असंतोष को कुचलने की चिंता में राज्य के दिमाग में विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच का अंतर धुंधला होता जा रहा हैः दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

15 Jun 2021 9:55 AM GMT

  • असंतोष को कुचलने की चिंता में राज्य के दिमाग में विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच का अंतर धुंधला होता जा रहा हैः दिल्ली हाईकोर्ट

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने मं॒गलवार को ‌दिल्‍ली दंगों के आरोप में गिरफ्तार जेएनयू की छात्रा नताशा नरवाल को जमानत देते हुए कहा, "हम यह कहने के लिए मजबूर हैं कि ऐसा लगता है कि राज्य के दिमाग में, असंतोष को कुचलने की चिंता में विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच का अंतर धुंधला होता जा रहा है।"

    ज‌स्ट‌िस सिद्धार्थ मृदुल और ज‌स्ट‌िस अनूप जे. भंभानी की खंडपीठ ने कहा कि "यदि यह मानसिकता प्रचलित होती है तो यह लोकतंत्र के लिए दुखद दिन होगा।"

    जेएनयू की एमफिल-पीएचडी की छात्र नरवाल पर आईपीसी और यूएपीए के तहत पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के संबंध में विभिन्न अपराधों का आरोप लगाया गया था।

    उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थानीय आबादी, विशेषकर महिलाओं को कथित रूप से सीएए और एनआरसी के खिलाफ भड़काया ‌था। उन पर यह आरोप भी लगा था कि पिंजरा तोड़, दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप और जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी के सदस्य के रूप में वह दंगे भड़काने की तथाकथित साजिश में शामिल थी।

    इन समूहों का हिस्सा होने के पहलु पर हाईकोर्ट ने कहा, "हम पाते हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ सामग्र‌ियों की जांच करने में विद्वान विशेष न्यायालय ने एक सामान्य तर्क यह अपनाया है कि अपीलकर्ता पिंजरा तोड़, डीपीएसजी, वरियर्स और औरतों का इंकलाब का सदस्य थी और एक बहुस्तरीय साजिश का 'हिस्सा थी', आला साजिशकर्ताओं को रिपोर्ट कर रही थी, उनके नियमित संपर्क में थी, जो उन्हें आपराधिक कार्यों को दोषी बनाता है।"

    कोर्ट ने यह भी देखा कि केवल इसलिए कि इकट्ठा किए गए सबूतों का एक स्वतंत्र प्राधिकरण स्वतंत्र समीक्षा कर सकता है और केंद्र सरकार ने यूएपीए के तहत अपराधों के लिए अभियोजन की मंजूरी दी हो सकती है, "किसी भी प्रकार से इसका मतलब यह नहीं है कि अदालत को इस संबंध में अपना न्यायिक दृष्टिकोण बनाने के लिए अपना दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है...."

    विरोध के अधिकार का इस्तेमाल करने के पहलू पर, अदालत ने कहा कि सरकार ट्रैफिक की परेशानी और गड़बड़ी से बचने के लिए सड़कों या राजमार्गों पर सार्वजनिक सभाओं, प्रदर्शनों या विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगा सकती है, लेकिन सरकार सार्वजनिक मीटिंग्स के लिए सभी सड़कों या खुली जगहों को बंद नहीं कर सकती है, यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत ‌दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "हम जो जानते हैं वह यह है कि यदि कोई अपराध, जो कथित रूप से विरोध प्रदर्शनों के कारण किया गया है, प्राथमिकी संख्या 48/2020 और 50/2020 का विषय है, जिसमें अपीलकर्ता है अभियुक्तों में से एक है और जिसमें अपीलकर्ता की जमानत को स्वीकार किया गया है और वह उचित समय पर मुकदमे का सामना करेगा। किसी विशिष्ट आरोप के माध्यम से चार्जशीट में बिल्कुल कुछ भी नहीं है, जो धारा 15, यूएपीए के अर्थ में 'आतंकवादी कृत्य' को दिखाता हो; या धारा 17 के तहत एक आतंकवादी कृत्य के लिए 'धन जुटाने' का कार्य किया हो; या धारा 18 के अर्थों में आतंकवादी कार्य करने के लिए 'साजिश' या करने के लिए एक 'तैयारी का कार्य' किया हो....

    तदनुसार, प्रथम दृष्टया हम चार्ज-शीट में उन मौलिक तथ्यात्मक अवयवों को समझने में असमर्थ हैं, जो धारा 15, 17 या 18 यूएपीए के तहत परिभाषित किसी भी अपराध को खोजने के लिए जरूरी हैं।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "भड़काऊ भाषण, चक्का जाम करने, महिलाओं को विरोध के लिए उकसाने और इसी प्रकार के अन्य आरोप कम से कम इस बात के सबूत हैं कि अपीलकर्ता विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करने में शामिल था, लेकिन हम नहीं समझ सकते हैं...अपीलकर्ता ने हिंसा को उकसाया हो, आतंकवादी कृत्य या साजिश की क्या बात करें..."

    अदालत ने नताशा नरवाल को 50 हजार के निजी मुचलके और उसी राश‌ि की दो स्‍थानीय जमानतों की शर्त पर जमानत देदी।

    टाइट‌िल: नताशा नरवाल बनाम दिल्ली एनसीटी राज्य

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें




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