पति ने पत्नी के हस्ताक्षरित चेक का दुरुपयोग किया, जिससे पत्नी को लेनदारों की कार्रवाई का सामना करना पड़ा; कोर्ट ने माना ऐसा करना 'क्रूरता' है: कर्नाटक हाईकोर्ट
Avanish Pathak
12 Sept 2023 4:14 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ पति की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पत्नी की ओर से दायर तलाक की याचिका को अनुमति दी थी।
पत्नी को पति के कारण लेनदारों द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही का सामना करना पड़ा था, जिनसे पति ने अपनी जीवनशैली और व्यसनों को पूरा करने के लिए पत्नी के नाम पर चेक जारी करके पैसे उधार लिए थे।
जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने कहा,
“अपीलकर्ता-पति ने अपने लिखित बयान और साक्ष्य में केवल क्रूरता के आरोपों से इनकार किया है, हालांकि, उसने प्रतिवादी-पत्नी के हस्ताक्षरित चेक के उपयोग के संबंध में कोई रुख नहीं अपनाया है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अपीलकर्ता-पति ने प्रतिवादी-पत्नी को बलि का बकरा बनाया गया और उसे अपने लेनदारों द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही का सामना करने के लिए मजबूर किया।"
अदालत ने कहा,
"अपीलकर्ता-पति के इन कृत्यों से अपमान और मानसिक क्रूरता हुई है, जिसे प्रतिवादी-पत्नी ने फैमिली कोर्ट के समक्ष उचित रूप से पेश किया और साबित किया है।"
इस जोड़े की शादी 2003 में हुई थी। पत्नी ने आरोप लगाया कि पति जुए, सट्टेबाजी, शराब पीने का आदी था और उसकी कमाई उसकी जीवनशैली को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। वित्तीय बाधाओं के कारण, उसने कथित तौर पर पैसे के लिए प्रतिवादी-पत्नी को शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान करना शुरू कर दिया।
दावा किया गया कि पति उसके बैंक खाते को संभालता था और उसने पत्नी के हस्ताक्षरित ब्लैंक चेक का दुरुपयोग करके 15.00 से 20.00 लाख रुपये का ऋण प्राप्त किया। जिसके बाद अजनबी लोग प्रतिवादी-पत्नी से पैसे की मांग के लिए उसके वैवाहिक घर में आने लगे।
इस प्रकार, प्रतिवादी-पत्नी ने क्रूरता के आधार पर विवाह को समाप्त करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी। इसके विपरीत, पति ने दावा किया कि उसने न तो प्रतिवादी-पत्नी से उसके हस्ताक्षरित ब्लैंक चेक मांगे और न ही उसने 15.00 से 20.00 लाख रुपये उधार लिए थे, जैसा कि आरोप लगाया गया है।
फैमिली कोर्ट ने गवाहों के साक्ष्यों पर विचार करने और बयानों पर विचार करने के बाद पत्नी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया।
अपील में, पति ने तर्क दिया कि प्रतिवादी-पत्नी उचित दलील और सबूतों द्वारा क्रूरता के आधार को साबित करने में विफल रही, इसके बावजूद, फैमिली कोर्ट पत्नी को वैवाहिक घर में वापस लाने के लिए अपीलकर्ता-पति द्वारा किए गए प्रयासों पर विचार किए बिना विवाह को भंग करने के लिए आगे बढ़ गई है।
कोर्ट ने नोट किया कि पति, पत्नी के बैंक खाते का संचालन करता था और उसने प्रतिवादी-पत्नी की जानकारी के बिना उसके लेनदारों को हस्ताक्षरित ब्लैंक चेक दिए थे और लेनदार उसके वैवाहिक घर आते थे और प्रतिवादी-पत्नी पर ऋण में लिए गए रुपयों के पुनर्भुगतान के लिए दबाव डालते थे।"
पीठ ने कहा, "अपीलकर्ता ने प्रतिवादी-पत्नी के आरोप पर अविश्वास करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया है।"
कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने एक स्पष्ट निष्कर्ष दर्ज किया था कि प्रतिवादी, गृहिणी होने के नाते, न तो ऋण राशि का उपयोग किया है और न ही उसने अचल संपत्ति की बिक्री के लिए प्राप्त बिक्री प्रतिफल राशि का उपयोग किया है और यह अपीलकर्ता-पति है, जिसने ऐसा किया है। उसने उक्त राशि का उपयोग किया और प्रतिवादी-पत्नी को कष्ट सहना पड़ा।
कोर्ट ने कहा, "फैमिली कोर्ट का उक्त निष्कर्ष दस्तावेजी सबूतों पर आधारित है जो मौखिक गवाही से भी पुष्ट होता है।"
इस प्रकार यह माना गया कि फैमिली कोर्ट का यह निष्कर्ष कि अपीलकर्ता-पति ने पत्नी के साथ मानसिक क्रूरता की है, रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर आधारित है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (कर) 351