गुजरात हाईकोर्ट ने जुड़वां शिुशओं की कस्टडी उनकी मां को दी, महिला पर लगे प्रेम प्रसंग और समलैंगिक होने के आरोपों को अप्रासंगिक बताते हुए किया खारिज

LiveLaw News Network

21 July 2020 3:38 PM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट ने जुड़वां शिुशओं की कस्टडी उनकी मां को दी, महिला पर लगे प्रेम प्रसंग  और समलैंगिक होने के आरोपों को अप्रासंगिक बताते हुए किया खारिज

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक मां को उसके जुड़वां शिशुओं की कस्टडी देते हुए कहा कि अपने बच्चों की कस्टडी मांगने वाली एक मां पर लगाए जाने वाले आरोपों की प्रकृति की कुछ सीमा होनी चाहिए ताकि उन बच्चों का एक सभ्य वातावरण में पालन-पोषण हो सके।

    शिशुओं की मां के खिलाफ लगाए गए हेट्रोसेक्शुअल और समलैंगिक होने के आरोपों पर न्यायालय ने कहा कि-

    ''ऐसा प्रतीत होता है कि सारे आरोप बहुत स्पष्ट इरादे और सावधानी से डिजाइन किए गए हैंं। ताकि वह अपने दम पर खड़ी न हो पाए और उसके अंदर से आत्मसम्मान खत्म हो जाए, जिसके बाद वह पूरी तरह से अपमानित होकर इन आरोपों के समक्ष झुक जाए। हमने चरित्रहनन करने के इन आरोपों और प्रयासों का नेतृत्व न करने का निर्णय लिया है, जो पूरी तरह से डिजाइन किए गए हैं ताकि एक महिला के आत्मसम्मान और मनोबल को नीचे गिराया जा सकें क्योंकि उसने वैवाहिक जीवन को छोड़कर अपने जीवन को फिर से गरिमा और आत्म-सहायता के साथ आकार देने की हिम्मत की है।''

    न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने पुराने कानून को दोहराते हुए कहा कि 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कस्टडी उनकी मां को दी जानी चाहिए ,जब तक कि बच्चों का कल्याण एक मुद्दा न हो।

    न्यायालय ने मां की स्थिर आय, उसके निवास की निश्चित जगह और बच्चों की देखभाल करने के लिए उनकी मानसिक भलाई पर विचार किया और कहा कि बच्चों की कस्टडी उसको देने के लिए यह पर्याप्त मापदंड हैं।

    कोर्ट ने कहा कि कस्टडी के मामले में बच्चों का कल्याण सर्वोपरि कारक माना जाता है। वहीं याचिकाककर्ता के चरित्र और उसके मनोबल को गिराने के लिए उसके पति, उसके ससुराल वालों और यहां तक कि उसकी खुद की मां द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता की मां भी उसके विरूद्ध थी क्योंकि वह उनके सहयोग के बिना स्वतंत्र रूप से रह रही थी।

    इस मामले में अनुच्छेद 226 के तहत एक विशेष आपराधिक आवेदन के रूप में याचिकाकर्ता ने हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की थी। प्रतिवादियों ने दलील दी थी कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इस दलील का जवाब देते हुए न्यायालय ने 'गोहर बेगम बनाम सुग्गी उर्फ नाजमा बेगम व अन्य' के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि-

    ''हम यह भी जानते हैं कि आमतौर पर जब अन्य प्रभावी और प्रभावकारी उपचार उपलब्ध होते हैं, जो पार्टियों को तुरंत और प्रभावी तरीके से राहत पाने में सक्षम बनाते हैं, तो बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट दायर दायर करना वांछनीय नहीं हो सकता है या दायर नहीं की जानी चाहिए। हालाँकि, जैसा कि गोहर बेगम बनाम सुगगी उर्फ नाजमा बेगम व अन्य के मामले में माना गया है कि अभिभावक और वार्ड अधिनियम के तहत कस्टडी के लिए भले ही अन्य उपाय उपलब्ध हो ,परंतु अगर अदालत एक शिशु के मामले में विचार कर रही है तो बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट पर विचार करने से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं है।''

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस दलील को भी स्वीकार कर लिया है कि वह सिविल कोर्ट में लंबित अपने बच्चों की कस्टडी के मामले के लिए इंतजार नहीं कर सकती थी क्योंकि सिविल कानूनों के तहत कस्टडी के मामले COVID19 वायरस की वजह से फैली महामारी की वर्तमान परिस्थितियों में प्राथमिकता के दायरे में नहीं आते हैं। विशेष रूप से यह देखते हुए कि पिता की आपराधिक हरकतों के कारण बच्चों का कल्याण खतरे में हो सकता है। इतना ही नहीं इन जुड़वा बच्चों में से एक को उनकी चाची पाल रही है,न कि उसका पिता।

    न्यायालय ने प्रतिवादी पति द्वारा उनके समक्ष पेश तलाक की कथित डीड पर भी विश्वास जताने से इनकार कर दिया। प्रतिवादी पति और याचिकाकर्ता की मां ने इस संबंध में दावा किया था कि यह डीड याचिकाकर्ता और उसके पति के बीच निष्पादित की गई थी। परंतु न्यायालय ने माना कि कानून के तहत इस डीड की वैधता भी विवादित है और कहा कि-

    ''जब पक्षकारों ने अपनी शादी विशेष विवाह अधिनियम के तहत की थी तो उनके लिए यह आवश्यक है कि वह उसी कानून का कठोरता से पालन करें।''

    बहरहाल, न्यायालय ने कहा है कि उस डीड की वैधता के सवाल को छोड़ा जा रहा है क्योंकि उस पर एक उचित प्राधिकारी द्वारा ही निर्णय लिया जाएगा। इसी के साथ उनके विवाद की प्रकृति के संबंध में पति के किसी भी दावे या इनकार पर विचार नहीं किया गया है। न ही बच्चों की कस्टडी के संबंध में की गई उस कथित व्यवस्था पर विचार किया ,जिसके बारे में तलाक की डीड में लिखा गया है।

    अदालत ने निर्देश दिया है कि शिशुओं की कस्टडी तुरंत उनकी मां को के पास स्थानांतरित कर दी जाए। साथ ही एसपी गांधीनगर को निर्देश दिया है कि वे दोनों बच्चों का पर्यवेक्षण सुनिश्चित करें। यह भी निर्देश दिया गया है कि महिला और बाल कल्याण विभाग का एक कल्याण अधिकारी बच्चों की भलाई सुनिश्चित करने के उद्देश्य से हर पखवाड़े पर याचिकाकर्ता व बच्चों के आवास का दौरा करें। यह भी कहा गया है कि यदि प्रतिवादी पति द्वारा कानून को अपने हाथों में लेने की कोशिश की जाती है या उसके निर्देश पर कोई अन्य व्यक्ति ऐसा करता है तो उससे गंभीरता से निपटा जाएगा।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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