सूचना आयोग RTI एक्ट के कथित उल्लंघन के लिए जुर्माना लगाने से पहले PIO को सुनने के लिए बाध्य: कर्नाटक हाईकोर्ट

Shahadat

9 March 2023 5:43 AM GMT

  • सूचना आयोग RTI एक्ट के कथित उल्लंघन के लिए जुर्माना लगाने से पहले PIO को सुनने के लिए बाध्य: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कर्नाटक राज्य सूचना आयोग द्वारा जन सूचना अधिकारी (PIO)पर दंड लगाने का आदेश उसके द्वारा प्रस्तुत लिखित स्पष्टीकरण पर विचार किए बिना या उसे मौखिक स्पष्टीकरण देने का अवसर दिए बिना पारित किया जाता है तो आदेश नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है और रद्द किए जाने योग्य हैं।

    जस्टिस ज्योति मुलिमणि की एकल पीठ ने एम वेंकटेशप्पा द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली और आयोग के दिनांक 18.01.2008 के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें उसने याचिकाकर्ता पर 10,000 रूपये का जुर्माना लगाया था।

    पीठ ने कहा,

    "आयोग इस तथ्य पर ध्यान देने में विफल रहा कि याचिकाकर्ता प्रासंगिक समय पर कार्यालय में नहीं था। मेरी राय में आयोग द्वारा पारित आदेश कानून की दृष्टि से टिकाऊ नहीं है।”

    बी.एच. वीरेश ने 2011-12 के दौरान मुख्य लेखापरीक्षा अधिकारी, बीबीएमपी, बैंगलोर द्वारा आयोजित एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के अधिकारियों की ड्राफ्ट ऑडिट रिपोर्ट के पैरा 39 में आपत्ति के संबंध में सूचना मांगने के लिए आरटीआई आवेदन प्रस्तुत किया।

    चीफ इंजीनियर के कार्यालय ने उक्त आवेदन को एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, सड़क और बुनियादी ढांचा, विशेष क्षेत्र, बीबीएमपी, बैंगलोर को ट्रांसफर कर दिया। एग्जीक्यूटिव इंजीनियर (सड़क एवं अधोसंरचना), महादेवपुरा, विशेष अंचल, बीबीएमपी के लोक सूचना अधिकारी ने आवेदक को पत्र जारी कर कहा कि उनके कार्यालय को वर्ष 2011-12 की लेखापरीक्षा रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई।

    आवेदक ने सुपरिटेंडेंट इंजीनियर, सड़क और अवसंरचना, बीबीएमपी, बैंगलोर के समक्ष अपील दायर की और उसे खारिज कर दिया गया, क्योंकि आवेदक ने उस पर लगन से मुकदमा नहीं चलाया। इसके बाद आवेदक ने कर्नाटक सूचना आयोग के समक्ष आरटीआई अधिनियम की धारा 19(3) के तहत अपील/शिकायत दायर की।

    पक्षों को सुनने के बाद आयोग ने 27-01-2016 को पीआईओ को आवेदक को नि:शुल्क जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। 01.02.2016 को निर्देश के अनुपालन में पीआईओ और एग्जीक्यूटिव अभियंता (आर एंड आई) बीबीएमपी, बैंगलोर ने अपने समनुदेशिती महेश्वर सिंह के माध्यम से आवेदक को उपलब्ध जानकारी (789 पृष्ठों के लिए) प्रदान की और इसे आवेदक के समनुदेशिती द्वारा स्वीकार किया गया।

    हालांकि, 03.06.2016 को आयोग ने आवेदक को मुआवजे के रूप में 1,000/- रूपये (केवल एक हजार रुपये) का भुगतान करने का निर्देश दिया और 16.09.2016 को या उससे पहले मुफ्त में जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया। आवेदक ने उक्त सूचना का खंडन किया और कहा कि उसे पूरी सूचना प्राप्त नहीं हुई। इस मौके पर याचिकाकर्ता एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, महादेवपुरा जोन, बीबीएमपी के पीआईओ थे।

    इस प्रकार 28.12.2016 को आयोग ने याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ता ने रिपोर्ट प्रस्तुत की कि आवेदक को 1,000 रूपये का भुगतान किया गया। उन्होंने अपने खिलाफ कार्यवाही बंद करने के लिए स्पष्टीकरण भी प्रस्तुत किया, क्योंकि उनका तबादला दूसरे विभाग में कर दिया गया था और आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी प्रस्तुत की गई और भुगतान किया गया। हालांकि, आयोग ने विवादित आदेश पारित करना जारी रखा।

    वेंकटेशप्पा द्वारा उठाए गए दो तर्क प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन और आयोग द्वारा सत्ता के मनमाने प्रयोग के थे।

    पीठ ने रिकॉर्ड पर विचार करने और विवादित आदेश का अवलोकन करने पर कहा कि "आयोग ने न तो लिखित स्पष्टीकरण पर विचार किया और न ही याचिकाकर्ता को अपना स्पष्टीकरण मौखिक रूप से प्रस्तुत करने की अनुमति दी।"

    इस प्रकार इसने कहा,

    "मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आयोग ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की अवहेलना की है। केवल इसी आधार पर आदेश निरस्त किए जाने योग्य है।"

    पीठ ने तानाशाही के महत्व को समझाते हुए कहा,

    "ऑडी अल्टेरेम पार्टेम का सिद्धांत प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत की मूल अवधारणा है। सिद्धांत में निहित सर्वशक्तिमत्ता यह है कि किसी की भी निंदा अनसुनी नहीं की जानी चाहिए।

    इसमें कहा गया,

    "जब भी कोई सार्वजनिक कार्य किया जा रहा होता है तो इसके विपरीत स्पष्ट आवश्यकता के अभाव में अनुमान लगाया जाता है कि कार्य को निष्पक्ष रूप से करने की आवश्यकता है। किसी भी निर्णय के मामले में निष्कर्ष अधिक सम्मोहक होगा, जो किसी व्यक्ति के अधिकारों या हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है या जब किसी व्यक्ति के साथ उचित व्यवहार की वैध अपेक्षा हो।

    इसने आगे कहा,

    "इस दृष्टिकोण का महत्व यह है कि प्रथम दृष्टया यह सभी प्रशासकों पर निष्पक्ष रूप से कार्य करने का दायित्व थोपता है। इसे स्पष्ट रूप से स्वीकार किए बिना सार्वजनिक प्राधिकरणों के अधिकांश निर्णय/आदेश व्यवहार में दृष्टिकोण के सचेत या अचेतन दृष्टांतों से अधिक नहीं हैं।

    याचिका को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा,

    "मैं यह कहने का साहस कर सकता हूं कि आयोग प्रासंगिक विचारों के संबंध में विफल रहा है और प्रासंगिक मामलों की अवहेलना करता रहा है। मेरी राय में आयोग द्वारा पारित आदेश कानून की दृष्टि से टिकाऊ नहीं है।”

    केस टाइटल: एम वेंकटेशप्पा और कर्नाटक सूचना आयोग और अन्य

    केस नंबर: रिट याचिका नंबर 22745/2018

    साइटेशन: लाइवलॉ (कर) 97/2023

    आदेश की तिथि: 09-02-2023

    प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट जे डी काशीनाथ और R1 के लिए एडवोकेट राजशेखर के पेश हुए।

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