इंडियन आर्मी के स्पाउसल पोस्टिंग के नियम अनिवार्य नहीं ,बल्कि वेकेंंसी की उपलब्धता के अधीन है : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

25 Oct 2020 10:30 AM IST

  • इंडियन आर्मी के स्पाउसल  पोस्टिंग के नियम अनिवार्य नहीं ,बल्कि वेकेंंसी की उपलब्धता के अधीन है : दिल्ली हाईकोर्ट

    ‘‘सशस्त्र बलों के अधिकारियों को कोर्ट की तरह आदेश/निर्णय लिखने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है,जिन्हें प्रत्येक दलील या विवाद से निपटना या उस पर विचार करना आवश्यक होता है।’’

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि इंडियन आर्मी के ''स्पाउसल पोस्टिंग'' के संबंध में बनाए गए नियम अनिवार्य नहीं हैंं और यह एक ही स्टेशन पर दोनों पति-पत्नी के लिए रिक्तियों की उपलब्धता के अधीन है या निर्भर करते हैं।

    जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ व जस्टिस आशा मेनन की एक डिवीजन बेंच ने कहा कि

    '' नियमों के तहत यह आवश्यक है कि एक ही स्टेशन पर दोनों पति-पत्नी को पोस्ट करने का प्रयास किया जाना चाहिए, विशेषकर छोटे बच्चों के मामले में। परंतु यह नियम अनिवार्य नहीं है और एक ही स्टेशन पर दोनों पति-पत्नी के लिए रिक्तियों की उपलब्धता के अधीन है।''

    कर्नल अमित कुमार द्वारा दायर एक रिट याचिका में यह आदेश आया है। उसने मांग की थी कि जब तक उनके बच्चे छोटे हैं, तब तक उसे भी उसी स्टेशन पर पोस्टिंग दी जाए,जिस पर उसकी पत्नी को पोस्टिंग दी जा रही है। वर्तमान में दोनों जोधपुर में तैनात थे, उनके नए पोस्टिंग आदेशों ने तहत उसकी पत्नी को बठिंडा और उसे अंडमान एंड निकोबार में पोस्ट करने का प्रस्ताव दिया गया है।

    याचिकाकर्ता के अनुरोध को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,

    ''अदालतें स्थानांतरण के आदेशों में केवल तभी हस्तक्षेप कर सकती हैं, जब किसी नियम के उल्लंघन और / दुर्भावपूर्ण का आरोप लगाया गया हो। वर्तमान मामले में ऐसा कोई आधार नहीं बनाया गया है।''

    खंडपीठ ने उल्लेख किया कि इस मामले में पारित एक अंतरिम निर्देश के अनुसार, संबंधित प्राधिकरण ने 30 सितंबर, 2020 को एक स्पीकिंग आदेश पारित किया था, जिसमें यह कारण भी बताए गए थे कि क्यों इस समय याचिकाकर्ता व उसकी पत्नी को एक स्टेशन पर पोस्ट करना संभव नहीं है।

    भारतीय सेना ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता के विवाह के 12 वर्षों में, अधिकारी और उसकी पत्नी को तीन बार पति-पत्नी समन्वय वाली पोस्टिंग दी गई थी। हालाँकि, वर्तमान में ''ऑपरेशनल सिचूऐशन'' के कारण यह संभव नहीं था। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि,

    ''इस बात की सराहना की जानी चाहिए कि संगठनात्मक बाधाओं के बावजूद, शादी के बाद से पोस्टिंग के लिए अधिकारी और उसकी पत्नी के सभी अनुरोधों को विधिवत रूप से स्वीकार कर लिया गया था और दोनों को एक ही स्टेशन में पोस्ट करने के लिए सभी प्रयास किए गए हैं। वर्तमान में, हमारे पास ऑपरेशनल सिचूऐशन है, जिसमें मुख्यालय अंडमान एंड निकोबार कमांड सहित सभी स्तरों पर उच्च सुरक्षा शामिल है। इस महत्वपूर्ण चरण में, हमारे संगठन द्वारा पोषित हम सभी का कर्तव्य है कि सीमाओं पर हमारे अधिकारियों और सैनिकों के हाथों को मजबूत करें।''

    इसके मद्देनजर, अदालत ने,

    ''याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता व उसकी पत्नी को उनके स्थानांतरित स्थानों पर ज्वाइन करने के लिए आज से 15 दिन का समय दिया है।''

    गौरतलब है कि याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि न्यायालय के अंतरिम आदेश में याचिकाकर्ता के छोटे बच्चों की आवश्यकताओं और राष्ट्रीय नीति 2013 के पहलू को उजागर किया गया था। परंतु भारतीय सेना ने इन तथ्यों पर विचार नहीं किया।

    हालाँकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि एक बार जब मामले पर विचार करते समय मामले के सभी तथ्यों का उल्लेख कर दिया गया है, तो इस स्पीकिंग आदेश में यह कहते हुए दोष नहीं निकाले जा सकते हैं कि एक या दो पहलू का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।

    पीठ ने कहा कि,

    ''सशस्त्र बलों के अधिकारियों को कोर्ट की तरह आदेश/निर्णय लिखने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, जिन्हें प्रत्येक दलील या विवाद से निपटना या उस पर विचार करना आवश्यक होता है। 30 सितंबर, 2020 के आदेश को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि जिन पहलुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है, उन पर विचार किया गया है।''

    कोर्ट ने याचिका की पेंडेंसी के दौरान मीडिया में इस मामले को अनुचित प्रचार देने के कार्य की भी निंदा की है।

    यह भी पाया गया कि वर्तमान सुनवाई को ''प्रमुख समाचार पत्रों में रिपोर्ट'' किया गया था,जिनमें ''याचिकाकर्ता का बयान था और जाहिर तौर पर यह याचिकाकर्ता के कहने पर ही छपा है।''

    न्यायालय ने आगे कहा,

    ''ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता द्वारा दी गई सूचना के बिना उक्त रिपोर्टें मीडिया में दिखाई नहीं देती। उक्त मीडिया रिपोर्टों में, याचिकाकर्ता ने अपनी आवश्यकताओं/जरूरतों को उजागर करते हुए सेना के अधिकारियों को असंवेदनशील के रूप में चित्रित किया है।

    हमने याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील के ध्यान में उक्त तथ्य को लाया है और उन्हें सूचित किया है कि जब मामला लंबित हो तो इस तरह के आचरण को अच्छा नहीं माना जा सकता है।'' हालांकि, याचिकाकर्ता ने इसमें किसी भी संलिप्तता से इनकार कर दिया है।

    केस का शीर्षक-कर्नल अमित कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स।

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