ज्ञानवापी | हिंदू उपासकों के मुकदमे के सुनवाई योग्य होने पर चुनौती के मामले में मस्जिद समिति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष अपनी दलीलें खत्म की

Avanish Pathak

30 Nov 2022 3:32 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधनकारिणी समिति अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष वाराणसी कोर्ट के आदेश (12 सितंबर, 2022) के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका में अपने दलीलों को समाप्त कर दिया।

    जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 5 दिसंबर, 2022 तक के लिए स्‍थगित कर दिया। हालांकि, हिंदू उपासकों की ओर से पेश वकील ने अपनी दलील शुरू कर दी है और वह सुनवाई के अगले दिन अपनी दलीलें जारी रखेंगे।

    सुनवाई के दरमियान, जस्टिस मुनीर ने जिला जज, वाराणसी को यह भी निर्देश दिया कि अगले तीन दिनों के भीतर, निचली अदालत के रिकॉर्ड के लापता दस्तावेजों की विधिवत प्रमाणित ज़ेरॉक्स प्रतियां अदालत को भेजी जाएं।

    यह निर्देश उत्तरदाताओं/हिंदू उपासकों के वकील द्वारा हाईकोर्ट को यह बताए जाने के बाद दिया गया था कि हाईकोर्ट को भेजी गई निचली अदालत के रिकॉर्ड की ज़ेरॉक्स प्रतियों में सभी दस्तावेज़ नहीं थे।

    पृष्ठभूमि

    गौरतलब है कि वाराणसी कोर्ट ने इस साल सितंबर में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा के अधिकार की मांग करने वाली पांच हिंदू महिलाओं (वादी) द्वारा दायर एक मुकदमे के सुनवाई योग्य होने को चुनौती देने वाली अंजुमन समिति की याचिका (सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत दायर) को खारिज कर दिया था। .

    बाद में, मस्जिद समिति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष उसी आदेश को चुनौती देते हुए मौजूदा पुनरीक्षण याचिका दायर की।

    अपने आदेश में, वाराणसी के जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा था कि वादी का मुकदमा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम 1995 और यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 द्वारा वर्जित नहीं है, जैसा कि अंजुमन मस्जिद समिति (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) द्वारा दावा किया जा रहा था।

    वादी (हिंदू महिला उपासक) ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद परिसर की बाहरी दीवार पर मां श्रृंगार गौरी की पूजा करने का अधिकार मांगा है। अंजुमन समिति ने उस मुकदमे के सुनवाई योग्य होने को चुनौती दी थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि हिंदू उपासकों का मुकदमा कानून (पूजा स्‍थल अधिनियम, 1991) द्वारा वर्जित है।

    वादी ने दावा किया है कि वर्तमान मस्जिद परिसर कभी एक हिंदू मंदिर था और इसे मुगल शासक औरंगजेब द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था और उसके बाद, वर्तमान मस्जिद का ढांचा वहां बनाया गया था।

    उनके मुकदमे को चुनौती देते हुए, अंजुमन मस्जिद समिति ने अपनी आपत्ति और आदेश 7 नियम 11 सीपीसी आवेदन में तर्क दिया था कि मुकदमा पूजा स्‍थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 द्वारा विशेष रूप से वर्जित है।

    पूजा स्‍‌थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की प्रयोज्यता के संबंध में हिंदू महिला उपासकों द्वारा दायर मुकदमे पर रोक के रूप में, वाराणसी कोर्ट ने अपने 12 सितंबर के आदेश में विशेष रूप से यह माना कि चूंकि हिंदू उपासक दावा करते हैं कि हिंदू देवी-देवता 15 अगस्त, 1947 (जो पूजा स्थल अधिनियम के तहत प्रदान की गई अंतिम तिथि है) के बाद भी उनके द्वारा मस्जिद परिसर के अंदर पूजा की जा रही थी, इसलिए, इस मामले में इस अधिनियम की यहां कोई प्रयोज्यता नहीं होगी।

    केस टाइटलः कमेटी ऑफ मैनेजमेंट अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद वाराणसी बनाम श्रीमती राखी सिंह और अन्य [CIVIL REVISION No. - 101 of 2022]


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