हाईकोर्ट ने अपने रोजगार के कारण डीयू के 2-ईयर एलएलएम कोर्स से 3-ईयर कोर्स में ट्रांसफर की मांग वाली जज की याचिका खारिज की
Shahadat
24 Nov 2023 10:37 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक जज द्वारा दायर वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें न्यायिक अधिकारी के रूप में उसके रोजगार के कारण उसकी चल रही पढ़ाई को पूरा करने के लिए उसे 2-ईयर एलएलएम से दिल्ली ट्रांसफर द्वारा प्रस्तावित 3-ईयर कोर्स में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी।
जस्टिस पुरुषइंद्र कुमार कौरव ने कहा कि यूनिवर्सिटी द्वारा प्रस्तावित 3-ईयर एलएलएम कोर्स विशेष रूप से उन लोगों के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो नौकरीपेशा हैं, लेकिन यह निर्धारित नहीं करता है कि यदि कोई स्टूडेंट 2-ईयर कोर्स के बीच में रोजगार प्राप्त करता है तो वह रोजगार के साथ-साथ पढ़ाई जारी रखने के लिए 3-ईयर कोर्स का लाभ उठा सकता है।
अदालत ने कहा कि 3-ईयर एलएलएम लाने के पीछे के उद्देश्य से बेशक, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह विशेष रूप से कामकाजी पेशेवरों की सुविधा के उद्देश्य से है।
अदालत ने कहा,
“यह मानते हुए भी कि कोर्स स्ट्रक्चर दोनों कोर्स के लिए समान है, जैसा कि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया, यह किसी भी विवेकपूर्ण समकक्षता को प्रस्तुत नहीं करेगा, जिसे उक्त कोर्स के बीच खींचा जा सकता है, क्योंकि अन्य महत्वपूर्ण विचार हैं, जो उन्हें एक-दूसरे से अलग करते हैं।”
जस्टिस कौरव ने जस्टिस छाया त्यागी द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में टू ईयर एलएलएम में अपना फर्स्ट ईयर पूरा करने के बाद 13 सितंबर, 2019 को दिल्ली न्यायिक सेवा में शामिल हुईं।
उसने ट्रांसफर से उसे ईवनिंग क्लासेस में शामिल होने और एलएलएम की सेकेंड ईयर की परीक्षा में बैठने की अनुमति देने के निर्देश देने की मांग की। विकल्प के तौर पर उसने थ्री ईयर कोर्स में ट्रांसफर की मांग की।
याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि न्यायाधीश ने सूचना बुलेटिन की शर्त के अनुसार ट्रांसफर को शपथ पत्र सौंपा था कि दो वर्षीय एलएलएम में एडमिशन लेने वाला स्टूडेंट है। इस आशय का शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा कि वह किसी भी लाभकारी कार्य या रोजगार में नियोजित या संलग्न नहीं है।
अदालत ने कहा,
“यह उल्लेखनीय है कि एडमिशन के समय याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त हलफनामा, जिसे रिकॉर्ड पर रखा गया है, स्पष्ट रूप से कहता है कि याचिकाकर्ता अपने एलएलएम के दौरान किसी भी व्यापार, व्यवसाय, सेवा या पेशे में संलग्न नहीं होगी। इसलिए वह उक्त कथन से बंधी हुई है, क्योंकि रोक का सिद्धांत उसके खिलाफ लागू होगा। अब वह उक्त पद से वापस नहीं लौट सकती।''
इसमें कहा गया कि एक बार जब कोई उम्मीदवार प्रॉस्पेक्टस के नियमों और शर्तों के अनुसार एडमिशन प्रक्रिया में भाग लेता है तो उसे उक्त प्रॉस्पेक्टस की सामग्री को पलटने और चुनौती देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
अदालत ने कहा,
“वर्तमान मामले में उत्तरदाताओं का नीतिगत निर्णय न तो किसी कानूनी कमजोरी से ग्रस्त है और न ही दुर्भावना के किसी आरोप से ग्रस्त है। बेशक, याचिकाकर्ता भी अलग-अलग कॉलेज में ट्रांसफर की मांग नहीं कर रही है, इसलिए ट्रांसफर से संबंधित निर्णय याचिकाकर्ता के मामले को बचाने के लिए नहीं आते हैं।”
केस टाइटल: छाया त्यागी बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी एवं अन्य।
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