'अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित न्याय का अधिकार निहित': गुजरात हाईकोर्ट ने DRT अहमदाबाद में पीठासीन अधिकारी की शीघ्र नियुक्ति का निर्देश दिया

Shahadat

29 Jun 2022 6:54 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने अहमदाबाद में लोन वसूली न्यायाधिकरण- I (DRT-I) में पीठासीन अधिकारी की शीघ्र नियुक्ति का निर्देश देते हुए परमादेश का रिट (Writ of Mgujarat-high-court-speedy-justice-article-21-appointment-presiding-officer-drtandamus) जारी किया। इसके साथ हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित न्याय का अधिकार निहित है।

    चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की खंडपीठ ने गुजरात बार काउंसिल में नामांकित वकील द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया। उक्त वकील विभिन्न अदालतों के समक्ष प्रैक्टिस कर रहा है।

    याचिकाकर्ता ने संकेत दिया कि DRT-I और DRT-II ने गुजरात राज्य पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया। यद्यपि DRT-II का प्रभार पीठासीन अधिकारी को दिया गया है, लेकिन DRT-I के पीठासीन अधिकारी का पद रिक्त है, जिससे वादियों और जनता को कठिनाई हो रही है।

    प्रारंभ में वित्त मंत्रालय ने DRT-II के पीठासीन अधिकारी को DRT-I का अतिरिक्त प्रभार देते हुए अधिसूचना जारी की थी। बाद में इसे 31 मार्च, 22 तक बढ़ा दिया गया था। हालांकि, प्रतिवादी द्वारा प्रभारी व्यवस्था का विस्तार करने के लिए कोई और अधिसूचना जारी नहीं की गई। इसके परिणामस्वरूप, उक्त पद एक अप्रैल से खाली पड़ा है। उसी के आधार पर संबंधित मामले DRT-I को बिना किसी कार्यवाही के स्थगित किया जा रहा है।

    हाईकोर्ट ने पाया कि त्वरित न्याय का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है और इसका पालन न करने से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत नागरिकों के अधिकारों का हनन होगा, क्योंकि वादी के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाता है।

    "जिन वादियों के मामले DRT-II से पहले हैं, वे DRT-II से राहत प्राप्त करने में सक्षम होंगे, जबकि वादी जो समान रूप से रखे गए हैं और याचिका दायर करके राहत की मांग कर रहे हैं, जो DRT-I के समक्ष लंबित है, पीठासीन अधिकारी के अभाव में उनके आवेदन या याचिकाएं समय-समय पर स्थगित की जा रही हैं और इस तरह उन्हें त्वरित न्याय के उनके वैध अधिकार से वंचित किया जा रहा है।"

    गौरतलब है कि एएसजी देवांग व्यास ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति की जा रही है और प्रभारी व्यवस्था करने के लिए कार्यालय आदेश जारी करने के लिए कदम उठाए जाएंगे। हालांकि, बेंच ने पाया कि इस मामले में दो तारीखें दी गई थीं, फिर भी नियुक्ति पर कोई असर नहीं पड़ा।

    'ठोस या सकारात्मक उत्तर' की कमी को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि अधिकारी को शीघ्रता से नियुक्त किया जाए और तब तक DRT-II को DRT-I के प्रभारी के रूप में नियुक्त करने के लिए उचित अधिसूचना जारी की जाए।

    केस नंबर: सी/डब्ल्यूपीपीआईएल/41/2022

    केस टाइटल: निपुण प्रवीण सिंघवी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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