जनहित याचिका सभी मर्ज़ का इलाज नहीं, इसका इस्तेमाल संदेहास्पद उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

SPARSH UPADHYAY

11 Aug 2020 10:54 AM GMT

  • जनहित याचिका सभी मर्ज़ का इलाज नहीं, इसका इस्तेमाल संदेहास्पद उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बुधवार (05 अगस्त) को एक याचिका की सुनवाई की, जिसमे 'हिमाचल प्रदेश सबऑर्डिनेट एलाइड सर्विसेज (मुख्य) परीक्षा -2019' को स्थगित करने की मांग की गयी थी कि यह कहा गया था कि परीक्षा को COVID-19 संकट सामान्य होने के बाद आयोजित किया जाए।

    [नोट: उक्त परीक्षा 6 (गुरुवार) और 7 (शुक्रवार) अगस्त को शिमला, मंडी और धर्मशाला में स्थापित विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर आयोजित की गई।]

    जस्टिस तारलोक सिंह चौहान और जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ की पीठ ने याचिकाकर्ता (हिमांशु) द्वारा दायर इस याचिका के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की।

    यह देखते हुए कि जो दलीलें उठाई गईं, वे पूरी तरह से गलत थीं, पीठ ने टिप्पणी की,

    "…जनहित याचिका के आकर्षक ब्रांड नाम का इस्तेमाल शरारत के संदिग्ध उत्पादों के लिए नहीं किया जा सकता है। इसका उद्देश्य वास्तविक सामान्य एवं आमजन की चिंताओं का निवारण करना है और इसका इस्तेमाल प्रचार-प्रसार या व्यक्तिगत प्रतिशोध या निजी मकसद के लिए नहीं होना है।"

    वर्तमान मामले में, अदालत ने याचिकाकर्ता की जांच करते हुए उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता, इस परीक्षा का न तो कोई उम्मीदवार था और न ही इस परीक्षा से उसका कोई सरोकार था।

    अदालत ने कहा कि "याचिका में दावा किया गया है कि उक्त परीक्षा के औसतन 2331 उम्मीदवार हैं, जो परीक्षा में भाग लेंगे और ऐसे उम्मीदवारों में से कोई भी, जो अन्यथा अच्छी तरह से शिक्षित और योग्य हैं, ने परीक्षा को स्थगित करने के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया था।"

    इसके अलावा, अदालत द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया कि याचिकाकर्ता, खुद के हिमाचल प्रदेश का निवासी होने का दावा करता है लेकिन इस आधार पर भी उसे इस याचिका में मांगी गई राहत के लिए कार्रवाई का कोई कारण/आधार प्राप्त नहीं होगा। इसक साधारण कारण यह है कि याचिकाकर्ता स्वयं उन उम्मीदवारों की ओर से यह याचिका दायर करने का दावा करता है, जिन्हें परीक्षा देनी है।

    आदेश में कहा गया,

    "इस तरह के मामलों में लोकस-स्टैंडी का सामान्य नियम शिथिल किया जाता है ताकि अदालत गरीबों, वंचितों, निरक्षर और कमजोर वर्ग की ओर से की गई शिकायतों पर गौर कर सके जो लोक समस्या या किसी भी संवैधानिक या कानूनी अधिकार के उल्लंघन का सामना कर रहे हैं। लेकिन, तब लोगों के अधिकारों को किसी भी तरह से उल्लंघन होने से बचाने के लिए, इस बात का अत्यंत ध्यान रखा जाता है कि न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र को हस्तांतरित नहीं करता है और न ही यह उन याचिकाओं का मनोरंजन करता है जो प्रेरित हैं।"

    वर्तमान मामले में, एक अंतिम प्रयास के रूप में, याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील ने पीठ के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया कि यह याचिका उम्मीदवारों की ओर से दायर की गई थी, लेकिन उनके नामों का जानबूझकर खुलासा नहीं किया गया है क्योंकि यह आशंका है कि फिर प्रतिवादी नंबर 1 (हिमाचल प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग) ऐसे उम्मीदवारों के प्रति प्रतिशोधी हो जायेगा। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया।

    न्यायालय ने इस तथ्य को दोहराया कि उक्त परीक्षा के उम्मीदवार अच्छी तरह से शिक्षित और योग्य हैं और अगर वे व्यथित होते हैं, तो वे स्वयं सीधे अदालत में पहुंच सकते थे और याचिकाकर्ता के जरिये उन्हें अदालत से संपर्क करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

    इसके अलावा, एक जनहित याचिका के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए अदालत ने टिप्पणी की

    "जनहित याचिका सभी मर्जों के लिए एक रामबाण या इलाज नहीं है। यह अनिवार्य रूप से कमजोर और वंचितों के बुनियादी मानवाधिकारों की रक्षा के लिए है। जनहित याचिका एक ऐसा हथियार है जिसका उपयोग बड़ी सावधानी के साथ किया जाना है और न्यायपालिका को यह देखने के लिए बेहद सावधान रहना होगा कि सार्वजनिक हित के सुंदर घूंघट के पीछे, बदसूरत निजी द्वेष, निहित स्वार्थ और / या सार्वजनिक हित की तलाश तो नहीं की जा रही है।"

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि नागरिकों को न्याय दिलाने के लिए जनहित याचिका को कानून के शस्त्रागार में एक प्रभावी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना है। अदालतों को सद्भावना को बढ़ावा देकर न्याय करना चाहिए और कानून को चालाक आक्रमणों से रोकना चाहिए।

    पीठ ने खुद को याद दिलाया कि अदालत को न्याय के लिए हस्तक्षेप करके सामाजिक संतुलन बनाए रखना चाहिए और उस याचिका पर विचार करने से इंकार करना चाहिए जो सामाजिक न्याय और लोकहित के खिलाफ है।

    अंत में, पीठ ने नोट किया कि मौजूदा याचिका एक प्रचार उन्मुख याचिका के अलावा और कुछ नहीं है, न कि एक जनहित याचिका है और उसी के अनुसार रु. 10,000/- की लागत के साथ याचिका को निपटाया गया, इस धनराशी को याचिकाकर्ता को 'हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय वेलफेयर एसोसिएशन' को याचिकाकर्ता को अदा करना होगा।

    मामले का विवरण:

    केस नं: CWPIL NO. 6 ऑफ़ 2020

    केस का शीर्षक: हिमांशु बनाम हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग एवं अन्य

    कोरम: न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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