'हिन्दुत्व' का अपमान कोई धार्मिक अपमान नहीं कि आईपीसी की धारा 295-ए लग सके' : अभिनव चंद्रचूड़ ने FIR निरस्त करने की मांग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी

LiveLaw News Network

16 Dec 2020 5:20 AM GMT

  • हिन्दुत्व का अपमान कोई धार्मिक अपमान नहीं कि आईपीसी की धारा 295-ए लग सके : अभिनव चंद्रचूड़ ने FIR निरस्त करने की मांग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी

    'हिन्दुत्व कोई धर्म नहीं और इसके अपमान को धर्म का अपमान नहीं कहा जा सकता,' यह दलील एडवोकेट डॉ. अभिनव चंद्रचूड़ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष उस वक्त दी, जब वह एफआईआर निरस्त करने संबंधी एक याचिका की सुनवाई के दौरान पेश हो रहे थे।

    उन्होंने दलील दी कि 'हिन्दुत्व' को एक दर्शन, जीवन पद्धति अथवा एक राजनीतिक दल की प्रचण्ड विचारधारा के रूप में देखा जा सकता है। डॉ. चंद्रचूड़ ने कहा कि जब कोई व्यक्ति 'हिन्दुत्व' का अपमान करता है या यहां तक कि शायद 'हिन्दुत्व' के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करता है तो भी वह किसी धर्म का अपमान नहीं करता, बल्कि वह राजनीतिक दर्शन का अपमान होता है। इस तरह यह अपराध भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295-ए के तहत नहीं कहा जा सकता।

    उन्होंने यह दलील बेंगलुरु के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर आपत्तिजनक प्लेकार्ड पकड़े होने के कारण एक विधि छात्रा के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 295-ए, 153-ए, 143, 149 और 448 के तहत दर्ज दो प्राथमिकियों को निरस्त करने की मांग करते हुए दी।

    उन्होंने कहा कि जहां तक आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध की बात है तो इस बारे में स्थापित कानून यह है कि इसमें दो समुदायों का शामिल होना आवश्यक है। इस मामले में, दो समुदाय शामिल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि महज एक समुदाय के अपमान से आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध नहीं बनता।

    उन्होंने कहा,

    "यदि एफआईआर के विषय वस्तुओं को भी मान भी लिया जाये तो भी आईपीसी की धारा 153-ए और 295-ए के तहत अपराध नहीं बनता।"

    न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की बेंच से डॉ. चंद्रचूड़ ने इस मामले में अपनी दलीलों के समर्थन में उद्धरणों (साइटेशन) को रिकॉर्ड पर लाने के लिए थोड़े समय के लिए सुनवाई स्थगित करने की मांग की, उसके बाद बेंच ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 21 दिसम्बर की तारीख मुकर्रर कर दी। अभियोजन पक्ष ने भी इन दलीलों के जवाब के लिए कुछ समय मांगा था।

    कॉलेज के प्रिंसिपल की उस शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गयी थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया गया था कि कुछ विद्यार्थी दिसम्बर 2019 में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए कॉलेज परिसर में गैर-कानूनी तरीके से इकट्ठा हुए थे।

    शिकायत के अनुसार, कुछ विद्यार्थियों के हाथों में प्लेकार्ड थे, जिन पर 'Fuck Hindutva' लिखा था। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि यह संदेश समुदायों के बीच दुश्मनी बढ़ाते हैं और धार्मिक अपमान करते हैं, इसिलए मामले में आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू होती है।

    सत्र अदालत ने 31 जनवरी 2020 को याचिकाकर्ता (छात्रा) की अग्रिम जमानत मंजूर कर ली थी। बाद में, उसने प्राथमिकियां रद्द करने को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    छात्रा की ओर से दलील दी गयी है कि उसके खिलाफ की गयी प्राथमिकी कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है, क्योंकि याचिकाकर्ता (छात्रा) कथित प्रदर्शन स्थल पर मौजूद नहीं थी। उसका कहना है कि 20 दिसम्बर 2019 को जब प्रदर्शन हुआ था, उस वक्त वह अपने इंस्टीट्यूट में एक दूसरे इवेंट में हिस्सा ले रही थी, जिसे वह खुद ही आयोजित कर रही थी। याचिका में कहा गया है कि यद्यपि प्रिंसिपल ने कथित तौर पर प्लेकार्ड हाथों में लेने वाले कुछ विद्यार्थियों को नामजद किये हैं, लेकिन याचिका के नाम का उल्लेख प्राथमिकी में नहीं किया गया है।

    आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत जारी आदेशों के उल्लंघन के लिए आईपीसी की धारा 143 और 149 के तहत दर्ज अपराधों को लेकर कहा गया है कि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जारी आदेश को गैर-कानूनी करार देते हुए निरस्त कर दिया है।

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