''जांचकर्ताओं के हाथ बांधे नहीं जा सकते'': दिल्ली कोर्ट ने ऑफिस रेड के खिलाफ दायर अधिवक्ता महमूद प्राचा की अर्जी खारिज की

LiveLaw News Network

26 March 2021 6:15 PM IST

  • जांचकर्ताओं के हाथ बांधे नहीं जा सकते: दिल्ली कोर्ट ने ऑफिस रेड के खिलाफ दायर अधिवक्ता महमूद प्राचा की अर्जी खारिज की

    दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को एडवोकेट महमूद प्राचा की उस अर्जी का निपटारा कर दिया है,जो उसने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की दूसरी छापेमारी को चुनौती देते हुए दायर की थी। कोर्ट ने कहा कि उनके द्वारा उठाई गई आपत्तियां निराधार हैं।

    मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पंकज शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि,

    ''पेन ड्राइव में टारगेट डाटा उपलब्ध कराने वाली आवेदक की दलील पर केवल आईओ द्वारा स्वीकार्यता के मुद्दे के अधीन विचार किया जा सकता है और इसमें न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं है और यह भी कि आरोपी जांच के दौरान सबूत के संग्रह के तरीके और मोड के बारे में आईओ को निर्देशित नहीं कर सकता है। इसप्रकार, इस न्यायालय के विचार में आवेदक द्वारा उठाई गई आपत्तियां निराधार हैं। इसलिए विशेषज्ञ की राय के अनुसार सुरक्षा उपायों के अधीन सर्च वारंट को कानून के अनुसार निष्पादित किया जाना चाहिए।''

    यह देखते हुए कि सबूतों को एकत्रित करना जांच के लिए जरूरी है और जांचकर्ताओं के हाथों को साक्ष्य एकत्रित करने से रोकने के लिए नहीं बांधा जा सकता है, अदालत ने कहा किः

    ''किसी स्रोत से डेटा का संग्रह परीक्षण के दौरान उसकी स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है और आईओ के लिए अपने स्वयं के विवेक के अनुसार जांच के दौरान सबसे अच्छा सबूत इकट्ठा करना अनिवार्य है।''

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम (अटार्नी मुविक्कल विशेषाधिकार) की धारा 126 और बार काउंसिल कंडक्ट रूल्स के तहत निर्भरता के मुद्दे बारे में,कोर्ट ने कहा कि इस निर्भरता को गलत तरीके से बताया गया था क्योंकि इनके तहत स्वैच्छिक तौर पर अधिवक्ता द्वारा डेटा/ संचार शेयर करने के बारे में कहा गया है या अपने मुविक्कल के खिलाफ बयान देने के बारे में।

    कोर्ट ने कहा कि,''हालांकि, इस मामले में स्थिति अलग है क्योंकि एक आपराधिक मामले में जांच के आधार पर पुलिस द्वारा डेटा एकत्र किया जाना है। आवेदक के अन्य मुविक्कलों का डेटा साझा न करने की अर्जी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 के दायरे से बाहर है।''

    कोर्ट ने मंगलवार को एडवोकेट प्राचा और नई दिल्ली बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट आरके वाधवा की तरफ से दी गई दलीलों को सुनने के बाद इस अर्जी पर आदेश सुरक्षित रख लिया था। उन्होंने दिल्ली पुलिस के छापे पर बार का प्रतिनिधित्व करते हुए कड़ी आपत्ति की थी।

    अधिवक्ता आरके वाधवा के अनुसार, यह प्रस्तुत किया गया था कि वकीलों के परिसर पर छापा मारने का कार्य अस्वीकार्य और अवैध था क्योंकि यह गोपनीयता और मुविक्कल विशेषाधिकार की उनकी अटार्नी का उल्लंघन करता है जो न केवल कानूनी है बल्कि उनका नैतिक दायित्व भी है।

    एडवोकेट वाधवा द्वारा दी गई दलीलों का विरोध करते हुए एसपीपी अमित प्रसाद ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया था कि वकीलों के साथ एक विशेष श्रेणी के रूप में व्यवहार नहीं किया जा सकता है।

    इससे पहले, विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने अदालत को बताया था कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (वकील के विशेषाधिकार पर) की धारा 126 के तहत दिया गया संरक्षण सीआरपीसी की धारा 93 (जो सर्च वारंट से संबंधित है) तक नहीं बढ़ा सकते हैं।

    उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि प्राचा का आवेदन जांच के दायरे को सीमित कर रहा है और उनके द्वारा बनाया गया वर्गीकरण कानून की अनुमति के दायरे में नहीं आता है और भारत के संविधान के आर्टिकल का उल्लंघन है। इसके मद्देनजर, एसपीपी ने कोर्ट से आग्रह किया था कि सर्च पर लगाई रोक को हटा दिया जाए।

    न्यायालय ने जांच अधिकारी से इस बात पर प्रतिक्रिया मांगी थी कि वह श्री प्रचा के अन्य मुविक्कलों से संबंधित डेटा को बिना किसी भी सुस्पष्ट भेद्यता और किसी भी परिवर्तन या किसी के समक्ष खुलासा किए कैसे पेन ड्राइव के ''टारगेट डेटा'' को प्राप्त करना चाहते हैं?

    अदालत ने 10 मार्च 2021 के आदेश के तहत इस आवेदन की पेंडेंसी तक महमूद प्राचा के खिलाफ दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल द्वारा जारी सर्च वारंट के संचालन पर रोक लगा दी थी।

    न्यायालय ने पूर्व में कहा था कि हार्ड डिस्क में संग्रहीत अन्य डेटा के साथ बिना किसी बाधा के लक्षित डेटा की पुनर्प्राप्ति के मुद्दे को सावधानीपूर्वक देखा जाना चाहिए और साथ ही, भविष्य में भी सुस्पष्ट भेद्यता किए बिना ही लक्षित डाटा को प्राप्त करने पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि जांच अधिकारी के लिए लक्षित डेटा की प्रामाणिकता और अखंडता बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

    पृष्ठभूमि

    एडवोकेट महमूद प्राचा ने 9 मार्च को उनके कार्यालय में स्पेशल सेल द्वारा की गई दूसरी छापेमारी के खिलाफ आवेदन दायर किया था। उन्होंने पूरी छापेमारी को ''पूरी तरह से अवैध और अन्यायपूर्ण'' कहा था। प्राचा पिछले साल फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों की साजिश के कई आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

    प्राचा के अनुसार, उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किए जा रहे संवेदनशील मामलों के ''पूरे डेटा को अवैध रूप से चुराने के एकमात्र उद्देश्य'' के साथ दूसरी छापेमारी की गई थी। प्राचा ने अपने आवेदन में कहा था कि वह केवल अपने ग्राहकों से संबंधित डेटा और जानकारी की रक्षा के लिए अपने मौलिक अधिकार के हनन में आत्म-निहितार्थ को समाप्त करने की सीमा तक जा रहा है, क्योंकि वह एक वकील के रूप में सुरक्षा के लिए बाध्य है।

    पिछली कार्यवाही के दौरान, अधिवक्ता प्राचा ने न्यायालय में प्रस्तुत किया था किः

    ''अपने क्लाइंट के हितों की रक्षा करना मेरा मौलिक और संवैधानिक अधिकार है। अपनी अखंडता को बचाने के लिए उन्होंने जानबूझकर मेरे और मेरे क्लाइंट्स के जीवन को खतरे में डाल दिया है। यह बहुत ही संवेदनशील डेटा है। वे अपने राजनीतिक आकाओं के तहत कार्य करना चाहते हैं। मैं ऐसा नहीं कर सकता। यदि आप मुझे फांसी देना चाहते हैं, तो दें। लेकिन मैं अपने वकील के विशेषाधिकार का त्याग नहीं कर सकता।''

    प्राचा ने कहा था कि,

    ''मैं अपने क्लाइंट्स के जीवन को बचाने के लिए अपनी गर्दन की पेशकश कर रहा हूं। मैं अपने क्लाइंट्स के जीवन की रक्षा के लिए फांसी का सामना करने के लिए तैयार हूं। मैं मरने के लिए तैयार हूं। आप अपने राजनीतिक आकाओं को मुझे फांसी देने के लिए कहें। लेकिन मैं उन्हें अपने जीवन को नुकसान नहीं पहुंचाने दूंगा। चाहे जो हो जाए।''

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