सोशल मीडिया पर पत्नी की 'अश्लील' तस्वीरें अपलोड करने वाले पति पर लगा ₹25,000 का जुर्माना
Shahadat
4 Aug 2025 10:41 AM IST

गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले हफ़्ते एक पति पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया, जिसने अपनी पत्नी की 'अश्लील' तस्वीरें व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर अपलोड की थीं। तस्वीर के साथ में गंदी टिप्पणियां भी की थीं और उन्हें वायरल भी किया था।
जस्टिस हसमुख डी. सुथार की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए पति के खिलाफ दर्ज FIR और उसके बाद शुरू की गई सभी कार्यवाही यह देखते हुए रद्द कर दी कि मामला दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया।
एकल जज ने कहा,
"...यद्यपि दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझ गया, लेकिन याचिकाकर्ता के आचरण को देखते हुए पति ने अपनी पत्नी की अश्लील तस्वीरें मांगी हैं। इतना ही नहीं, उसने इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया, याचिकाकर्ता पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया जाता है।"
इसके साथ ही जज ने निर्देश दिया कि यह राशि एक सप्ताह के भीतर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा की जाए।
संक्षेप में मामला
पति पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 66(ई) और 67 के साथ भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 351(2) और 356(2) के तहत FIR दर्ज की गई थी।
आरोप लगाया गया कि चूंकि उसकी पत्नी वैवाहिक जीवन फिर से शुरू करने के लिए तैयार या इच्छुक नहीं थी, इसलिए उसने किसी गुप्त उद्देश्य से उसकी अश्लील तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दीं। FIR और उसके बाद की कार्यवाही को चुनौती देते हुए उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
30 जुलाई को संबंधित वकीलों ने पीठ को सूचित किया कि कार्यवाही लंबित रहने के दौरान दोनों पक्षों ने सौहार्दपूर्ण ढंग से विवाद सुलझा लिया।
आपसी समझौते के बाद मूल शिकायतकर्ता ने हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि अगर कार्यवाही रद्द कर दी जाती है। उसे रद्द कर दिया जाता है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि अब कोई शिकायत नहीं बची है। वह अपना पक्ष दोहराने के लिए अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से भी उपस्थित हुईं।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने यह कहते हुए FIR रद्द कर दी कि विवाद निजी प्रकृति का था, सुलझ गया और अब सोशल मीडिया पर कोई अश्लील सामग्री उपलब्ध नहीं थी।
पीठ ने कहा,
"...इस न्यायालय की राय में इससे कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और दोषसिद्धि की संभावना बहुत कम है। आरोपित FIR के संबंध में याचिकाकर्ता के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से याचिकाकर्ता को अनावश्यक परेशानी होगी... न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए आरोपित FIR और उसके अनुसरण में CrPC की धारा 528 के तहत शुरू की गई सभी परिणामी कार्यवाहियों को रद्द करना उचित होगा।"
Case title - SAHDEV RANCHODBHAI BRAHMAN vs. STATE OF GUJARAT & ANR.

