गुजरात हाईकोर्ट ने हिंदू देवी-देवताओं के आपत्तिजनक आर्ट वर्क पर छात्र को बिना जांच के ‌डीबार करने के यूनिवर्सिटी के फैसले को खारिज किया

Avanish Pathak

14 Feb 2023 3:02 PM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट ने हिंदू देवी-देवताओं के आपत्तिजनक आर्ट वर्क पर छात्र को बिना जांच के ‌डीबार करने के यूनिवर्सिटी के फैसले को खारिज किया

    गुजरात हाईकोर्ट ने महाराजा सयाजीराव यूविर्सिटी के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसने हिंदू देवी-देवताओं के आपत्तिजनक आर्ट वर्क के प्रदर्शन के लिए फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट के ‌डिपार्टमेंट ऑफ स्कल्पचर के स्नातकोत्तर छात्र को स्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया था।

    जस्टिस भार्गव डी करिया की सिंगल जज बेंच ने कहा कि आक्षेपित आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था। कोर्ट ने मामले को प्रतिवादी-यूनिवर्सिटी को फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की जांच रिपोर्ट पर उचित आदेश पारित करने और छात्र को सुनवाई का अवसर देने के बाद आयोजित की जा सकने वाली आगे की जांच के लिए वापस भेज दिया।

    याचिकाकर्ता-छात्र दो मई 2022 को परीक्षा समिति के समक्ष मौखिक परीक्षा के लिए उपस्थित हुआ था और अपने प्रायोगिक आर्ट वर्क को समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया ‌था। उन्हें परीक्षकों ने बताया कि आर्ट वर्क का विषय संवेदनशील है और सार्वजनिक प्रदर्शन के दरमियान आम आदमी इसे गलत समझ सकता है। इसलिए, याचिकाकर्ता को आर्ट वर्क को हटाने के लिए कहा गया था।

    हालांकि, किसी ने आर्ट वर्क की तस्वीर खींच ली और उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, जिसने यूनिवर्सिटी में हंगामा खड़ा हो गया था, जिसके बाद उक्त घटना के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए और 298 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

    याचिकाकर्ता को 12.05.2022 को कारण बताओ नोटिस दिया गया था, जिसमें यह बताया गया था कि क्यों न उसे यूनिवर्सिटी के अध्यादेश 290 के तहत बड़े दंड के प्रावधान के अनुसार स्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया जाए।

    याचिकाकर्ता का मामला था कि 13 मई 2022 को याचिकाकर्ता के कथित कबूलनामे के आधार पर एक आदेश पारित किया गया था और उसे बताया गया था कि उन्हें स्थायी रूप से रिस्पॉडेंट-यूनिवर्सिटी से ड‌िबार कर दिया।

    याचिकाकर्ता का तर्क था कि विवादित आदेश याचिकाकर्ता को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना पारित किया गया था और प्रतिवादी-यूनिवर्सिटी के सिंडिकेट ने विवादित आदेश की पुष्टि की थी।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील हितेश गुप्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता का इरादा हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करना नहीं नहीं था और प्रतिवादी-प्राधिकरण ने उचित तरीके से जांच किए बिना और निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना, कथित स्वीकारोक्ति के आधार पर उसे प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया है।

    अदालत ने देखा कि याचिकाकर्ता ने कथित इकबालिया बयान को वापस लेने के लिए एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया है और शपथ पर यह भी कहा है कि याचिकाकर्ता किसी भी प्रकार की फैकल्टी स्तर की जांच और यूनिवर्सिटी स्तर की जांच में सहयोग करेगा।

    अदालत ने कहा,

    "घटना की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, यह न्याय के हित में होगा कि ललित कला संकाय में आपत्तिजनक आर्ट वर्क के कथित प्रदर्शनी के लिए याचिकाकर्ता के मामले में प्रतिवादी-यूनिवर्सिटी द्वारा आगे की जांच की जाए।"

    हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं कर रही है और याचिकाकर्ता के साथ-साथ प्रतिवादी-यूनिवर्सिटी के सभी तर्कों को ध्यान में रखते हुए, विवादित आदेशों को केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के आधार पर रद्द किया जाता है। ताकि याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद उत्तरदाताओं को निर्णय पर पहुंचने में सक्षम बनाया जा सके।

    केस टाइटल: कुंदनकुमार नवलकिशोर महतो बनाम द महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा

    कोरम: जस्टिस भार्गव डी करिया

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