इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार किया, कहा-विभाजन को बढ़ावा देने वाले कृत्य बहुलवाद पर प्रभाव डालते हैं

Avanish Pathak

1 Feb 2023 4:36 PM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार किया, कहा-विभाजन को बढ़ावा देने वाले कृत्य बहुलवाद पर प्रभाव डालते हैं

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिसाब-किताब टिप्पणी मामले में जेल में बंद नेता मुख्तार अंसारी के बेटे और मऊ सदर विधायक अब्बास अंसारी के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा कि अंसारी द्वारा एक सार्वजनिक सभा में आपत्तिजनक शब्द जिस संदर्भ और मंशा से बोले गए थे, उसे देखते हुए इस स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता कि आईपीसी की धारा 153-ए के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध नहीं बनता है।

    कोर्ट के आदेश में कहा गया,

    "धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्ति का दायरा सीमित है, और इसे असाधारण मामलों में प्रयोग किया जाना चाहिए, जहां शिकायत या चार्जशीट किसी भी अपराध का खुलासा नहीं करती है। आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध आकर्षित होता है या नहीं, यह मुकदमे के दरमियान अभियोजन पक्ष की ओर से पेश साक्ष्य की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा। हालांकि, इस स्तर पर इस अदालत को चल रही कार्यवाही या चार्जशीट में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला।"

    अंसारी के खिलाफ मामला मार्च 2022 में मऊ जिले में एक सार्वजनिक रैली में सरकारी अधिकारियों को धमकी देने के कथित बयान से संबंधित है, जिसके ‌लिए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। उन्होंने उक्त चुनाव मऊ सदर विधानसभा से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीता था।

    उन्होंने हाईकोर्ट में चार्जशीट को चुनौती देने के साथ-साथ तलब करने और संज्ञान लेने के आदेश को निचली अदालत के इस आधार पर चुनौती दी थी कि कल्पना के किसी भी सीमा तक कथित बयान आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध नहीं होगा।

    निष्कर्ष

    शुरुआत में अदालत ने आईपीसी की धारा 153ए की सामग्री का अवलोकन किया और नोट किया कि अव्यवस्था पैदा करने या लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का इरादा आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध का अनिवार्य हिस्सा है और अभियोजन पक्ष को जैसा कि बलवंत सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य; (1995) 3 एससीसी 214 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है, आपराधिक इरादे के अस्तित्व को साबित करना होगा।

    आपराधिक इरादे को परीक्षण के दरमियान साबित किया जा सकता है। हालांकि यदि यह प्रथम दृष्टया साबित हो सकता है कि कार्य, संकेत या शब्दों में सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने या लोगों को हिंसा के लिए उकसाने की प्रवृत्ति थी, तो कार्यवाही को दहलीज़ पर रद्द नहीं किया जा सकता है।

    इस पृष्ठभूमि में अदालत ने कहा कि जिस संदर्भ और इरादे से सार्वजनिक सभा में आपत्तिजनक शब्द बोले गए थे, यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध नहीं किया गया था।

    गौरतलब है कि न्यायालय ने यह भी कहा कि राष्ट्र की एकता और अखंडता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे कार्य जो विभाजन, अलगाव और योजनाबद्धता को बढ़ावा देते हैं या बढ़ावा देने की संभावना रखते हैं, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विविधता और बहुलवाद पर प्रभाव डालते हैं।

    कोर्ट ने उक्त अवलोकन के साथ याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटलः अब्बास अंसारी और अन्य बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य [Appl U/S 482 No.25838 of 2022]

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 44

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