राज्य के निषेध की वैधता तय होने तक ऑनलाइन गेमिंग जारी रहने पर आसमान नहीं गिर पड़ेगा: कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं का तर्क

LiveLaw News Network

19 Nov 2021 11:44 AM IST

  • राज्य के निषेध की वैधता तय होने तक ऑनलाइन गेमिंग जारी रहने पर आसमान नहीं गिर पड़ेगा: कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं का तर्क

    कर्नाटक हाईकोर्ट में ऑनलाइन गेमिंग पर राज्य के प्रतिबंध को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने अपील की कि उन्हें अपने व्यवसायों को तब तक जारी रखने की अनुमति दी जाए जब तक कि कर्नाटक पुलिस (संशोधन) अधिनियम, 2021 की वैधता अदालत द्वारा तय नहीं की जाती।

    वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा,

    "अगर एक या दो महीने तक हमारे कारोबार को जारी रहने दिया जाए तो कोई आसमान नहीं गिरेगा।"

    उन्होंने कहा कि,

    महाधिवक्ता उस के बयान को जिसमें उन्होंने कहा कि ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के खिलाफ तब तक कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी जब तक कि याचिकाओं पर फैसला नहीं हो जाता है उसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए या इस आशय का एक आदेश "जारी किया जाना चाहिए ताकि तथ्यों को बदला न जा सके और माई लॉर्ड एक या दो महीने में पूरी दलीलें पूरी होने के बाद मामले को तय कर सके।"

    उन्होंने कहा,

    "हम (कंपनियां) करों का भुगतान कर रहे हैं। हमारे पास सैकड़ों कर्मचारी हैं। यदि यह यथास्थिति जारी रहती है या आश्वासन एक तरह से जारी रहता है या दूसरी तरफ कोई बड़ा प्रभाव महसूस नहीं किया जाएगा तो यह पूरी तरह से हमें दुकान बंद करने और घर जाने के लिए कहना जैसा होगा।"

    इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि संशोधन अधिनियम का उद्देश्य मौका और जुए के खेल को रोकना है। हालांकि, उस प्रक्रिया में एक ही प्रक्रिया के तहत मौका और कौशल के खेल का इलाज करना मनमाना है। साथ ही विधायिका द्वारा सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को न मानना भी है, जिसने कौशल के खेल की अनुमति दी है।

    ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी आर्यमा सुंदरम ने कहा,

    "अगर मैं इस संशोधन अधिनियम को आज के रूप में लेता हूं, अगर मैं ऑनलाइन शतरंज का खेल खेल रहा हूं और हम कहते हैं कि विजेता एक राशि ले लेगा तो यह एक अपराध होगा। अधिनियम अपने तहत स्वीकृत कृत्यों को लेता है, जो जुआ नहीं हैं।

    इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया,

    "मेरे सभी सदस्य थर्ड पार्टी व्यूअरशिप की पेशकश नहीं करते। ये ऑनलाइन गेम केवल वास्तविक खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध हैं। वह (खिलाड़ी) किसी और के कौशल पर दांव नहीं लगा रहा है। मुझे (खिलाड़ी) व्यक्तिगत रूप से एक ऐसे गेम में भाग लेना है जो एक कौशल गेम है और फिर उस पर दांव लगाना। सवाल यह है कि क्या यह जुआ होगा और संविधान की सूची 2 की प्रविष्टि 34 के अंतर्गत आता है।"

    यह भी तर्क दिया गया,

    "मूल अधिनियम (कर्नाटक पुलिस अधिनियम) केवल जुए से संबंधित है और वे वस्तुएं आज भी नहीं बदली हैं। सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय दोहराते हैं कि जब खेल में कौशल शामिल है तो यह जुआ नहीं होगा। उस पर दांव लगाना जुए के बराबर नहीं होगा।"

    उन्होंने अदालत से यथास्थिति जारी रखने का आग्रह किया जो 40 वर्षों से लागू है और कौशल के खेल के संबंध में कोई बदलाव नहीं किया गया है, खासकर जब खेलों को फेडरेशन द्वारा ही नियंत्रित किया जाता है।

    उन्होंने यह कहकर निष्कर्ष निकाला,

    "प्रथम दृष्टया सुविधा संतुलन का मामला बनता है और स्टे के अभाव में ये सभी लोग (कंपनियां) व्यवसाय से बाहर जाने वाले हैं। ऐसा नहीं है कि हम अपरिवर्तनीय स्थिति में हैं। अगर अदालत यह मानती है कि अधिनियम मान्य है तो उस दिन से प्रतिबंध को प्रभावी होने दें।"

    एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डीएलएन राव ने भी विधायी क्षमता के आधार पर संशोधन अधिनियम पर हमला किया और यह अनुच्छेद 19 (1) (जी) का उल्लंघन है।

    उन्होंने कहा,

    "प्रथम दृष्टया मामला बनता है और पूरा संशोधन कानून के अधिकार के बिना है।"

    तीन याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पूवैया ने कहा कि जब विधायी क्षमता को चुनौती दी जाती है तो संवैधानिकता की धारणा आड़े नहीं आएगी।

    उन्होंने कहा,

    "सभी याचिकाकर्ताओं द्वारा कहा गया मामला यह है कि सूची दो की प्रविष्टि 34 के तहत सट्टेबाजी और जुआ शब्द किसी भी विस्तृत परिभाषा से परे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न निर्णयों में संकेत दिया कि जब प्रविष्टि 34 के कानून की बात आती है तो इसे केवल कोशल के खेल में संबंधित होना चाहिए। सट्टेबाजी और जुए का खेल कौशल के खेल से संबंधित नहीं हो सकते हैं। हालांकि इसमें दांव लगाना शामिल हो सकता है, इसमें सट्टेबाजी या जुआ शामिल नहीं हो सकता।"

    एक ऑनलाइन गेम के खिलाड़ी याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता एस बसवराज ने कहा कि संशोधित धारा 78 (2) और धारा 80 के तहत भले ही मैं आवेदन डाउनलोड कर अपना रजिस्ट्रेशन कराकर अपने कौशल के अनुसार खेलूं, यह एक अपराध होगा।

    अदालत अब मंगलवार को अंतरिम राहत के पहलू पर अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखेगी। जिसके बाद महाधिवक्ता के अपना पक्ष रखने की संभावना है।

    पृष्ठभूमि:

    संशोधन अधिनियम पांच अक्टूबर को लागू हुआ। इसमें दांव लगाने या सट्टेबाजी के सभी प्रकार शामिल हैं, जिसमें इसके जारी होने से पहले या बाद में भुगतान किए गए पैसे के संदर्भ में मूल्यवान टोकन शामिल हैं। इसने 'कौशल' के किसी भी खेल के संबंध में इलेक्ट्रॉनिक साधनों और वर्चुअल करेंसी, मनी के इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि, कर्नाटक के भीतर या बाहर किसी भी रेसकोर्स पर लॉटरी, या घुड़दौड़ पर सट्टा लगाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

    उद्देश्यों और कारणों के बयान में कहा गया है:

    "कर्नाटक पुलिस अधिनियम, 1961 कर्नाटक अधिनियम 4 ऑफ 1964 में और संशोधन करना आवश्यक माना जाता है, ताकि अध्याय VII और धारा 90 के तहत अपराध करके इस अधिनियम के प्रावधानों 98, 108, 113,114 और 123 को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके, यहां संज्ञेय अपराध के रूप में और धारा 87 को छोड़कर गैर-जमानती है, जिसे संज्ञेय और जमानती बनाया गया है।"

    इसके अलावा,

    "गेमिंग की प्रक्रिया में कंप्यूटर संसाधनों या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में परिभाषित किसी भी संचार उपकरण सहित साइबर स्पेस के उपयोग को शामिल करें, ताकि गेमिंग के लिए दंड को बढ़ाने के लिए इंटरनेट, मोबाइल ऐप के माध्यम से नागरिकों का व्यवस्थित आचरण और उन्हें जुए की बुराई से दूर करने के लिए गेमिंग के खतरे को रोका जा सके।"

    केस टाइटल: ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: डब्ल्यूपी 18703/2021

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