हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल की पदोन्नति में दिल्ली सरकार द्वारा लैंगिक भेदभाव का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

Shahadat

13 Jan 2023 11:44 AM GMT

  • हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल की पदोन्नति में दिल्ली सरकार द्वारा लैंगिक भेदभाव का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में प्रिंसिपल की पोस्ट पर वाइस प्रिंसिपल की पदोन्नति में दिल्ली सरकार द्वारा लैंगिक भेदभाव का आरोप लगाते हुए दायर जनहित याचिका पर विचार करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि यदि किसी महिला वाइस प्रिंसिपल को लैंगिक पक्षपात के आधार पर पदोन्नति की अनदेखी की जाती है तो ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप से उचित कानूनी कार्यवाही दायर करने के लिए स्वतंत्र है।

    कुछ प्रस्तुतियां करने के बाद अदालत से याचिका वापस ले ली गई।

    7 नवंबर, 2022 के समाचार पत्र के लेख के आधार पर एडवोकेट एहराज़ ज़फर द्वारा याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया कि दिल्ली सरकार ने पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग सूचियों के तहत प्रिंसिपल की नियुक्ति के लिए पात्र वाइस प्रिंसिपलों को आमंत्रित किया।

    याचिकाकर्ता वकील के अनुसार यह न केवल भेदभावपूर्ण और मनमाना है, बल्कि महिला वाइस प्रिंसिपल के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।

    याचिका में कहा गया,

    “रिक्तियों का विभाजन पुरुष और महिला के अनुसार किया गया, जो सभी पुरुष वाइस प्रिंसिपल को दिनांक 04.11.2022 की अधिसूचना की सूची में पदोन्नति देने के इरादे से किया गया, जबकि महिला वाइस प्रिंसिपल कई पुरुष से सीनियर होने के बावजूद सहकर्मियों को वाइस प्रिंसिपल की पोस्ट से प्रिंसिपल के पद पर पदोन्नति नहीं मिलेगी।”

    इस प्रकार जनहित याचिका में दिल्ली सरकार को वाइस प्रिंसिपल और प्रिंसिपल के पदों को लिंग के आधार पर विभाजित करने से रोकने और इस तरह की पदोन्नति के लिए दिशानिर्देश या नियम बनाने के निर्देश देने की मांग की गई।

    याचिका में यह भी कहा गया कि जिस तरह से दिल्ली सरकार ने पुरुषों और महिलाओं में पदोन्नति के लिए उपलब्ध पदों की संख्या को विभाजित किया, वह मनमाना है। इस प्रकार इसमें निर्धारित मानदंड बिना किसी औचित्य के है।

    याचिका में कहा गया,

    "लैंगिक मानदंडों की आड़ में पूरी पदोन्नति प्रक्रिया विशेष लिंग I इकाई के अनुरूप दर्ज है, जिसे कानून में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। इससे समान मात्रा में समानता का अधिकार, समान अवसर का अधिकार और रोजगार का अभाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः आजीविका का नुकसान होता है।”

    केस टाइटल: एहराज जफर बनाम दिल्ली सरकार और अन्य।

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