'सिंगल मदर्स की निजता के अधिकार का उल्लंघन': जन्म प्रमाण पत्र में पिता के नाम की आवश्यकता के नियम के खिलाफ केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर

LiveLaw News Network

23 July 2021 9:45 AM GMT

  • सिंगल मदर्स की निजता के अधिकार का उल्लंघन: जन्म प्रमाण पत्र में पिता के नाम की आवश्यकता के नियम के खिलाफ केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर

    केरल हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है,जिसमें केरल जन्म और मृत्यु पंजीकरण नियमों को चुनौती दी गई है क्योंकि इन नियमों के तहत बच्चे के जन्म को पंजीकृत करवाने के लिए पिता के नाम का उल्लेख करना अनिवार्य है। संक्षेप में मामला यह है कि इस तरह की शर्त एकल माताओं (सिंगल मदर्स) के लिए भेदभावपूर्ण है।

    याचिकाकर्ता कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से गर्भवती हुई है, जिसमें एक डोनर से शुक्राणु को स्वीकार करना शामिल है और उसकी पहचान को गोपनीय रखा जाना है। याचिकाकर्ता ने नियमानुसार बच्चे के जन्म/मृत्यु को पंजीकृत करवाने के लिए पिता का विवरण देने की आवश्यकता से व्यथित होकर यह याचिका दायर की है।

    याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अरुणा ए पेश होंगी।

    याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि उपरोक्त नियमों के फॉर्म 1-9 के अवलोकन से पता चलता है कि वे सिंगल मदर्स और सिंगर मदर्स से पैदा होने वाले बच्चों के दृष्टिकोण से अन्यायपूर्ण, अवैध और मनमाने हैं। फॉर्म में केवल पिता का नाम भरने का प्रावधान है और पिता के नाम पर इस तरह का आग्रह करना अवैध है क्योंकि यह असंभव है।

    हालांकि याचिकाकर्ता की एक बार शादी हो चुकी है, लेकिन वह अपने पति से अलग हो गई है और बच्चे का पिता उसका पूर्व पति नहीं है। याचिकाकर्ता खुद अज्ञात डोनर के विवरण से अवगत नहीं है, इसलिए, बच्चे के जन्म के पंजीकरण के लिए पिता के विवरण की आवश्यकता असंवैधानिक है।

    उसने तर्क दिया है कि यह उसके निजता के अधिकार और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। यह भी तर्क दिया गया है कि इस तरह के प्रावधान जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम के अधिकारातीत (अल्ट्रा वायर्स) है।

    इसके अलावा, उसने यह भी प्रस्तुत किया है कि एक बच्चे /व्यक्ति के जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र से एक मां के विवरण को बाहर करना लिंग के आधार पर भेदभाव है और इस प्रकार यह मनमाना और आर्टिकल 14 का उल्लंघन है।

    याचिका में कहा गया है कि,

    ''भारत में एक महिला, जिसने 18 वर्ष की आयु पार कर ली है, को आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से गर्भवती होने का अधिकार है, जैसे कि याचिकाकर्ता ने एक गुमनाम डोनर के शुक्राणु को स्वीकार किया है। इसलिए, लाॅ ऑफ दा लैंड को भी एक महिला के अधिकार को मान्यता देनी चाहिए ताकि वह एकल मां के रूप में अपने बच्चे को पाल सके, विशेष रूप से उन स्थितियों में जहां पिता/ शुक्राणु डोनर के नाम का खुलासा नहीं किया जा सकता है।''

    एबीसी बनाम राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली)(2015) 10 एससीसी 1 और मथुमिता रमेश बनाम मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी व अन्य (2018 एससीसी ऑनलाइन एमएडी 2153) का हवाला देते हुए कहा गया कि एकल मां के अधिकारों को सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा भी मान्यता दी गई है।

    यह भी तर्क दिया गया है कि प्रमाण पत्र पर पिता का विवरण देने की आवश्यकता के स्थान को खाली छोड़ने से याचिकाकर्ता के साथ-साथ उसके बच्चे के भी निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा क्योंकि यह तथ्य कि बच्चा विवाह से पैदा हुआ था, एक अंतरंग निजी जानकारी है।

    ऐसे में याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि एकल मां से पैदा हुए बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र से पिता के विवरण की आवश्यकता वाले कॉलम को हटा दिया जाए।

    केस का शीर्षकः डी क्रूज अनीशा डी बनाम केरल राज्य व अन्य

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