"लोग या तो मानसिक बीमारी को नज़रअंदाज़ करते हैं या धार्मिक रूप से उसका उपचार करते हैं" : एचपी हाईकोर्ट ने मानसिक बीमारी के आधार पर बलात्कार के आरोपी को ज़मानत दी
LiveLaw News Network
5 Aug 2021 6:51 PM IST
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (एचपी हाईकोर्ट) ने हाल ही में गंभीर मानसिक बीमारी से पीड़ित बलात्कार के एक आरोपी को यह कहते हुए ज़मानत दी कि उसे इस अवस्था में जेल में नहीं छोड़ा जा सकता।
न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की खंडपीठ एक नाबालिग लड़की को लुभाने और उसके साथ बलात्कार करने के आरोप में एक व्यक्ति की गिरफ्तारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
न्यायालय ने महत्वपूर्ण रूप से देखा कि,
"... लोगों और समाज में एक प्रवृत्ति है कि मानसिक समस्याओं को बीमारी के रूप में नहीं मानते और इस प्रकार या तो इसे अनदेखा कर देते हैं या धार्मिक रूप से उसका उपचार करते हैं।"
अभियोजन पक्ष के मामले में पीड़िता ने याचिकाकर्ता की वजह से अपना घर छोड़ दिया था। उससे एक माह पूर्व जब वह अपनी बहन के घर गई थी, तभी जमानत याचिकाकर्ता उससे मिला था।
कथित तौर पर जब वह रात में वॉशरूम के लिए कमरे से बाहर गई तो याचिकाकर्ता ने उसे रोका और उसके साथ जबरदस्ती की और उसने उससे शादी करने का वादा किया।
साथ ही उसने लड़की को धमकी दी कि वह इस घटना को किसी को न बताए और अगर उसने ऐसा किया तो उन्होंने घटना का जो वीडियो बनाया है, वह उसे सार्वजनिक कर देगा।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने लड़की से कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ उसके घर जाएगा। हालांकि, वह उससे मिलने नहीं गया और वह 28 जनवरी तक इंतजार करती रही और उस दिन वह अपने घर चली गई।
इसके बाद एक महिला ने उसे देह व्यापार में धकेल दिया और दो अन्य लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया।
जमानत अर्जी
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसे कुछ मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हैं और यहां तक कि हिरासत के दौरान भी उसे नाहन के अस्पताल में जांच के लिए ले जाया गया है।
यह प्रस्तुत किया गया था कि याचिकाकर्ता युवा है और जघन्य अपराध में दूर से भी शामिल नहीं है, जैसा कि आरोप लगाया गया है कि अगर वह एक अपराध के लिए सलाखों के पीछे है, जो उसके खिलाफ साबित होना बाकी है, तो उसे भुगतना होगा।
न्यायालय की टिप्पणियां
कोर्ट ने स्टेटस रिपोर्ट का अध्ययन किया, जिसमें राज्य ने मानसिक बीमारी से इनकार नहीं किया, बल्कि विशेष रूप से कहा कि याचिकाकर्ता का इलाज पीजीआई चंडीगढ़ के मनोरोग विभाग में चल रहा है।
राज्य आरोपी की मेडिकल स्थिति और अन्य रिकॉर्ड भी दाखिल करता है।
इन परिस्थितियों में न्यायालय ने इस प्रकार देखा,
"तथ्य यह है कि पीजीआई चंडीगढ़ में आरोपी का इलाज किया जा रहा है, जो कि प्रसिद्ध संस्थान है, खुद उसकी बीमारी की गंभीरता को दर्शाता है... गंभीर मानसिक बीमारी से पीड़ित याचिकाकर्ता को इस अवस्था में जेल में नहीं छोड़ा जा सकता, जबकि उसके परिवार ने इसका इलाज कराने का बीड़ा उठाया है। इस आधार पर याचिकाकर्ता जमानत का हकदार है।"
याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया। इसके लिए उसे 10 हज़ार रुपये का निजी मुचलका प्रस्तुत करना होगा और साथ ही जांच करने वाले पुलिस स्टेशन पर अधिकारिता रखने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के अनुसार 25-25 हज़ार रुपए के दो जमानतदार पेश करे।
केस का शीर्षक - अजय कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य
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