हाथरस गैंग रेप और मर्डर केस: यूपी कोर्ट ने तीन आरोपियों को बरी किया, एक को दोषी ठहराया

Shahadat

2 March 2023 8:59 AM GMT

  • हाथरस गैंग रेप और मर्डर केस: यूपी कोर्ट ने तीन आरोपियों को बरी किया, एक को दोषी ठहराया

    उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की एक अदालत ने सितंबर 2020 के सामूहिक बलात्कार और 19 वर्षीय दलित लड़की की हत्या के मामले में 4 आरोपियों में से 3 को आज बरी कर दिया। स्पेशल जज त्रिलोक पाल सिंह की अदालत, हाथरस (SC/ST, Pev. of Atroci Act) ने फैसला सुनाया।

    मुख्य आरोपी संदीप को अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 304 के तहत गैर इरादतन हत्या के अपराधों और एससी-एसटी अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया है। कोर्ट जल्द ही सजा सुनाने वाली है।

    अन्य चार अभियुक्तों - संदीप (20), रवि (35), लव कुश (23), और रामू (26) ने मामले में मुकदमे का सामना किया और उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया। सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में उन पर आईपीसी की धारा 376, 376 (डी), 302 और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अन्य अपराधों के तहत अपराध करने का आरोप लगाया।

    हालांकि, चार आरोपियों में से किसी को भी विशेष अदालत ने गैंगरेप या हत्या के अपराध का दोषी नहीं पाया।

    14 सितंबर, 2020 को यूपी के हाथरस जिले में चार लोगों द्वारा कथित तौर पर पीड़िता का अपहरण कर लिया था और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उसकी हड्डियां तोड़कर और उसकी जीभ काटकर क्रूर यातनाएं दी गईं।

    29 सितंबर 2020 को उसका निधन हो गया और उसके परिवार की सहमति के बिना आधी रात को पुलिस अधिकारियों (कथित तौर पर हाथरस डीएम के निर्देश पर) द्वारा उसका अंतिम संस्कार किया गया।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हड़बड़ी में किए गए दाह संस्कार को "बेहद संवेदनशील" मामला बताते हुए नागरिकों के बुनियादी मानवीय/मौलिक अधिकारों को छूते हुए अक्टूबर 2020 में पूरे प्रकरण का स्वत: संज्ञान लिया।

    अदालत ने कहा था,

    "राज्य को व्यक्ति के शरीर को गरिमा के साथ व्यवहार करने की अनुमति देकर मृत व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए और जब तक कि मृत्यु के कारण का पता लगाने के लिए अपराध स्थापित करने के उद्देश्यों के लिए आवश्यक न हो और पोस्टमॉर्टम या किसी वैज्ञानिक जांच, मेडिकल जांच के अधीन हो या कानून के अनुसार किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने के लिए मृत शरीर का संरक्षण और मानवीय गरिमा के अनुसार निपटान करना चाहिए।”

    पीड़िता के जल्दबाजी में अंतिम संस्कार के लिए यूपी प्रशासन द्वारा दिए गए कारणों से असंतुष्ट हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2020 को पूरी घटना पर नाराजगी व्यक्त की और पीड़िता और उसके परिवार के मानवीय और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए स्थानीय अधिकारियों को फटकार लगाई।

    जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस राजन रॉय की खंडपीठ ने कहा,

    "भारत ऐसा देश है जो मानवता के धर्म का पालन करता है, जहां हममें से प्रत्येक को जीवन और मृत्यु में एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। हालांकि, उपरोक्त तथ्य और परिस्थितियां अभी के रूप में पूर्व दृष्टया बताती हैं कि दाह संस्कार करने का निर्णय रात में पीड़िता का शव परिजनों को सौंपे बिना अथवा उनकी सहमति से स्थानीय स्तर पर प्रशासन द्वारा संयुक्त रूप से हाथरस के जिलाधिकारी के आदेश पर अमल में लाया गया। कानून और व्यवस्था की स्थिति के नाम पर, प्रथम दृष्टया पीड़िता और उसके परिवार के मानवाधिकारों का उल्लंघन है।"

    मामले की जांच अक्टूबर 2020 में सीबीआई को स्थानांतरित कर दी गई। सीबीआई ने दिसंबर 2020 में चारों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी।

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