COVID 19: "गोवा का सामुदायिक सर्वेक्षण 'गलत सलाह' पर आधारित", सीजेआई को पत्र लिखकर रोक लगाने की मांग

LiveLaw News Network

12 April 2020 2:56 PM GMT

  • COVID 19: गोवा का सामुदायिक सर्वेक्षण गलत सलाह पर आधारित, सीजेआई को पत्र लिखकर रोक लगाने की मांग

    सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के समक्ष पत्र के जर‌िए दायर याचिका में COVID 19 की जांच के लिए 13 अप्रैल, 2020 से गोवा में शुरू हो रहे सामुदायिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग की गई है। पत्र में न्यायालय से अपील की गई है कि वह सामुदायिक सर्वेक्षण की प्रक्र‌िया में तत्काल हस्तक्षेप करे।

    याच‌िका में जोर देकर कहा गया है कि अगर जांच पर रोक के मुद्दे को एक दिन भी टाला गया तो यह पूरे समुदाय को खतरे में डाल देगा। सर्वेक्षण की "गलत सलाह" पर आधारित है और "पूरी तरह से योजनाबद्ध" नहीं है।

    याचिकाकर्ता ने रविवार को ही इस संबंध में निषेधाज्ञा के लिए प्रार्थना की है। गोवा उच्च न्यायालय में गोवा माध्यमिक शिक्षक संघ के दत्तात्रेय नाइक द्वारा दायर एक ऐसी ही याचिका को सोमवार, 13 अप्रैल, 2020 तक के लिए टाल दिया गया है। यह वही दिन है जब राज्य सरकार COVID 19 की जांच के लिए सामुदायिक परीक्षण शुरू करेगी।

    याचिका में कहा गया है,

    "हमारी प्रार्थना है कि मामले में तत्काल आदेश पारित किया जाए, माननीय सर्वोच्च न्यायालय रविवार, 12 अप्रैल, 2020 को ही ऐसा करना उचित है। चूंकि गोवा के माननीय उच्च न्यायालय ने सोमवार, 13 अप्रैल, 2020 तक के लिए मामले की सुनवाई टाल दी है, तब तक गोवा के नागरिकों की रक्षा करना बहुत मुश्किल हो जाएगा, विशेष रूप से बुजुर्गों और बीमारों के लिए, क्योंकि तब तक 700,000 परिवारों का यह संभावित आपदा सर्वेक्षण शुरू हो चुका होगा!"

    एक्टिविस्ट लतोया मिस्ट्रल फर्न्स, गिरीश चोडांकर, राज्य अध्यक्ष, गोवा प्रदेश कांग्रेस कमेटी, माइकल फ़र्न्स, अध्यक्ष गोवा नागरिक कल्याण ट्रस्ट ने पत्र लिखा कर जनहित याचिका की शुरुआत की है।

    पत्र में कहा गया है, "महोदय, हम आपका ध्यान इस तथ्य पर लाने के लिए मजबूर हैं कि गोवा की राज्य सरकार सोमवार, 13 अप्रैल, 2020 से 15 अप्रैल, 2020 तक राज्य में COVID 19 की जांच के लिए 'गलत-सलाह' पर आधारित ​​सामुदायिक सर्वेक्षण करेगी, इसलिए हम आपको पत्र लिख रहे हैं ताकि इस आपात स्थिति में आप रविवार, 12 अप्रैल, 2020 को हस्तक्षेप करें। इस मामले में एक दिन की भी देरी से गोवा के लाखों कमजोर नागरिकों में संक्रमण फैलने का जोखिम होगा।"

    याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि राज्य सरकार का घर-घर जाकर COVID 19 के संक्रमितों को ढूंढ़ने का आदेश गोवा के नागरिकों को मुश्किल में डाल सकता है, क्योंकि जिन्हें ये जांच करने की जिम्‍मेदारी दी गई है, स्वास्थ्य विभाग कर्मचारी नहीं है, बल्‍कि सामान्य सरकारी कर्मचारी हैं, जैसे शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मीटर रीडर और अन्य सरकारी कर्मचारी, जिनकी संख्या लगभग 7000 है।

    पत्र में कहा गया है कि इन कर्मचारियों को घातक वायरस का पता लगाने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया है, और न ही उन्हें यह सिखाया गया है कि जांच की प्रक्रिया में वो खुद को कैसे सुरक्षित रखें। उनके प्रशिक्षण में सोशल डिस्टेंसिंग जैसे मानदंडों को शामिल नहीं किया गया है। इसलिए, इस आदेश से लाखों नागरिकों को संक्रमण होने का जोखिम है।

    याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि जिन प्रतिनिधियों को जांच का कार्य सौंपा गया है, वो भी पहले ही सुरक्षात्मक सूट की की कमी पर 'निराशा' और 'गहरी चिंता' व्यक्त कर चुके हैं और कहा है कि उन्‍हें केवल साधारण मास्क और हैंड सैनिटाइज़र दिया गया है। पत्र में आगे कहा गया है कि सर्वेक्षणकर्ताओं को इस बात की भी गारंटी नहीं दी गई है कि उन्हें सर्वेक्षण के दौरान उन्हें पुलिस की सुरक्षा दी जाएगी।

    गोवा के नागरिकों द्वारा व्यक्त की जा रही चिंता पर जोर देते हुए याचिकाकर्ताओं ने प्रार्थना की है कि सीजेआई सर्वेक्षण पर तत्काल रोक लगाने का निर्देश दे और यदि आवश्यक हो तो केवल उन्हीं क्षेत्रों में अनुमति दें जो "हॉटस्पॉट" के रूप में चिन्हित किए गए हैं। पत्र यह मांग भी की गई है कि CJI व्यक्तिगत रूप से सर्वेक्षण की देखरेख करें और सुनिश्चित करें कि सभी सर्वेक्षणकर्ताओं को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाय और COVID 19 के ‌लिए उनका भी परीक्षण हो चुका हो।

    उल्‍लेखनीय है कि 7 अप्रैल, 2020 को, गोवा सरकार ने कोरोनोवायरस के प्रकोप के मद्देनजर सामुदायिक सर्वेक्षण कराने की घोषणा की। गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने बताया ‌था कि सर्वेक्षण में लगभग 7,000 कर्मचारी शामिल होंगे, जो फ्लू जैसे लक्षणों और ट्रैवेल हिस्‍ट्री की जांच करेंगे।

    याचिकाकर्ताओं का पत्र पढ़ें



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