पति के एक्स्ट्रा मैरिटल पार्टनर को घरेलू हिंसा अधिनियम की कार्यवाही में प्रतिवादी नहीं बनाया जा सकताः कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

29 Jun 2021 4:00 AM GMT

  • पति के एक्स्ट्रा मैरिटल पार्टनर को घरेलू हिंसा अधिनियम की कार्यवाही में प्रतिवादी नहीं बनाया जा सकताः कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर किए गए आवेदन में एक पत्नी उस महिला को प्रतिवादी नहीं बना सकती है, जिसके साथ उसके पति के अवैध संबंध हैं।

    न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार की एकल पीठ ने कहा कि, ''अधिनियम की धारा 2 (क्यू) यह स्पष्ट करती है कि केवल उन्हीं व्यक्तियों को प्रतिवादी बनाया जा सकता है जो घरेलू संबंधों में रहे हैं। इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि उसके कथित तौर पर प्रतिवादी नंबर एक के (पति) के साथ अवैध संबंध थे और वह याचिकाकर्ता को अपने घर लाने के बारे में सोच रहा था। इस आरोप के अलावा, याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई अन्य आरोप नहीं हैं जो यह दर्शाता हो कि वह भी प्रतिवादी नंबर एक के पति के साथ मिलकर उसे परेशान कर रही थी। इसलिए याचिकाकर्ता अधिनियम की धारा 2(क्यू) के तहत परिकल्पित प्रतिवादी के दायरे में नहीं आती है। उसे अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर आवेदन में प्रतिवादी बनाना अनुचित है।''

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता एम.एच.प्रकाश ने प्रस्तुत किया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर आवेदन में प्रतिवादी नंबर एक ने याचिकाकर्ता को अनावश्यक रूप से एक पक्षकार बनाया है।

    इसके अलावा, यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर आवेदन में एक पक्षकार नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि वह अधिनियम की धारा 2 (क्यू) के तहत उल्लिखित प्रतिवादी के अर्थ में नहीं आती है। जहां तक ​​याचिकाकर्ता का संबंध है, यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने घरेलू हिंसा की है ताकि उस से कोई राहत पाने का दावा करने के लिए मुकदमा चलाया जा सके। वास्तव में, यदि अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर किए गए आवेदन में दावा की गई राहत पर विचार किया जाता है, तो याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी भी तरह की राहत का दावा नहीं किया जाता है। इसलिए उसके खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने की आवश्यकता है।

    पत्नी ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि, ''याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर एक के पति के बीच अवैध संबंध होने के कारण प्रतिवादी नंबर एक को परेशान किया जाता था। याचिकाकर्ता के उकसाने पर घरेलू हिंसा की गई है और यही कारण है कि अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर आवेदन में उसे पक्षकार बनाया गया है।''

    न्यायालय का निष्कर्ष

    अदालत ने अधिनियम की धारा 2 (क्यू) का उल्लेख किया जो इस प्रकार हैः

    धारा 2 (क्यू) में 'प्रतिवादी' का अर्थ कोई भी वयस्क पुरुष व्यक्ति है जो पीड़ित व्यक्ति के साथ घरेलू संबंध में है या रहा है और जिसके खिलाफ पीड़ित व्यक्ति ने इस अधिनियम के तहत कोई राहत मांगी है। यह भी कहा गया है कि एक पीड़ित पत्नी या विवाह की प्रकृति के रिश्ते में रहने वाली महिला पति या पुरुष साथी के रिश्तेदार के खिलाफ भी शिकायत दायर कर सकती है।''

    कोर्ट ने कहा कि जिस महिला के साथ पति का कथित रूप से अफेयर चल रहा था, वह 'प्रतिवादी' की परिभाषा में नहीं आएगी।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि,''अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसके (याचिकाकर्ता) खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है। इसलिए यह कहा जाना चाहिए कि यह याचिका अनुमति देने योग्य है। तदनुसार, याचिका को अनुमति दे दी गई और सिर्फ याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रही कार्यवाही (Crl.Misc.45/2021 में जेएमएफसी, अरकलगूडु के समक्ष) को खारिज कर दिया गया।''

    आदेश डाउनलोड/पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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