हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश को निर्देश दिया कि वह पुलिस कर्मी प्रतिनियुक्त करें ताकि वह कोमल के साथ अदालत परिसर से उस स्थान तक जा सकें,जहां वह जाने की इच्छा रखती है।

    केस का शीर्षक - संजीव कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य व अन्य,[Cr.Writ Petition No.2 of 2021]

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