'पीआईएल दुरुपयोग का पुख्ता उदाहरण' : गुजरात हाईकोर्ट ने वीवीपैट के इस्तेमाल, राज्य निर्वाचन आयोग की कथित गड़बड़ियों से संबंधित याचिका 500 रुपये जुर्माने के साथ खारिज की
LiveLaw News Network
21 Jun 2021 10:44 AM IST
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट द्वारा पहले खारिज की गयी जनहित याचिका में उठाये गये मसलों से मिलते जुलते बिंदुओं पर क्रमिक पीआईएल दायर की थी, गुजरात हाईकोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षित सीटों, वीपीपैट मशीनों के इस्तेमाल और राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा की जाने वाली अनियमितताओं से संबंधित याचिका हाल ही में खारिज कर दी है और याचिकाकर्ता पर 500 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की डिवीजन बेंच ने कहा कि :
"खासकर जनहित याचिका के माध्यम से, न्यायिक निवारण तंत्र तक आसान पहुंच का कई बार दुरुपयोग किया जाता है। यह मामला पार्टी- इन- पर्सन द्वारा क्रमिक जनहित याचिका दायर किया जाना इस तरह के दुरुपयोग का पुख्ता उदाहरण है।"
कोर्ट स्थानीय निकाय चुनावों में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों तथा महिला उम्मीदवारों के लिए सीटों के आरक्षण की मांग कर रही याचिका की सुनवाई कर रहा था। इतना ही नहीं, याचिका में आरक्षित सीटों के निर्धारण, वीवीपैट के इस्तेमाल और राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा कथित तौर पर की जा रही गड़बड़ियों तथा अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिए तंत्र विकसित करने का भी अनुरोध किया गया है।
इस बात का संज्ञान लेकर कि याचिकाकर्ता द्वारा इसी तरह की जनहित याचिका पहले भी दायर की गयी थी और उसे इस कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिया गया था।
बेंच ने इस प्रकार कहा :
"मौजूदा याचिका में किये गये अनुरोध एवं दलीलों को ध्यान से पढ़ने पर यह संकेत मिलेगा कि इसी तरह के अनुरोध और दलीलें पूर्व की याचिकाओं में भी दी गयी थी। सीटों को आरक्षित किये जाने के बारे में अस्पष्ट बातें की गयी हैं और उनके समर्थन में कोई तथ्य रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है, जबकि वास्तविक तथ्य यह है कि सीटों के आरक्षण का निर्धारण और आवंटन सरकारी अधिकारियों द्वारा नियमों को लागू करके सुनिश्चित प्रक्रिया के द्वारा किया जाता है।"
याचिकाकर्ता ने खुद को बहुजन समाज पार्टी की गुजरात इकाई का महामंत्री होने का दावा करते हुए जनहित याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने एक फरवरी 2021 के अपने आदेश के जरिये यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि 'बेंच इसका ओर-छोर निर्धारित करने में अक्षम है।'
इसके मद्देनजर, कोर्ट ने कहा कि पूर्व में ऐसी ही याचिका कोर्ट द्वारा खारिज किये जाने के बाद भी याचिकाकर्ता इस तरह की याचिका दायर करने के अपने संवेदनहीन रवैये से बाज नहीं आ रहा है और वह समान तरह की याचिका दायर करने में जुटा हुआ है।
कोर्ट ने कहा,
"बिना किसी तथ्य के असंगत दलीलें और एक-दूसरे से असम्बद्ध कई शिकायतें दिमाग इस्तेमाल किये बिना ही याचिका में डाली गयी हैं।"
इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी कहा :
"इसलिए हम याचिकाकर्ता – पार्टी इन पर्सन- द्वारा इस याचिका को खारिज करने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि इसमें मेरिट नहीं है। इस तथ्य पर विचार करके कि पहली याचिका को ठुकरा दिये जाने के बाद भी फर्जी याचिका दायर करने का याचिकाकर्ता का यह दूसरा प्रयास है, हम याचिका खारिज करते हैं और याचिकाकर्ता पर 500 रुपये का जुर्माना लगाते हैँ।"
केस का शीर्षक : निरंजन घोष, महामंत्री, बहुजन समाज पार्टी बनाम राज्य निर्वाचन आयोग
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