"अगर पति / आरोपी को दोषी ठहराया जाता है तो पीड़ित / पत्नी का भविष्य बर्बाद हो जाएगा": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामले को खारिज किया

Avanish Pathak

23 Sep 2022 8:46 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति के खिलाफ पोक्सो मामले में दर्ज एक एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। कोर्ट ने नोट किया कि आरोपी और पीड़िता (जो घटना के समय नाबालिग थी) ने अपनी मर्जी से आपस में विवाह कर लिया है और एक सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे हैं।

    जस्टिस मंजू रानी चौहान ने मामले को रद्द करते हुए कहा,

    "मौजूदा मामले में शामिल अपराध के लिए अपराधियों को दंडित करना समाज के हित में है, हालांकि साथ ही पति अपनी पत्नी की देखभाल कर रहा है। मामले में अगर पति को दोषी ठहराया जाता है और सामाजिक हित में सजा सुनाई जाती है तो पत्नी मुसीबत में पड़ जाएगी और उसका भविष्य बर्बाद हो जाएगा। उनके कल्याण के लिए परिवार को बसाना भी समाज के हित में है।"

    मामला

    पीड़िता के मामा ने आरोपी के खिलाफ धारा 363, 366 और 376 आईपीसी और पोक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप था कि आरोपी ने पीड़िता (तब 17 साल की नाबालिग) के साथ रेप किया था।

    हालांकि, आरोपी ने तत्काल एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 482 तहत याचिका दायर की। पीड़िता भी अदालत के सामने पेश हुई और कहा कि उसके मामा ने उसकी शादीशुदा जिंदगी को बर्बाद करने की कोशिश में एफआईआर दर्ज कराई है।

    उसने आगे कहा कि उसने आरोपी के साथ समझौता किया है और अपनी मर्जी और सहमति से, बिना किसी बाहरी दबाव, जबरदस्ती या किसी भी तरह की धमकी के, विवाह किया है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि विवाह से, उन्हें एक बच्‍चा है, जो साढ़े चार वर्ष का है और जन्म तिथि के अनुसार, शादी के समय वह लगभग साढ़े 17 वर्ष की थी।

    इस पृष्ठभूमि में, आरोपी-आवेदक ने प्रस्तुत किया कि संबंधित पक्षों के बीच हुए समझौते के कारण, उनके बीच सभी विवाद समाप्त हो गए हैं, और इसलिए, मामले में आगे की कार्यवाही रद्द किए जाने योग्य है।

    निष्‍कर्ष

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की संबंधित धारा 363, 366 और 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 3/4 के तहत अपराध सीआरपीसी की धारा 320 के तहत कंपाउंडेबल नहीं हैं, हालांकि धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाईकोर्ट धारा 320 सीआरपीसी के प्रावधानों से बाधित नहीं है और एफआईआर के साथ-साथ आपराधिक कार्यवाही को धारा 482 सीआरपीसी के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करके रद्द किया जा सकता है, यदि दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों में न्याय के उद्देश्य के लिए या न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी है तो यहां तक ​​कि उन मामलों में भी जो कंपाउंडेबल नहीं हैं जहां पार्टियों ने आपस में मामले को सुलझा लिया है।

    इस प्रकार, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और पक्षकारों के वकील द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण पर विचार करते हुए, अदालत ने माना कि पीड़िता ने स्वयं इस न्यायालय के समक्ष कहा है कि उसने आवेदक से खुद शादी की है। वे एक सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे हैं और विवाह से उन्हें एक बच्चा भी हुआ है, इसलिए, आपराधिक मामले की कार्यवाही को लंबा करके कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं किया जाएगा क्योंकि पार्टियों ने पहले ही अपने विवाद को सुलझा लिया है।

    तदनुसार, आरोप पत्र और संज्ञान आदेश के साथ-साथ आपराधिक मामले की पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया गया और आवेदन को अनुमति दी गई

    केस टाइटल- राजीव कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य [APPLICATION 482 No. - 4392 of 2016]

    केस साइटेशनः 2022 लाइव लॉ (एबी) 442

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