ऑनलाइन कक्षाओं से स्वास्थ्य को खतरा: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बिना परीक्षा के आठवीं कक्षा तक के छात्रों को प्रमोट कर देने की याचिका पर जवाब मांगा

LiveLaw News Network

25 Nov 2020 7:16 AM GMT

  • ऑनलाइन कक्षाओं से स्वास्थ्य को खतरा: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बिना परीक्षा के आठवीं कक्षा तक के छात्रों को प्रमोट कर देने की याचिका पर जवाब मांगा

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संबंधित सरकारी प्राधिकरण से कहा है कि वह 8वीं कक्षा तक के छात्रों की अगली कक्षा में पदोन्नति के लिए 'जब तक फिजिकल कक्षाएं फिर से शुरू नहीं हो जाती परीक्षा प्रणाली नहीं वाली याचिका पर जवाब दे|

    यह याचिका ऑनलाइन कक्षाओं के कारण होने वाले बच्चों के बीच स्वास्थ्य संबंधी खतरों और लैपटॉप/कंप्यूटर/मोबाइल स्क्रीन द्वारा उत्सर्जित विद्युत चुम्बकीय तरंगों के लंबे समय तक संपर्क में रहने की पृष्ठभूमि में दायर की गई है।

    मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि,

    "यह मांग की गई है कि 8वीं कक्षा तक के छात्रों को बिना किसी परीक्षा के उच्च कक्षा में पदोन्नत किया जा सकता है क्योंकि ऐसी कक्षाओं के लिए भी कई शिक्षाविदों ने "कोई परीक्षा प्रणाली" के लिए सुझाव दिया है ।

    प्रतिवादी नंबर 3 को लिस्टिंग की अगली तारीख से पहले रिट के लिए याचिका का जवाब देने का निर्देश दिया गया है ।

    इस मामले को 4 दिसंबर, 2020 को सूचीबद्ध किया गया है।

    अदालत का यह निर्देश बच्चों की शिक्षा, विकास, सुरक्षा और कल्याण के लिए ट्रस्ट मासूम बचपन फाउंडेशन की ओर से दायर याचिका में आया है। इसमें न्यायालय से आग्रह किया था कि प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों को 2020-21 के शैक्षिक सत्र के लिए अगली कक्षा में प्रमोट कर देने के लिए राज्य शिक्षा अधिकारियों को एक निर्देश पारित किया जाए ।

    यह प्रस्तुत किया गया था कि प्राथमिक विद्यालय प्राथमिक छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित कर रहे हैं, जो वास्तव में, शिक्षा प्रदान करने से अधिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है । कुछ अध्ययनों का जिक्र करते हुए कहा गया कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की चिंता या तनाव के स्तर, तार्किक सोच, स्मृति, मनोदशा और मानसिक स्थिरता पर भारी प्रभाव पड़ रहा है। मनोवैज्ञानिक मुद्दों के अलावा, वही भी विद्युत चुम्बकीय तरंगों के कारण मानव मस्तिष्क पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है।

    याचिकाकर्ता-संगठन ने छात्रों की फीस और शिक्षकों के वेतन सहित गैर सहायता प्राप्त संस्थानों के खातों का नियमन करने की मांग की थी। इसने यह भी सुनिश्चित करने की मांग की थी कि किसी भी गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को लॉकडाउन की अवधि के लिए कोई शुल्क नहीं लेने की अनुमति दी जाए।

    यह प्रस्तुत किया गया की "लॉकडाउन की अवधि के दौरान, कोई शैक्षिक संस्थान नहीं खोला गया और इसलिए, उस अवधि के लिए छात्रों से कोई शुल्क नहीं लिया जा सकता है।'

    संबंधित समाचार:

    जून में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य चिंताओं का हवाला देते हुए राज्य के सभी बोर्डों के स्कूलों द्वारा लोअर किंडरगार्टन से कक्षा 5 तक के बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

    इसे उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी जिसने टिप्पणी की थी कि इस तरह का निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञों की समिति से परामर्श किया जाना चाहिए था । इसने प्रथम दृष्टया यह विचार व्यक्त किया था कि राज्य में एक आदेश पारित करके सभी बोर्डों के स्कूलों को छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करने से रोका नहीं जा सकता । इसके बाद राज्य सरकार ने सीमित घंटों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की अनुमति दे दी।

    झारखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी, जिसमें 5वीं कक्षा तक के छात्रों के लिए कक्षाओं की ऑनलाइन स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने, उनके मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए ऑनलाइन कक्षाओं के नियमन की मांग की गई थी । हालांकि, इस मामले में आदेशों की सूची/पारित करने के संबंध में सार्वजनिक डोमेन में कोई अपडेट उपलब्ध नहीं है।

    एक याचिका उच्चतम न्यायालय के समक्ष भी लंबित है जिसमें छोटे बच्चों के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग/वर्चुअल लर्निंग कक्षाओं के माध्यम से ऑनलाइन कक्षाओं को विनियमित करने के दिशा-निर्देश की मांग की गई है ।

    केस विवरण: मसूम बचपन फाउंडेशन बनाम स्टेट ऑफ यूपी एंड अदर्स

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