यदि टीवी चैनल के पास साक्ष्य है, तो जांचकर्ता को सूचित करें: बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के इस विचार को खारिज कर दिया कि वह सुशांत सिंह राजपूत केस में "खोजी पत्रकारिता" कर रहा था

LiveLaw News Network

19 Jan 2021 7:31 AM GMT

  • यदि टीवी चैनल के पास साक्ष्य है, तो जांचकर्ता को सूचित करें: बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के इस विचार को खारिज कर दिया कि वह सुशांत सिंह राजपूत केस में खोजी पत्रकारिता कर रहा था

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'मीडिया ट्रायल' के खतरे को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि किसी कथित अपराध के संबंध में किसी टीवी चैनल/समाचार एजेंसी के पास किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई सामग्री/साक्ष्य है, तो वे ऐसी सूचना संबंधित पुलिस अधिकारी को प्रदान करने के लिए बाध्य हैं।

    मुख्य न्यायाधीश दीपंकत दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि,

    "यदि वास्तव में चैनल इस स्थिति में है कि उसके पास मामले से जुड़ी जानकारी है तो वह मामले की जांच कर रहे जांचकर्ता अधिकारी की सहायता कर सकता है। उस जानकारी को समाचार कवरेज का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए। चैनल का कर्तव्य है कि वह जानकारी पुलिस को प्रदान करे जो कि जांच में मददगार साबित हो सकता है। यह सीआरपीसी की धारा 37 से 39 के तहत है।"

    सुशांत सिंह राजपूत मामले में मुंबई पुलिस के खिलाफ रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ द्वारा की गई रिपोर्टिंग की पर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कई टिप्पणियां कीं।

    कोर्ट ने कहा कि प्रेस/मीडिया एक जांच प्रक्रिया के कुछ पहलुओं के प्रचार द्वारा समाज की राय को ढालने की क्षमता रखता है।

    इस तरह के प्रकाशन पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि,

    "यह एक मजबूत सार्वजनिक भावनाओं को जन्म दे सकता है और एक पक्ष या दूसरे के मामले को पूर्वाग्रह पैदा कर सकता है, और इस प्रकार मीडिया को अपनी प्रस्तुतियों में रुख लेने से बचना चाहिए जो पक्षपाती हैं या किसी विशेष बिंदु के लिए पूर्वाभास दिखाते हैं।"

    इस पर रिपब्लिक टीवी ने कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि,

    "उसके रिपोर्टर्स ने कुछ ऐसे ठोस सबूत इकट्ठा किए थे जो इस हत्या के अपराध के साथ आरोपियों को जोड़ सकता था। चैनल ने ईमानदारी से अपने दर्शकों की जानकारी के लिए उन तथ्यों को रखने का प्रयास किया था, जिन तथ्यों को मुंबई पुलिस द्वारा दबाया जा रहा था।"

    बेंच ने कहा कि,

    "हमारे दिमाग में सीआरपीसी के प्रावधानों की गलतफहमी के कारण विवाद बढ़ता है।"

    आगे बेंच ने कहा कि,

    अगर किसी मामले में "खोजी पत्रकारिता" के दौरान मीडिया को वास्तविक रूप से भड़काने वाले सबूत मिलते हैं, तो उसे ऐसा सबूत को सबके सामने प्रकाशित नहीं करना चाहिए, बल्कि जांच अधिकारी को सौंप देना चाहिए।"

    इस संदर्भ में, खंडपीठ ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 37 और धारा 39 का उल्लेख किया, जो कि किसी अपराध से जुड़ी जानकारी सार्वजिनक करने की जगह मजिस्ट्रेट और पुलिस को देने का प्रावधान प्रस्तुत करती हैं।

    अंत में, कोर्ट ने कहा था कि,

    "इस मामले में मुंबई पुलिस के खिलाफ रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ द्वारा किया गया मीडिया कवरेज "प्रथम दृष्टया अवमानना" है।"

    यह भी देखा गया है कि मुंबई पुलिस के खिलाफ खिलाफ चलाया गया अभियान तथ्यों का "दुष्प्रचार" करने जैसा प्रतीत होता है।

    रिया चक्रवर्ती बनाम बिहार राज्य और अन्य मामले को सामने रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि,

    "जहां सुशांत सिंह राजपूत डेथ केस में प्रथम दृष्टया संतोष दर्ज किया उसके मुताबिक मुंबई पुलिस द्वारा किसी भी तरह का गलत कार्य नहीं किया है। (हालांकि बिहार पुलिस टीम के सामने आई बाधा को टाला जा सकता था ताकि जांच पर कोई संदेह न पैदा हो।)"

    खंडपीठ ने उन रिपोर्टों की एक सूची बनाई जो रिपोर्ट 'सांकेतिक थे, लेकिन संपूर्ण नहीं थे।' ये रिपोर्ट चल रही जांच के लिए पूर्वाग्रह पैदा करती हैं।

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