गुजरात हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले में नाबालिग पत्नी द्वारा नाबालिग पति के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द की, माता-पिता पर मुकदमे की लागत लगाई

LiveLaw News Network

24 Oct 2020 8:51 AM IST

  • गुजरात हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले में नाबालिग पत्नी द्वारा नाबालिग पति के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द की, माता-पिता पर मुकदमे की लागत लगाई

    गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग 'पत्नी' द्वारा एक लड़के के खिलाफ दर्ज बलात्कार के मामले को खारिज कर दिया है।

    जस्टिस एएस सुपेहिया ने उनका बचपन बर्बाद करने और उन्हें इस अपमानजनक विवाद में खींचने के लिए माता-पिता पर 30 हजार की लागत लगाई। जज ने कहा कि आईपीसी और POCSO के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती है और ऐसे माता-पिता, जो इस तरह की रणनीति का सहारा लेते हैं, उन्हें बिना किसी जवाबदेही के आसानी से जाने नहीं दिया जा सकता है।

    एफआईआर में लड़की ने कहा था कि 07.02.2015 को उसकी शादी हुई थी, तब वह 11 साल की थी, जबकि आरोपी 17 साल का था। उसने आरोप लगाया कि 2016 के बाद पति ने उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। याचिका लंबित होने के दौरान लड़की ने एक हलफनामा दायर कर कहा कि दोनों पर‌िवारों ने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया है और वह आपराधिक मुकदमा आगे नहीं बढ़ाना चाहती।

    अदालत ने मामले की फाइलों का अवलोकन करने के बाद कहा कि लड़के के माता-पिता द्वारा दर्ज कराई गई एक अन्य शिकायत के विरोध में लड़के के खिलाफ उसकी पत्नी ने माता-पिता के इशारे पर ‌शिकायत दर्ज कराई थी।

    "दोनों माता-पिता ने नाबालिगों को शादी में कैद किया और उन्हें पति-पत्नी के संबंधों को विकसित करने के लिए मजबूर किया है जो उनके मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है। कानून के तहत निषेध होने के बावजूद माता-पिता ने उन्हें मासूम उम्र में विवाहित जीवन की कठोरता का सामना करने के लिए मजबूर किया। इस प्रकार, संबंधित प्राथमिकी की उत्पत्ति माता-पिता द्वारा किए गए बाल विवाह में निहित है। यह भी प्रतीत होता है कि गंभीर अपराधों के प्रावधानों वाली एफआईआर माता-पिता के इशारे पर दर्ज कराई गई है।

    नाबालिग याचिकाकर्ता पर अभियोजन पक्ष ने माता-पिता के इशारे पर बलात्कार का संगीन आरोप लगाया। मासूम उम्र में अभियोजन पक्ष को बलात्कार के अपराध की अनैतिकता और गंभीर परिणाम को समझाया गया।

    याचिकाकर्ता और अभियोजन पक्ष दोनों का बचपन उनके माता-पिता द्वारा दो बिंदुओं पर नष्ट किया गया, पहली बार कम उम्र में शादी करके, और दूसरा, उन्हें बलात्कार के अपराध में शामिल करके अपमानित किया गया। नाबालिगों का पूर्वाग्रहों और अहंकार को संतुष्ट करने के लिए हथियार के रूप में उपयोग किया गया है।"

    अदालत ने कहा कि आईपीसी और POCSO के तहत इस तरह के गंभीर अपराध का आरोप लगाने वाली आपराधिक मशीनरी का दुरुपयोग नहीं होने दिया जा सकता है और ऐसे बच्चों के माता-पिता जो इस तरह की रणनीति का सहारा लेते हैं, उन्हें बिना किसी जवाबदेही के आसानी से नहीं छोड़ा जा सकता है।

    "जांच प्राधिकारी ने जांच में पर्याप्त समय दिया है। संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियोजन पक्ष को पेश भी किया गया है। रजिस्ट्री सहित इस अदालत का बहुत समय बर्बाद किया गया है। इसलिए दंड के प्रावधानों के ऐसे दुरुपयोग से बचने के लिए, मेरा विचार है कि राज्य और न्यायालय के समय की बर्बादी की जवाबदेही तय करने का उचित समय है, इसलिए, मैं 30,000 रुपए की लागत लगाने के लिए उपयुक्त मानता हूं।

    अदालत ने एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि चूंकि अभियोजन पक्ष और याचिकाकर्ता दोनों के माता-पिता इस तरह के विवाद में उन्हें खींचकर उनके बचपन को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार हैं, इसलिए लागत उनके द्वारा समान रूप से साझा की जाएगी।

    जस्टिस सुपेहिया ने इस मामले में निर्णय महात्मा गांधी का हवाला देते हुए शुरू की,

    "सभ्य घर के बराबर कोई स्कूल नहीं है और गुणी माता-पिता के बराबर कोई शिक्षक नहीं है।" :- महात्मा गांधी।

    वर्तमान मामले के तथ्य हमारे राष्ट्रपिता की सोच को चकनाचूर कर देते हैं "

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