बुनियादी संरचना सिद्धांत के सवालों पर बहस महत्वपूर्णः जस्टिस जयशंकरन नांबियार

Avanish Pathak

13 March 2023 2:15 PM GMT

  • बुनियादी संरचना सिद्धांत के सवालों पर बहस महत्वपूर्णः जस्टिस जयशंकरन नांबियार

    कोच्चि स्थित एर्नाकुलम गवर्नमेंट लॉ कॉलेज ओल्ड स्टूडेंट्स एंड टीचर्स एसोसिएशन ने शनिवार को 'भारतीय संविधान की मूल संरचना और इसकी वर्तमान चुनौतियां' विषय पर व्याख्यान आयोजित किया। केरल हाईकोर्ट के जज जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार ने कार्यक्रम में अध्यक्षीय भाषण दिया।

    उन्होंने भारतीय संविधान की गतिशील प्रकृति की चर्चा की और बताया कि कैसे हमारे जैसे जीवंत लोकतंत्र में संवैधानिक मामलों पर सक्रिय चर्चा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

    जस्टिस नांबियार ने कहा कि नागरिकों को संविधान पर चर्चा करने से हिचकना नहीं चाहिए।

    उन्होंने कहा,

    "यह रोचक है कि इन दिनों जब बुनियादी संरचना सिद्धांत का उल्लेख किया जाता है तो संदेह और अनिश्चितता और भय का माहौल बन जाता है। मुझे नहीं पता कि जब संवैधानिक मामलों पर चर्चा होती है तो आशंका क्यों होती है। हमारे जैसे जीवंत लोकतंत्र में शासकीय दस्तावेज के बारे में सक्रिय चर्चा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।"

    जस्टिस नांबियार ने हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा केशवानंद भारती के फैसले की आलोचना और बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर हालिया बहसों का अप्रत्यक्ष रूप से जिक्र करते हुए उक्‍त टिप्पणियां की।

    जस्टिस नांबियार ने कहा कि संविधा कैसे निरंतर विकसित हो रहे दस्तावेज के कारण कभी भी गतिहीन नहीं हो सकता। जब तक समाज में परिवर्तन होगा, संविधान की परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत होगी और इसकी व्याख्या को गतिशील बनाना आवश्यक होगी।

    उन्होंने कहा,

    “तो आने वाले समय के लिए संविधान को फ्रीज न करें....आप चाहते हैं कि संविधान शासी दस्तावेज के रूप में प्रासंगिक बना रहे। इसलिए आपको यह सीमित करना होगा कि आप कम से कम क्या फ्रीज़ कर रहे हैं। अन्यथा आप इसे निरंतत विकसित होने से रोक रहे हैं।”

    उन्होंने क‌हा कि अनुच्छेद 368 के माध्यम से संविधान में संशोधन का प्रावधान प्रमाण है कि संविधान ठहराव के ‌लिए ही नहीं है।

    उन्होंने यह भी बताया कि कैसे संविधान का अनुच्छेद 13 संविधान निर्माताओं के इरादे को दिखाता है कि भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, केवल उनके दायरे को बढ़ाया जा सकता है।

    उन्होंने कहा,

    “भाग 3, भाग 4 और अनुच्छेद 368 का संयुक्त पठन यह स्पष्ट करता है कि यह नागरिकों के सतत सशक्तिकरण के लिए एक अंतर्निर्मित योजना है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि संविधान कभी स्थिर नहीं था।"

    जस्टिस नांबियार ने कहा कि नागरिकों के सतत सशक्तिकरण की इस योजना में, स्वाभाविक प्रश्न संशोधन की इन शक्तियों पर सीमाओं की गुंजाइश है और यह मूल संरचना दस्तावेज की प्रासंगिकता है।

    जस्टिस नांबियार ने बदलते समय के अनुकूल एक संविधान की आवश्यकता पर बल देते हुए और कुछ नियमों को लागू करके इसे संतुलित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

    अध्यक्षीय भाषण के बाद सीनियर एडवोकेटे दुष्यंत दवे ने अपनी बात रखी। उन्होंने बुनियादी ढांचे के सिद्धांत के इतिहास और विकास के बारे में विस्तार से बात की और वर्तमान समय में सत्ताधारी दलों और संसद द्वारा पेश की गई चुनौतियों के बारे में बात की। उन्होंने बुनियादी ढांचे की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका पर भी बात की।

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