'बौद्धिक स्वतंत्रता को केवल इसलिए नहीं दबाया जा सकता कि व्यक्त किए गए विचारों से कुछ लोग असहमत हैं': दिल्ली हाईकोर्ट सलमान खुर्शीद की किताब पर प्रतिबंध लगाने से इनकार किया
LiveLaw News Network
27 Nov 2021 2:21 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा लिखित "सनराइज ओवर अयोध्या" पुस्तक के प्रकाशन और बिक्री को रोकने के निर्देश की मांग वाली याचिका को खारिज करते कर दिया।
हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हु
"विचारों और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की स्वतंत्रता को गैर-अनुरूपता के विरोध के चलते प्रतिबंधित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने आगे कहा कि समसामयिक मामलों या ऐतिहासिक घटनाओं के संबंध में असहमति या विरोध का अधिकार और व्यक्त करने का अधिकार एक जीवंत लोकतंत्र का सार है।
कोर्ट ने कहा,
"इस न्यायालय की सुविचारित राय में संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त और गारंटी के रूप में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को न्यायालयों द्वारा उत्साहपूर्वक संरक्षित किया जाना चाहिए जब तक कि यह निर्णायक रूप से स्थापित नहीं हो जाता है कि कार्य संवैधानिक या वैधानिक प्रतिबंधों का उल्लंघन होगा। अगर रचनात्मक आवाजों या बौद्धिक स्वतंत्रता को दबाया गया या उन्हें अभिव्यक्त करने से रोका गया तो कानून के शासन द्वारा शासित लोकतंत्र को गंभीर संकट में डालने जैसा होगा।"
"हमारे संविधान द्वारा गारंटीकृत उस मौलिक और कीमती अधिकार को केवल कुछ लोगों के लिए अप्रिय या असहमत होने की कथित आशंका पर न तो प्रतिबंधित किया जा सकता है और न ही अस्वीकार किया जा सकता है। स्वतंत्र रूप से विचारों और विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता को कुछ असहमति के चलते प्रतिबंधित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"
एडवोकेट विनीत जिंदल ने एडवोकेट राज किशोर चौधरी के माध्यम से याचिका दायर कर आरोप लगाया कि खुर्शीद ने अपनी किताब में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे समूहों से की है।
पुस्तक का विवादित अंश है:
"भारत के साधु-संत सदियों से जिस सनातन धर्म और मूल हिंदुत्व की बात करते आए हैं, आज उसे कट्टर हिंदुत्व के ज़रिए दरकिनार किया जा रहा है। आज हिंदुत्व का एक ऐसा राजनीतिक संस्करण खड़ा किया जा रहा है, जो इस्लामी जिहादी संगठनों आईएसआईएस और बोको हराम जैसा है।"
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप और आशंकाएं खुर्शीद द्वारा लिखी गई कृति के समग्र अध्ययन पर आधारित नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"वास्तव में पुस्तक को पूरी तरह से विचार के लिए न्यायालय के समक्ष भी नहीं रखा गया है। पूरी रिट याचिका प्रकाशन के अध्याय छह में आने वाले कुछ उद्धरणों पर आधारित है। यहां तक कि उस अध्याय को इस न्यायालय के समक्ष पूरी तरह से नहीं रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार माना है कि वर्तमान जैसी चुनौतियों से निपटने के दौरान, याचिकाकर्ता के लिए यह स्थापित करना अनिवार्य है कि साहित्यिक कार्यों के व्यापक विचार पर यह प्रकट होता है कि यह उन प्रतिबंधों का उल्लंघन करेगा जिन्हें साहित्यिक स्वतंत्रता के अभ्यास पर लागू करने के लिए मान्यता प्राप्त है।"
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा,
''लोगों से किताब न खरीदने या इसे न पढ़ने के लिए कहो।''
याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने वोल्तेयर के शब्दों का उद्धरण देते हुए कहा:
"जबकि मैं आपकी बात से पूरी तरह असहमत हूं, मैं इसे कहने के आपके अधिकार की मृत्यु तक बचाव करूंगा।"
केस शीर्षक: विनीत जिंदल बनाम भारत संघ और अन्य।
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