संरक्षण याचिका की आड़ लेकर लिव-इन कपल सामाजिक और नैतिक रूप से अस्वीकार्य संबंधों पर स्वीकृति की मुहर चाहता है : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
18 May 2021 12:15 PM IST
लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए एक और आदेश में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने उस लिव-इन कपल की याचिका खारिज कर दी है,जिन्होंने सुरक्षा दिए जाने की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि उनके रिश्ते का विरोध किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति एचएस मदान ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा कि इस कपल ने सिर्फ इसलिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है ताकि उनके उस संबंध पर स्वीकृति की मुहर लग सके जो''नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं'' है।
''वास्तव में, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन-रिलेशनशिप पर स्वीकृति की मुहर लगाने की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। इसलिए इस याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।''
इस टिप्पणी के साथ, हाईकोर्ट ने सुरक्षा की मांग करते हुए दायर उनकी याचिका को खारिज कर दिया।
सिर्फ छह दिन पहले, हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की पीठ के जरिए एक अन्य लिव-इन कपल की सुरक्षा याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि
''यदि इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।''
कोर्ट ने कहा था,
''याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) मुश्किल से 18 साल की है जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़का) 21 साल का है। वे लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने का दावा कर रहे हैं और अपने जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) के रिश्तेदारों से संरक्षण दिलाए जाने की मांग कर रहे हैं।''
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा था कि,
''यदि इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा। इसलिए, संरक्षण देने के लिए कोई आधार नहीं बनता है।''
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार (10 मार्च 2021) को एक डीड द्वारा समर्थित 'संविदात्मक(कॉन्ट्रेक्टचुअल) लिव-इन-रिलेशन की नई अवधारणा' पर अपनी अस्वीकृति दर्ज की थी, जिसमें पक्षकारों ने कहा था कि उनका लिव-इन-रिलेशनशिप 'वैवाहिक संबंध' नहीं है।
न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की खंडपीठ ने कहा था कि ''विशेष रूप से (विलेख/डीड में) यह कहते हुए कि यह 'वैवाहिक संबंध नहीं है',कुछ और नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, क्योंकि इसे नैतिक रूप से समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।''
इसके विपरीत, पिछले साल पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह माना था कि सिर्फ इसलिए कि लड़का विवाह योग्य उम्र का नहीं है (हालांकि बालिग है) याचिकाकर्ताओं के साथ रहने के अधिकार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, यह देखते हुए कि ''माता-पिता एक बच्चे को अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं और प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को अपने जीवन को जीने का अधिकार है जैसा कि वह उचित समझता है'', हाईकोर्ट ने एक जोड़े के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के अधिकार बरकरार रखा था।
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