अगर प्रीमियम चेक डिसऑनर होने पर पॉलिसी रद्द करने की सूचना दुर्घटना से पहले बीमित व्यक्ति को नहीं दी गई है तो बीमाकर्ता थर्ड पार्टी को मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार : कर्नाटक हाईकोर्ट

Shahadat

9 Dec 2022 5:07 AM GMT

  • अगर प्रीमियम चेक डिसऑनर होने पर पॉलिसी रद्द करने की सूचना दुर्घटना से पहले बीमित व्यक्ति को नहीं दी गई है तो बीमाकर्ता थर्ड पार्टी को मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनी थर्ड पार्टी को मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, भले ही बीमाधारक द्वारा प्रीमियम के लिए जारी किया गया चेक डिसऑनर हो गया हो, अगर इस तरह के तथ्य को मोटर दुर्घटना होने से पहले पॉलिसी धारक को सूचित नहीं किया गया।

    जस्टिस एचपी संदेश की एकल न्यायाधीश पीठ ने क्लेम ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ दावेदार द्वारा दायर की गई अपील स्वीकार करते हुई उक्त टिप्पणी की।

    दावेदार के बीमा कंपनी को दायित्व से मुक्त करने पर कोर्ट ने कहा,

    "अधिकरण ने देयता के मुद्दे पर विचार करते हुए केवल चेक डिसऑनर के संबंध में बैंक के मेमो पर विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि बीमा कंपनी ने चेक डिसऑनर के साथ-साथ वाहन के मालिक को पॉलिसी रद्द करने के बारे में सूचित किया, लेकिन चर्चा नहीं की गई कि इसे दिया गया या नहीं। बस इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पॉलिसी लागू नहीं है...अदालत के समक्ष कोई सामग्री नहीं है कि उन्होंने बीमाधारक को इसकी सूचना दी।"

    बीमा कंपनी ने प्रस्तुत किया कि जहां पॉलिसीधारक द्वारा प्रीमियम के रूप में दी गई राशि बीमा कंपनी को प्राप्त ही नहीं हुई तो पॉलिसी शुरू से ही शून्य मानी जाएगी।

    हालांकि, बेंच ने कहा कि कंपनी ने बीमाधारक को भेजी गई सूचना के संबंध में पावती रसीद पेश नहीं की और न ही यह उसका दावा है कि बीमाधारक को व्यक्तिगत रूप से सूचित किया गया।

    पीठ ने आगे ऐसे मामलों में जनहित तत्व का हवाला देते हुए कहा,

    "सार्वजनिक हित जो बीमा पॉलिसी से काम करता है, स्पष्ट रूप से प्रबल होना चाहिए ... ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी बनाम इंद्रजीत कौर और अन्य पर भरोसा किया गया, जहां यह माना गया कि भले ही बीमाकर्ता प्रीमियम प्राप्त न करने के लिए पॉलिसी से बचने का हकदार है, यह थर्ड पार्टी के जोखिम के लिए उत्तरदायी है, क्योंकि बीमा पॉलिसी द्वारा जनहित को बीमाकर्ता के हित पर प्रबल होना चाहिए।

    तदनुसार, न्यायालय ने कहा,

    "मामले में भी मैंने पहले ही बताया कि सूचना देने के लिए कोई दस्तावेज नहीं रखा गया और इसे बीमाधारक द्वारा स्वीकार किया गया और जब तक कि यह बीमाधारक तक नहीं पहुंच जाता, तब तक बीमा कंपनी देयता से बच नहीं सकती है। मैंने पहले ही इंगित कर दिया कि ट्रिब्यूनल ने बीमाधारक को नोटिस पहुंचने के बारे में कुछ भी चर्चा नहीं की। ऐसे परिस्थितियों में बीमा कंपनी के तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और ट्रिब्यूनल ने बीमाकर्ता के बजाय बीमाधारक पर देयता तय करने में त्रुटि की है। इसलिए दावेदार बीमा कंपनी पर दायित्व तय करने के लिए मामला बनाया है।"

    केस टाइटल: श्रीकांत एमआर बनाम गीता व अन्य

    केस नंबर : एम.एफ.ए. सं.7043/2014

    साइटेशन: लाइवलॉ (कर) 505/2022

    आदेश की तिथि: 2 दिसंबर, 2022

    उपस्थिति: अपीलकर्ता के वकील के वी श्यामाप्रसाद और ओ. महेश, आर2 के वकील।

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