"यदि रुपए दे दिये जाएंं तो अधिकारी झुक जाते हैं और नियमों का उल्लंघन कर देते हैं" :अनाधिकृत आवाजाही के पास जारी करने वाले भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने रिपोर्ट मांगी
LiveLaw News Network
15 Aug 2020 10:15 AM IST
''यह एक क्लासिक मामला है, जो यह दर्शाता है कि सरकारी कर्मचारी किसी भी स्थिति का उपयोग अवैध लाभ कमाने के लिए कर सकते हैं।'' मद्रास हाईकोर्ट ने एक चौंकानेे वाली घटना की पृष्ठभूमि में यह टिप्पणी की है। इसमें महामारी के दौरान बच्चों को बिना उचित ई-पास के ही काम करने के लिए एक यार्न विनिर्माण औद्योगिक इकाई में भेज दिया गया था।
जस्टिस एन किरुबाकरन और जस्टिस वीएम वेलुमनी की पीठ ने कहा कि-
''यह समझ नहीं आया कि बिना ई-पास से कैसे बच्चों को एक जिले से दूसरे जिले में लाना संभव हो पाया है। इसका तात्पर्य केवल यह है कि यदि पैसा दे दिया जाए तो अधिकारी झुकेंगे और नियमों का उल्लंघन कर देंगे। वहीं लोग अधिकारियों को रिश्वत देकर बिना ई- पास के ही आवाजाही कर रहे हैं।''
अदालत छह नाबालिग लड़कियों की ओर से दायर एक हैबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनको कथित तौर पर बाल मजदूरी करवाने के लिए चेन्निअप्पा यार्न स्पिनर्स प्राइवेट लिमिटेड में बंधक बनाकर रखा गया था। हालाँकि, अदालत के आदेश के अनुपालन में जब उक्त कंपनी पर छापा मारा गया था तो पता चला कि वहां पर 133 किशोर काम कर रहे थे।
इन नाबालिग श्रमिकों को उचित ई-पास के बिना ही काम के साथ-साथ शिक्षा प्रदान करने के बहाने विभिन्न जिलों से लाया गया था और उन्हें बिना कोविद परीक्षण कराए या फिटनेस प्रमाणपत्र प्राप्त किए ही यहां पर रखा गया था।
न्यायालय ने कहा कि तत्काल मामला ''हिमशैल की एक बूंद'' जैसा है और पूरे राज्य में ऐसे दलाल उपलब्ध हैं जो 500 रुपये से लेकर 2000 रुपये में ई-पास दिलवा देते हैं।
पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह ''मामले को गंभीरता से देखे'' और ''क्रूर रक्त प्यासे इन भेड़ियों'' (भ्रष्ट अधिकारी, जो अनधिकृत रूप से पैसे के बदले में ई-पास जारी करते हैं) से कड़े हाथों से निपटे या सख्ताई से पेश आएं। कोर्ट ने सभी जिलों के पुलिस अधिकारियों, श्रम विभाग और बाल कल्याण समितियों को भी निर्देश दिया है कि वे ''सतर्क'' रहें और बाल श्रम को खत्म करने के लिए नियमित रूप से छापेमारी करें।
कोर्ट ने स्वीकार किया है कि वर्तमान स्थिति के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है, लेकिन कुछ भ्रष्ट अधिकारी हैं,जो ई-पास जारी करने में शामिल हैं। इसलिए कोर्ट ने प्रतिवादी-कंपनी से ही पूछा कि वह बताएं कैसे उचित ई-पास प्राप्त किए बिना ही वह इन बच्चों को अपनी कंपनी के परिसर में काम करवाने के लिए लाने में सक्षम हुए हैं।
इस संबंध में एक हलफनामा 20 अगस्त, 2020 तक दाखिल करने के लिए कहा गया है।
पीठ ने कहा कि
''इन बच्चों की कहानियों को सुनना वास्तव में बहुत दुखदायी है, जो अपने परिवार को पालने के लिए स्कूल जाने की बजाय काम पर आए हैं। माता-पिता को अपने बच्चों की देखभाल करनी चाहिए और अपनी लाचारी के कारण वह अपने बच्चों को काम करने के लिए नहीं भेज सकते हैं, जबकि सरकार छात्रवृत्ति के अलावा मुफ्त शिक्षा और मुफ्त भोजन भी उपलब्ध करा रही है। माता-पिता को इस तरह की छोटी उम्र में काम करने के लिए अपने बच्चों को भेजने के बजाय सरकार द्वारा दिए जा रहे प्रोत्साहन और सुविधाओं का भरपूर उपयोग करना चाहिए। ऐसा न करके माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा और एक उज्ज्वल भविष्य से वंचित कर रहे हैं।''
पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि छुड़ाए गए बच्चों को बाल कल्याण समिति के माध्यम से उनके माता-पिता को सौंप दिया जाए।
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक-सीएम शिवबाबू बनाम तमिलनाडु राज्य व अन्य
केस नंबर-एचसीपी नंबर 1299/2020
कोरम-न्यायमूर्ति एन किरुबाकरण और न्यायमूर्ति वीएम वेलुमनी
प्रतिनिधित्व- एडवोकेट जे अशोक (याचिकाकर्ता के लिए),एपीपी एम प्रभावथी राम (राज्य के लिए)