गुजरात हाईकोर्ट ने ठेकेदार के खिलाफ उसके भाई की फर्म द्वारा समान नाम के चेक डिसऑनर करने वाला मामला रद्द करने से इनकार किया
Shahadat
16 Jun 2022 10:39 AM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत उस मामले को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि क्या यह चेक याचिकाकर्ता या उसके भाई द्वारा जारी किया गया है, जिसके एक ही इनीशियल है। इस सवाल पर ट्रायल के दौरान विचार किया जाना चाहिए। प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता का इरादा शिकायतकर्ता को बड़ी राशि का भुगतान करने से बचना था।
जस्टिस निरज़ार देसाई ने याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में याचिकाकर्ता एके कंस्ट्रक्शन के मालिक ने दावा किया कि उसके भाई की फर्म एके रोड कंस्ट्रक्टर अलग इकाई है और एके रोड कॉन्ट्रैक्टर द्वारा जारी किए गए चेक के खिलाफ शिकायत का उसके साथ कोई संबंध नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"याचिकाकर्ता या उसके भाई द्वारा चेक जारी किया गया है या नहीं और वह चेक जारी करने के लिए सक्षम था या नहीं, यह मुकदमे के स्तर पर साक्ष्य का मामला है। हालांकि, प्रथम दृष्टया इस न्यायालय का विचार है कि इस पर विचार करते हुए बड़ी राशि शामिल है, जो रु.37,24,631/- रुपये है। इसमें से रु.20,00,000/- का भुगतान याचिकाकर्ता द्वारा विचाराधीन चेक के माध्यम से करने की मांग की गई है, जिसे बैंक द्वारा अपर्याप्त धन कारण लौटा दिया गया। याचिकाकर्ता का इरादा भुगतान से बचने या शिकायतकर्ता को ठगने का था।"
कोर्ट ने कहा कि दोनों भाई कंस्ट्रक्शन बिजनेस में लगे हुए हैं और शिकायतकर्ता 2016 से याचिकाकर्ता को कंक्रीट, ग्रिट, मेटल की आपूर्ति कर रहा है। याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को परिवहन शुल्क के भुगतान के लिए चेक जारी किया था। लेकिन अपर्याप्त धनराशि का हवाला देते हुए इसे वापस कर दिया गया।
इसके बाद शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता को अधिनियम की धारा 138 के तहत नोटिस दिया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। इस प्रकार, धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज की गई। याचिकाकर्ता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि एके रोड कॉन्ट्रैक्टर उसका नहीं है और चूंकि वह चेक का भुगतानकर्ता नहीं है, इसलिए उसके खिलाफ कार्यवाही गलत है।
हालांकि, शिकायतकर्ता ने जोर देकर कहा कि दोनों भाई संयुक्त रूप से व्यापार कर रहे हैं और याचिकाकर्ता द्वारा जारी किए गए चेक को इस आश्वासन के साथ दिया गया कि उसका भुगतान कर दिया जाएगा। लेकिन याचिकाकर्ता ने धोखाधड़ी करने और भुगतान से बचने के लिए जानबूझकर अपने भाई की फर्म के नाम से चेक जारी किया। इसके अतिरिक्त, यह बताया गया कि चूंकि मुकदमा शुरू हो गया है और अदालत ने साक्ष्य के महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर लिया है, अब शिकायत को रद्द नहीं किया जा सकता।
जस्टिस देसाई ने मुख्य रूप से कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि परिवहन सेवाओं का लाभ याचिकाकर्ता के भाई ने लिया है। इसके अतिरिक्त, मुकदमा चल रहा है और याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता से जिरह की है। वह शिकायतकर्ता द्वारा जारी नोटिस का जवाब देने में भी विफल रहा। यह भी पाया गया कि व्यवसायी के लिए दो भाइयों के बीच आंतरिक व्यवस्था को जानने के लिए व्यक्ति के साथ सीमित व्यावसायिक संपर्क करना मुश्किल है। चूंकि याचिकाकर्ता ने नोटिस के बावजूद भाइयों के बीच की व्यवस्था को स्पष्ट नहीं किया, इसलिए यह माना गया कि याचिकाकर्ता का इरादा शिकायतकर्ता को रुपये वापस नहीं लौटाना था।
तदनुसार, पीठ ने कहा कि मुकदमे में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए और 'मुकदमे पर रोक लगाने या शिकायत को रद्द करने का कोई मतलब नहीं है।'
केस टाइटल: अयूबखान कालेखान पठान बनाम गुजरात राज्य
केस नंबर: आर/एससीआर.ए/891/2020
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