गुजरात हाईकोर्ट ने सीआईसी के उस आदेश को खारिज किया, जिसमें गुजरात यूनिवर्सिटी को पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी देने का निर्देश दिया था; दिल्ली सीएम पर 25 हजार का जुर्माना लगाया

Avanish Pathak

31 March 2023 9:49 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट ने सीआईसी के उस आदेश को खारिज किया, जिसमें गुजरात यूनिवर्सिटी को पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी देने का निर्देश दिया था; दिल्ली सीएम पर 25 हजार का जुर्माना लगाया

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने शु्क्रवार को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 2016 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें गुजरात यूनिवर्सिटी को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को "श्री नरेंद्र दामोदर मोदी के नाम पर डिग्री के बारे में जानकारी" प्रदान करने का निर्देश दिया गया था।

    इसके साथ, ज‌स्टिस बीरेन वैष्णव की पीठ ने सीआईसी के आदेश के खिलाफ गुजरात यूनिवर्सिटी की ओर से दायर अपील को इस आधार पर स्वीकार कर लिया कि उसे बिना नोटिस दिए पारित कर दिया गया था।

    उल्लेखनीय है कि संबंधित पक्षों को विस्तार से सुनने के बाद नौ फरवरी को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।

    खंडपीठ ने मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसे चार सप्ताह के भीतर गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा करना होगा। कोर्ट ने फैसले पर स्टे देने से भी इनकार कर दिया।

    मामला

    गुजरात यूनिवर्सिटी का मामला था कि डॉ. श्रीधर आचार्युलु (तत्कालीन केंद्रीय सूचना आयुक्त) ने "प्रधानमंत्री की योग्यता के संबंध में उनके समक्ष कार्यवाही को लंबित किए बिना विवाद पर स्वत: निर्णय लिया था।"

    केजरीवाल के चुनावी फोटो पहचान पत्र के संबंध में एक आवेदन पर विचार करते हुए आयोग ने उक्त स्वत: संज्ञान आदेश पारित किया था। दरअसल, आवेदन के लंबित रहने के दरमियान केजरीवाल ने आयोग को पत्र लिखा ‌था और पारदर्शी नहीं होने की कारण उसकी आलोचना की ‌थी।

    उन्होंने आगे कहा कि वह आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए तैयार हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनकी शैक्षणिक योग्यता के संबंध में किसी भ्रम से बचने के लिए उन्हें अपनी डिग्री के विवरण का खुलासा करने के लिए कहा जाना चाहिए।

    जिसके बाद केजरीवाल की प्रतिक्रिया को "एक नागरिक के रूप में दिए गए आरटीआई आवेदन" के रूप में मानते हुए आईसी ने पीआईओ को प्रधानमंत्री कार्यालय को दिल्ली यूनिवर्सिटी और गुजरात यूनिवर्सिटी को मोदी की बीए डिग्री और एमए डिग्री की "विशिष्ट संख्या और वर्ष" प्रदान करने का निर्देश दिया।

    गुजरात यूनिवर्सिटी को केजरीवाल को डिग्री प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। इसी आदेश के खिलाफ गुजरात यूनिव‌र्सिटी ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    तर्क

    यूनिवर्सिटी का मुख्य तर्क यह था कि विश्वविद्यालय के पास प्रधानमंत्री की डिग्री की जानकारी प्रत्ययी क्षमता (Fiduciary Capacity) में मौजूद थी, और सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(ई) के अनुसार, प्रत्ययी क्षमता में रखी गई जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता है, "जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि व्यापक जनहित में इस तरह की जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए"।

    मामले की सुनवाई के दरमियान गुजरात यूनिवर्सिटी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि आरटीआई एक्ट का "स्कोर सेटर करने के लिए और विरोधियों पर बचकाना प्रहार करने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है"।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि विश्वविद्यालय ने पहले ही प्रमाण पत्र को सार्वजनिक डोमेन में डाल रखा था, हालांकि, इस मामले में विश्वविद्यालय ने सिद्धांत रूप में यह तर्क दिया था कि क्या बाहरी उद्देश्यों के लिए किसी की जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए आरटीआई एक्ट को लागू किया जाना चाहिए।

    मेहता ने तर्क दिया,

    "आप एक अजनबी हैं, हालांकि उच्च पदस्थ हैं (अरविंद केजरीवाल का जिक्र करते हुए) ... वह जिज्ञासा से कह सकते हैं कि मैं अपनी डिग्री दूंगा लेकिन आप (प्रधानमंत्री) भी अपनी डिग्री दिखाइए... यह बहुत बचकाना है ... किसी की गैर-जिम्मेदाराना बचकानी जिज्ञासा को जनहित नहीं कहा जा सकता।"

    आरटीआई एक्ट की धारा 8 (1) (जे) का उल्लेख करते हुए मेहता ने तर्क दिया कि ऐसी जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित है, जिसके प्रकटीकरण का किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, का खुलासा नहीं किया जा सकता है, जब तक कि कोई ओवरराइडिंग पब्लिक इंटरेस्ट न हो।

    सीआईसी के आदेश को पढ़ते हुए, एसजी ने तर्क दिया कि किसी कार्यालय का धारक एक अनपढ़ व्यक्ति है या डॉक्टरेट है, यह सार्वजनिक गतिविधि का विषय नहीं हो सकता है।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीए की डिग्री से संबंधित मामला भी दिल्ली ‌हाईकोर्ट के समक्ष 2017 से लंबित है (सुनवाई की अगली तारीख 3 मई है)।

    उल्लेखनीय है कि 2017 में दिल्ली यूनिवर्सिटी ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें विश्वविद्यालय को 1978 में बीए कार्यक्रम पास करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया गया था, माना जाता है कि उसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

    24 जनवरी 2017 को सुनवाई की पहली तारीख पर जस्टिस संजीव सचदेवा ने सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी ‌थी।

    केस टाइटलः गुजरात यूनिवर्सिटी बनाम एम श्रीधर आचार्युलु (मदाभूशी श्रीधर)

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