गुजरात हाईकोर्ट ने जीएचसीएए अध्यक्ष यतिन ओझा का 'सीनियर' पदनाम वापस लिया

LiveLaw News Network

22 July 2020 4:00 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट ने जीएचसीएए अध्यक्ष यतिन ओझा का सीनियर पदनाम वापस लिया

    गुजरात हाईकोर्ट ने एडवोकेट यतिन ओझा के सीनियर पदनाम को हटा दिया है। वह गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट संघ के अध्यक्ष हैं। इससे पहले कोर्ट ने ओझा के ख‌िलाफ एक फेसबुक लाइव में जजों के खिलाफ की गई टिप्पणी पर अवमानना ​​कार्यवाही शुरू की थी।

    ओझा को 25 अक्टूबर 1999 को सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित किया गया था। 18 जुलाई को हुई फुल कोर्ट की बैठक में उक्त फैसले की समीक्षा करने और उसे वापस लेने पर का फैसला‌ किया गया।

    कोर्ट ने हाईकोर्ट ऑफ गुजरात (डेज़िग्नैशन ऑफ सीनियर एडवोकेट) रूल्स, 2018 के रूल 26 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है, "यदि घटना में, एक सीनियर एडवोकेट को ऐसे आचरण का दोषी पाया जाता है, जो फुल कोर्ट के अनुसार, संबंध‌ित सीनियर एडवोकेट को पदनाम की योग्यता के लिए अपात्र ठहराता है, तो फुल कोर्ट संबंधित व्यक्ति को नामित करने के अपने फैसले की समीक्षा कर सकती है और उसे वापस ले सकती है।"

    मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए, ओझा ने लाइवलॉ से कहा कि वह अदालत में फैसले को चुनौती देंगे। उन्होंने कहा, "मैं इसके खिलाफ अदालत में लड़ूंगा।"

    उल्‍लेखनीय है कि पिछले महीने एक फेसबुक लाइव के जर‌िए की गई एक प्रेस कांन्फ्रेंस में ओझा ने हाईकोर्ट और रजिस्ट्री के खिलाफ निम्न आरोप लगाए थे:

    -गुजरात हाईकोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा अपनाया जा रहा भ्रष्ट आचरण;

    -हाई प्रोफाइल उद्योगपति, तस्करों और देशद्रोहियों पर अनुचित कृपा की जा जा रही है;

    -हाईकोर्ट प्रभावशाली, अमीरों और उनके वकीलों के लिए काम कर रहा है;

    -अरबपति दो दिनों में हाईकोर्ट से आदेश पा जा रहे हैं, जबकि गरीबों और गैर-वीआईपी लोगों को संघर्ष करना पड़ता है;

    -वादकर्ता ही हाईकोर्ट में मामला दाखिल करना चाहते हैं, तो उन्हें मिस्टर खंबाटा, बिल्डर या कंपन‌ी होना चाहिए;

    कोर्ट ने ओझा की "गैर जिम्मेदाराना, सनसनीखेज और अनर्गल" टिप्पणी का कड़ा विरोध करते हुए, कहा कि ओझा ने तुच्छ आधार पर, असत्यापित तथ्यों के जर‌िए , हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को निशाना बनाया और हाईकोर्ट प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था।

    घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस एनवी अंजारिया ने पीठ ने कहा था, "जैसा कि बार अध्यक्ष ने अपनी लज्जाजनक टिप्‍प‌‌ण‌ियों और अंधाधुंध, आधारहीन बयानों से, हाईकोर्ट की प्रतिष्ठा और महिमा गंभीर नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है और इस प्रकार स्वतंत्र न्यायपालिका को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया है, क्योंकि पूरे प्रशासन की छवि को भी कमतर करने प्रयास किया है और कोर्ट की प्रशासनिक शाखा में निराशाजनक प्रभाव पैदा किया है, यह अदालत संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर, उन्हें प्रथमदृष्‍टया कन्टेम्‍प्ट ऑफ कोर्ट्स एक्ट की धारा 2 (सी) के अर्थ में इस न्यायालय की आपराधिक अवमानना ​​के लिए जिम्मेदार पाती है, और उक्त अधिनियम की धारा 15 के तहत ऐसे आपराधिक अवमानना ​​का संज्ञान लेती है। "

    हालांकि ओझा ने अवमानना ​​नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और हाईकोर्ट में ही इस मामले को उठाने को कहा।

    ओझा, जीएचसीएए के अध्यक्ष के रूप में, जस्टिस अकिल कुरैशी को गुजरात हाईकोर्ट से बॉम्बे हाईकोर्ट ट्रांसफर किए जाने का जोरदार विरोध किया था। उन्होंने उसे "अनुचित, अनाहुत और अन्यायपूर्ण" करार दिया था।

    ओझा के नेतृत्व में एसोसिएशन ने चीफ जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में पदोन्नत करने के सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र सरकार की ओर से हो रही देरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था।

    जून में, उन्होंने प्रत्यक्ष सुनवाई के लिए अदालतों को दोबारा खोलने के मुद्दे पर एसोसिएशन के पदाधिकारियों के बीच मतभेदों के बाद जीएचसीएए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। ओझा ने चीफ जस्टिस विक्रम नाथ को लिखे पत्र में आग्रह किया था कि हाईकोर्ट के कार्य को "पूर्णरूपेण" वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चलने दिया जाए और सभी मामलों को सुनने की अनुमति दी जाए।

    बाद में, कई सदस्यों के अनुरोध के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया था।

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