हाईकोर्ट ने सेवाओं पर एलजी को ओवरराइडिंग पॉवर देने वाले केंद्र सरकार के अध्यादेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया
Shahadat
20 July 2023 1:01 PM IST

Delhi High Court
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार द्वारा 19 मई को लागू राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने एडवोकेट श्रीकांत प्रसाद को यह देखते हुए याचिका वापस लेने की अनुमति दी कि अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
हालांकि पीठ ने प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामले में हस्तक्षेप करने के लिए उचित आवेदन दायर करने की छूट दी।
अदालत ने कहा,
“यह देखा गया कि इस तरह के अध्यादेश के संबंध में संवैधानिक वैधता को चुनौती सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है और मामला सूचीबद्ध है। याचिकाकर्ता लंबित मामले में उचित आवेदन दायर करने की छूट के साथ याचिका वापस लेने का अनुरोध करता है।
रिट याचिका को उपरोक्त स्वतंत्रता के साथ वापस लिया गया मानकर निपटाया जाता है।
अध्यादेश, जिसे दिल्ली सेवा अध्यादेश के रूप में भी जाना जाता है, राष्ट्रपति द्वारा 19 मई को अनुमोदित किया गया और इसका प्रभाव निर्वाचित सरकार को "सेवाओं" पर शक्ति से वंचित करना है।
याचिका में कहा गया,
“दिल्ली के उपराज्यपाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति के साथ निर्णयों के टकराव के मामलों में विवेक से कार्य करने की ओवरराइडिंग पॉवर दी गई । अध्यादेश में दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के निर्माण की भी परिकल्पना की गई, जो एनसीटीडी में प्रशासनिक अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग के लिए सिफारिशें करेगा, जिसे उपराज्यपाल द्वारा अंतिम रूप दिया जाएगा।”
इसमें कहा गया कि यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के एक हफ्ते बाद लाया गया कि दिल्ली सरकार के पास सूची II (सेवाओं) की प्रविष्टि 41 पर अधिकार है।
याचिका में कहा गया,
“सुप्रीम कोर्ट के गर्मी की छुट्टियों के लिए बंद होने के कुछ घंटों बाद आधी रात को अध्यादेश जारी करने में कुछ प्रतीकात्मकता हो सकती है। तब से अध्यादेश की वैधता के बारे में राजनीतिक और कानूनी हलकों में गहन बहस हो रही है, निस्संदेह दिल्ली सरकार की अधिकारियों पर नियंत्रण की शक्ति को कम करके दिल्ली के विकास में असुविधा पैदा करने की दुर्भावनापूर्ण मंशा को दर्शाता है।”
केस टाइटल: श्रीकांत प्रसाद बनाम भारत संघ एवं अन्य

